ऐसा समझा या माना जाता है कि कभी ना रोनेवाले या कम रोनेवाले मजबूत दिल के होते हैं ! पर डाक्टरों का नजरिया अलग है, उनके अनुसार ऐसे व्यक्ति असामान्य होते हैं ! उनका मन रोगी हो सकता है ! ऐसे व्यक्तियों को रोने की सलाह दी जाती है ! तो जब भी कभी आंसू बहाने का दिल करे (प्रभू की दया से मौके खुशी के ही हों) तो झिझकें नहीं ! पर इसके साथ ही यह भी ध्यान रहे कि आप के कारण किसी के आंसू ना बहें .........!
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दुनिया में शायद ही कोइ ऐसा इंसान होगा जिसकी आंखों से कभी आंसू न बहे हों ! जीवन के विभिन्न हालातों, परिस्थितियों, घटनाओं से इनका अटूट संबंध रहता है। समय कैसा भी हो, दुख का, पीड़ा का, ग्लानी का, परेशानी का, खुशी का, यह नयन जल, नयनों का बांध तोड़ खुद को उजागर कर ही देता है ! मन की विभिन्न अवस्थाओं पर शरीर की प्रतिक्रिया के फलस्वरुप आंखों से बहने वाला, जब भावनाएं बेकाबू हो जाती हैं तो मन को संभालने वाला, दुःख के समय मन को हल्का करने वाला, सुख के अतिरेक में भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम, हमारे शरीर का साथी है, यह "अश्रु" ! इतना ही नहीं सामान्य अवस्था में यह हमारी आंखों को साफ तथा कीटाणु-जीवाणु मुक्त भी रखता है।
इसके सामान्यतया तीन रूप होते हैं ! पहले हैं बेसल आंसू ! जो आंखों में नमी तथा स्नेहन की स्थिति बनाए रखते हैं, जिससे आँख साफ रहती है और आंखों का सूखेपन से होने वाले नुक्सान से बचाव होता है ! दूसरे होते हैं रीफ्लेक्स आंसू ! वह जल जो कभी धूल-कण या किसी कीड़े वगैरह के आँख में पड़ जाने से आंखों भर आता है, जिससे अवांछित वस्तु आँख से बाहर आ जाती है और तीसरा जो सबसे अहम् है, वह है साइकिक आंसू ! रुदन-समय पर बहने वाला रूप ! आंसू हमारी मनोदशा को भी उजागर कर देते हैं ! दुख या सुख में निकलने वाले आंसू जाहिर कर देते हैं कि व्यक्ति खुश है या दुखी ! इसीलिए शायरों ने इन्हें दिल की जुबान कहा है ! वैसे बीमारी तथा भोज्य पदार्थ की तीक्ष्णता इत्यादि के कारण भी यह आंखों से बहने लगते हैं !
आंसू का निर्माण "लैक्रिमल सैक" नाम की ग्रन्थी से होता है। भावनाओं की तीव्रता आंखों में एक रासायनिक क्रिया को जन्म देती है, जिसके फलस्वरुप आंसू बहने लगते हैं ! इसका रासायनिक परीक्षण बताता है कि इसका 94 प्रतिशत पानी तथा बाकी का भाग रासायनिक तत्वों का होता है। जिसमें कुछ क्षार और लाईसोजाइम नाम का एक यौगिक रहता है, जो कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है। इसी के कारण हमारी आंखें जिवाणुमुक्त रह पाती हैं ! वैज्ञानिकों के अनुसार आंसूओं में इतनी अधिक कीटाणुनाशक क्षमता होती है कि इससे छह हजार गुना ज्यादा जल में भी इसका प्रभाव बना रहता है यानी एक चम्मच आंसू तकरीबन सौ गैलन पानी को कीटाणु रहित कर सकता है !
इन आंसुओं के बारे में वैज्ञानिक लंबे समय से रिसर्च कर रहे हैं ! प्रकृति की इस विलक्षण देन के अनुसंधान से कई अनोखे तथ्य सामने आए हैं ! जर्मन शोध की मानें तो महिलाएं, पुरुषों से अधिक रोती हैं ! महिलाओं के आंसुओं से संबंधित ग्लैंड पुरुषों से अधिक सक्रीय होते हैं और उनकी बनावट भी अलग होती है ! वैसे भी महिलाएं पