शनिवार, 20 जुलाई 2024

सुखदाई सावन के साथी, कुछ दुखदाई पाहुन

बरखा रानी ने धरती पर अपने कदम रख दिए हैं। मौसम सुहाना होने लगा है। इसकी धुन पर सब अपने में मस्त हैं। पर शरीर साफ सुन पा रहा है, बरसात के साथ आने वाली बिमारियों की भी पदचाप। इसी आवाज को हम सब को भी सुन स्वस्थ रहते हुए स्वस्थ रहने की प्रकृया शुरु कर देनी चाहिए। क्योंकि बिमार होने के बाद स्वस्थ होने से अच्छा है कि बिमारी से बचने का पहले ही इंतजाम कर स्वस्थ रह कर इस ऋतु का आनंद लिया जाए.........!!


#हिन्दी_ब्लागिंग 

इस बार गर्मी ने कुछ ज्यादा ही लंबी मेहमाननवाजी  करवा ली। जाने के समय भी बिस्तर बांधने में अच्छा खासा समय ले लिया। वो तो भला हो इंद्र देवता का जिनकी इजाजत से बरखा रानी ने धरती पर अपने कदम रखे। मौसम सुहाना होने लगा। पेड़-पौधों ने धुल कर राहत की सांस ली। किसानों की जान में जान आई। कवियों को नई कविताएं सूझने लगीं। हम जैसों को भी चाय के साथ पकौड़ियों की तलब लगने लगी। सब अपने में मस्त थे पर शरीर साफ सुन पा रहा था बरसात के साथ आने वाली बिमारियों की पदचाप। इसी आवाज को हम सब को भी सुन, संभल जाना चाहिए। स्वस्थ रहते हुए ही स्वस्थ रहने की प्रकृया शुरु कर देनी चाहिए। क्योंकि बिमार होने के बाद स्वस्थ होने से अच्छा है कि बिमारी से बचने का पहले ही इंतजाम कर लिया जाए ! 
नभ से अमृत की फुहार 
इस मौसम में जठराग्नि मंद पड़ जाती है। सर्दी, खांसी, फ्लू, डायरिया, डिसेंट्री, जोड़ों का दर्द और न जाने क्या-क्या, अपने-अपने ढोल-मंजीरे ले शरीर के द्वार पर दस्तक देने लगते हैं। वैसे तो अधिकांश लोग अपना ख्याल रखना जानते हैं, फिर भी हिदायतें सामने दिखती रहें तो और भी आसानी हो जाती है, क्योंकि उनके प्रयोग से लाभ ही होता है नुक्सान कुछ भी नहीं है ! मेरे एक मित्र मधुसूदन जी वैद्य हैं। वर्षों से बिना किसी अपेक्षा के लोगों का हितचिंतन करते आ रहे हैं। उन्हीं के परामर्श को साझा कर रहा हूँ  :-
सावधानी की अपेक्षा 
* इस मौसम में जठराग्नि मंद पड़ जाती है। इसलिए रोज एक चम्मच अदरक और शहद की बराबर मात्रा सुबह लेने से फायदा रहता है।

* खांसी-जुकाम में एक चम्मच हल्दी और शहद गर्म पानी के साथ लेने से राहत मिलती है।

* इस मौसम में दूध, दही, फलों के रस, हरी पत्तियों वाली सब्जियों का प्रयोग कम कर दें।

* इस मौसम में ज्यादातर बीमारियां दूषित जल से ही होती हैं ! तो ऐसे में पानी का उपयोग करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए ! पीने के लिए गुनगुना पानी सर्वोत्तम होता है !

* आज कल तो हर घर में पानी के फिल्टर का प्रयोग होता है। पर वह ज्यादातर पीने के पानी को साफ करने के काम में ही लिया जाता है। दूसरे कामों के लिए भंड़ारित किए हुए पानी को वैसे ही प्रयोग में ले आया जाता है। ऐसे पानी में एक फिटकरी के टुकड़े को कुछ देर घुमा कर छोड़ दें। कुछ ही देर में पानी की गंदगी नीचे बैठ जाएगी और वह उपयोग के लिए सुरक्षित हो जाएगा। 

* नीम की पत्तियों को उबाल कर उस पानी को अपने नहाने के पानी में मिला कर स्नान करें। इसमें झंझट लगता हो तो पानी में डेटाल जैसा कोई एंटीसेप्टिक मिला कर नहाएं। बरसात में भीगने से बचें, मजबूरी में शरीर गीला हो ही जाए तो जितनी जल्दी हो उसे सुखाने की जुगत करें।
 
* तुलसी का पौधा अमूमन हर घर में होता ही है। इस की पत्तियां जलजनित रोगों से लड़ने में बहुत सहायक होती हैं। इसकी 8-10 पत्तियां रोज चबा लेने से बहुत सी बिमारियों से बचा जा सकता है। घर में पीने के पानी में इसकी आठ-दस पत्तियां डाल दें, ये बखूबी आपकी हिफाजत करेंगी.  

* खाने के बाद यदि पेट में भारीपन का एहसास हो तो एक चम्मच जीरा या अजवायन पानी के साथ निगल लें। आधे घंटे के अंदर ही राहत मिल जाएगी। शरीर को सजग बनाए रखने के लिए घर पर ही हल्का-फुल्का व्यायाम जरूर करते रहें !           

* इस मौसम में अचार, तले हुए व्यंजन, मसालेदार खाद्य पदार्थों का कम से कम उपयोग के साथ-साथ बाहर के खान-पान से भी जहां तक हो सके दूरी बनाए रखनी चाहिए ! साथ ही ज्यादा देर के कटे फल, सलाद और बासी भोजन का उपयोग ना ही करें तो बेहतर है।
उल्लास 
सीधी सी बात है ! पावस के इस सुहाने मौसम के अलावा भी ऋतु कोई भी क्यों ना हो, मौसम कैसा भी क्यों न हो,  यदि हमें उसका आनंद लेना है तो हम स्वस्थ रह कर ही ऐसा कर सकते हैं और खुद को स्वस्थ कौन नहीं रखना चाहता ! वैसे यह कोई बहुत मुश्किल काम भी नहीं है ! बस, जरा सी सावधानी और जरा सा परहेज ही तो अपनाना है !

@फोटो अंतर्जाल के सौजन्य से 

शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

"माले मुफ्त का" ऐंटी रिएक्शन

नासूर बनते इस घाव का उपचार बहुत सोच-समझ कर, बड़ी सूझ-बूझ और सतर्कता से तुरंत करना बेहद जरुरी है नहीं तो जाति, धर्म, आरक्षण के कारण बंटते देश-समाज की सिरदर्दी बढ़ाने के लिए एक और जमात सदा के लिए आ खड़ी होगी ! जिसके मुंह में मुफ्तखोरी का खून लग चुका होगा ! आज देश की हालत और समय का तकाजा है कि मुफ्त में मछली देने के बजाय मछली पकड़ना सिखाया जाए, ताकि अपने पैरों पर खड़ा हुआ जा सके ! आबादी के परमाणु बम पर बैठे देश को मुफ्तखोरों, निठठ्लों, परजीवियों की नहीं कर्म-वीरों की जरुरत है..................!     
#हिन्दी_ब्लागिंग 
दृश्य एक :- आठ एकड़ की खेती लायक जमीन के मालिक श्री अमर सिंह जी अपनी सेहत ठीक न होने के कारण, खेत में काम करने के लिए किसी सहायक के न मिलने से परेशान थे।  एक दिन उन्हें अपना पुराना कामदार दिखाई पड़ा तो उन्होंने उसे फिर काम पर रखना चाहा तो उसने साफ मना कर कहा कि वह अब बेगार नहीं करता। एक ही गांव के होने के कारण साहू जी जानते थे कि वह दिन भर निठ्ठला घूमता है, नशे का भी आदी है. पर कर क्या सकते थे. एक दो साल के बाद तंग आकर मजबूरी में उन्होंने दुखी मन से अपनी आधी जमीन एक बिल्डर को बेच डाली। अब वहां गेहूं की जगह कंक्रीट की फसल उगेगी !                 

दृश्य दो :- शहर के करीब रहने वाले श्री गोविंद पटेल जी को अपने घर में बरसात का पानी इकट्ठा होने के कारण उसकी निकासी के लिए एक पांच-सात फुट की छोटी नाली निकलवानी थी। पर इस छोटे से काम  को करने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा था। किसी तरह एक पलम्बर राजी हुआ, उतने से काम के लिए उसने हजार रुपयों की मांग की, ले-दे कर नौ सौ रुपये पर राजी हुआ, जबकि सारा काम बेढंगे तरीके से उसके सहयोगी एक किशोर ने किया। सिमित आय वाले पटेल जी कसमसा कर रह गए !  

तीसरा दृश्य :- शर्मा जी के फ्लैट के बाहर के पाइप में दीवाल में उगे एक पौधे ने किसी तरह पाइप के अंदर जगह बना उसे पूरी तरह  "चोक"  कर दिया। नतीजतन ऊपर के फ्लैट के साथ-साथ अपना पानी भी घर के अंदर बहने लगा ! दस फुट की ऊंचाई पर के पाइप के जोड़ को खोल कर साफ करने के लिएन कोई पलम्बर मिल रहा था ना हीं कोई सफाई कर्मचारी ! बड़ी मुश्किल से पांच सौ रुपये दे कर तथा साथ लग कर यह 15 - 20 मिनट का काम करवाया जा सका ! मजबूरी जो थी !  

चौथा दृश्य :- मिश्रा जी को दूध-दही का शौक है।  सो घर पर सदा एक-दो दुधारू पशु बंधे रहते थे। अब मजबूरन सबको हटा, बाजार का मिश्रित दूध लेना पड़ रहा है ! कारण पशुओं के रख-रखाव, दाना-पानी, साफ-सफाई के लिए किसी सहायक का उपलब्ध न हो पाना था ! मजबूरन ऐसे लोगों को या तो ब्रांडेड कंपनियों के उत्पाद खरीदने होंगे या फिर डेयरी वालों के रहमो-करम पर अपना स्वास्थ्य गिरवी रखना होगा !  

पांचवां दृश्य :-  एक गांव में एक कौतुक दिखाने वाला आया ! खेल दिखाने के बाद जब उसे कुछ लोग धान देने लगे तो वह ऐसे बिदका जैसे सांड को लहराता लाल कपड़ा दिखा दिया हो ! कुछ नाराज सा हो बोला, मुझे सिर्फ पैसे चाहिए !  धान कितना चाहिए मुझसे ले लो ! धान की उसको क्या कमी, सरकार भर-भर तसले हर महीने घर जो पहुंचा रही है !

इन सारे दृश्यों में एक वजह कॉमन है ! वह है, काम करने वालों की कमी और दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाने की प्रवृत्ति और यह बिमारी हमारे नेता-गण ही लाए हैं ! जिन्होंने अपना वोट बैंक पुख्ता करने की लालसा में तरह-तरह के स्वाद की रेवड़ियां जगह-जगह बांटी हैं ! ये सरकारों द्वारा लाई जा रही खुशहाली की तस्वीर नहीं है, यह है मुफ्तखोरी के कारण उपजी जहालत और काम न करने की प्रवृत्ति की ! कुछ लोगों को ये बातें गरीब विरोधी लगेंगी, पर कड़वी सच्चाई है कि मुफ्तखोरी ने आज समाज में निष्क्रिय लोगों का एक अलग तबका बना दिया है ! ! इससे भी भयावह सच्चाई यह है कि अब चाह कर भी ऐसी स्कीमों को तुरंत बंद नहीं किया जा सकता ! क्योंकि जैसे ही ऐसा कोई कदम उठेगा, देश को अस्थिर करने की ताक में बैठी देसी-विदेशी ताकतें, उसका जबरदस्त विरोध करवा अराजकता फैलाने की कोशिश शुरू करवा देंगी !    

हालांकि कुछ ऐसी योजनाओं और उन्हें लागू करने वालों की मंशा समाज के निचले वर्ग की बेहतरी चाहने की ही रही होगी, जैसे कोरोना के दौरान मुफ्त का राशन ! पर महामारी के बाद उसे बंद कर देना चाहिए था ! क्योंकि उसका बोझ भी तो समाज का एक वर्ग ही उठा रहा है ! उस पर सचमुच के गरीब और बने या बनाए हुए ग़रीबों में जमीन-आसमान का फर्क होता है और ऐसी योजनाओं का सर्वाधिक लाभ उन्हीं बने हुए ग़रीबों द्वारा उठाया जाता है, जिन्हें बिना हाथ-पैर हिलाए हराम की खाने की आदत पड़ चुकी होती है ! समाज के ऐसे ही परजीवियों और उनके आकाओं के कारण अच्छी योजनाएं भी अपने लक्ष्य तक न पहुंच आलोचनाओं का शिकार हो अप्रियता को प्राप्त हो जाती हैं।  

नासूर बनते इस घाव का उपचार बहुत सोच-समझ कर, बड़ी सूझ-बूझ और सतर्कता से तुरंत करना बेहद जरुरी है नहीं तो जाति, धर्म, आरक्षण के कारण बंटते देश-समाज की सिरदर्दी बढ़ाने के लिए एक और जमात सदा के लिए आ खड़ी होगी ! जिसके मुंह में मुफ्तखोरी का खून लग चुका होगा ! आज देश की हालत और समय का तकाजा है कि मुफ्त में मछली देने के बजाय मछली पकड़ना सिखाया जाए, ताकि अपने पैरों पर खड़ा हुआ जा सके ! आबादी के परमाणु बम पर बैठे देश को मुफ्तखोरों, परजीवियों की नहीं कर्म-वीरों की जरुरत है !

सोमवार, 1 जुलाई 2024

अपलाप छिछलेपन को दर्शाता है

इतिहास बार-बार समझाता, चेताता आया है कि दुर्वचन आम इंसान को कभी भी रास नहीं आते, चाहे वे किसी के भी मुखारविंद से निकले हों ! कोफ्त होती है उसे ऐसे वचनों से ! एक अलगाव सा महसूसने लगता है वह उस व्यक्ति या संस्था विशेष से ! चाहे कितना भी बड़ा व्यक्तित्व हो, उसकी छवि धूमिल ही होती है ऐसे अपलाप से ! अग्निमुख यह बात क्यों नहीं समझ पाते, आश्चर्य ही है.............!  

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कहावत है कि यथा राजा तथा प्रजा।  पर समय बदल गया है और इसके साथ-साथ हर चीज में बदलाव आ गया है। कहावतें भी उलट गई हैं। अब यथा प्रजा तथा राजा हो गया है। जिस तरह से दिनों-दिन प्रजा में असहिष्णुता, असंयमितता, अमर्यादितता तथा विवेक-हीनता बढ़ रही है, उसी तरह के वैसे ही गुण लिए जनता से उठ कर सत्ता पर काबिज होने वाले नेता यानी आधुनिक राजा हो गए हैं।  

अपलाप 
वर्षों से गुणीजन सीख देते आए हैं कि जबान पर काबू रखना चाहिए। पर अब समय बदल  गया है। जबान की मिठास धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। खासकर राजनीति के पंक में लिथड़े अवसरवादी और महत्वाकांक्षी लोगों ने तुरंत खबरों में छाने और खुद को अपने दल की अग्रिम पंक्ति में स्थापित करने के लिए यह रास्ता अख्तियार कर लिया है ! इसका फायदा यह है कि एक ही झटके में उस गुमनाम-अनजान अग्नि-मुख का नाम हरेक की जुबान पर आ जाता है ! रातों-रात वह खबरों में छा अपनी पहचान बना लेता है। कुछ हाय-तौबा मचती है, पर वह टिकाऊ नहीं होती। अगला हंसते-हंसते माफी-वाफी मांग उस दल की जरुरत बन जाता है। 
कोई कम नहीं 
यह सोचने की बात है कि इस तरह की अनर्गल टिप्पणियों की निंदा या भर्त्सना होने के बावजूद लोग क्यों जोखिम मोल लेते हैं। समझ में तो यही आता है कि यह सब सोची समझी राजनीति के तहत ही खेला गया खेल होता है। इस खेल में ना कोई किसी का स्थाई दोस्त होता है ना हीं दुश्मन। सिर्फ और सिर्फ अपने भले के लिए यह खेल खेला जाता है। इसके साथ ही यह भी सच है कि ऐसे लोगों में गहराई नहीं होती, अपने काम की पूरी समझ नहीं होती इन्हीं कमजोरियों को छुपाने के लिए ये अमर्यादित व्यवहार करते हैं। इसका साक्ष्य तो सारा देश और जनता समय-समय पर देखती ही रही है !
बकवास की आजादी 
कभी-कभी नक्कारखाने से तूती की आवाज उठती भी है कि क्या सियासतदारों की कोई मर्यादा नहीं होनी चाहिए ? क्या देश की बागडोर संभालने वालों की लियाकत का कोई मापदंड नहीं होना चाहिए ? जबकि किसी पद पर नियुक्ति के पहले, वर्षों का अनुभव होने के बावजूद, संस्थाएं नए कर्मचारी को कुछ दिनों का प्रशिक्षण देती हैं, नई नियुक्ति के पहले नौकरी पाने वाले को प्रशिक्षण-काल पूरा करना होता है। शिक्षक चाहे जब से पढ़ा रहा हो उसे भी एक खास कोर्स करने के बाद ही पूर्ण माना जाता है। अपवाद को छोड़ दें तो किसी भी संस्था में ज्यादातर लोग निचले स्तर से शुरू कर ही उसके उच्चतम पद पर पहुंचते हैं। तो फिर राजनीति में ही क्यों अधकचरे, अप्रशिक्षित, अनुभवहीन लोगों को थाली में परोस कर मौके दे दिए जाते हैं और इसमें कोई भी दल या पार्टी ना तो पीछे है, ना हीं किसी को परहेज है ! कम से कम उन्हें संयम की, मर्यादा की, नैतिकता की, मृदु भाषिता की सीख तो दी ही जा सकती है ! पर ऐसा करे कौन ? आज तो यह रोग देश के हर छोटे-बड़े नेता को लग चुका है ! 

यह
जग जाहिर है कि किसी के कटु वचनों पर उनके द्वारा पालित लोग तो ताली बजा सकते हैं, पर आम जनता को ऐसे शब्द और उनको उवाचने वाला नागवार ही गुजरते हैं ! बड़े और अनुभवी नेताओं को ऐसे लोगों की औकात पता भी होती है, पर चाह कर भी वे ऐसे लोगों को रोक नहीं पाते, क्योंकि अपने किसी न किसी स्वार्थ के तहत इन लोगों को झेलना उनकी मजबूरी बन जाती है और यही बात ऐसे लोगों की जमात बढ़ते जाने का कारण बनती जा रही है, ऐसे लोगों का ना कोई विवेक होता है ना हीं कोई विचारधारा, इन्हें सिर्फ अपने हित को साधना होता है जो जहां सधता दीखता है ये उसी के हो जाते हैं !   

इतिहास बार-बार समझाता, चेताता आया है कि दुर्वचन आम इंसान को कभी भी रास नहीं आते, चाहे वे किसी के भी मुखारविंद से निकले हों ! कोफ्त होती है उसे ऐसे वचनों से ! एक अलगाव सा महसूसने लगता है वह उस व्यक्ति या संस्था विशेष से ! चाहे कितना भी बड़ा व्यक्तित्व हो, उसकी छवि धूमिल ही होती है ऐसे अपलाप से ! अग्निमुख यह बात क्यों नहीं समझ पाते, आश्चर्य ही है ! 

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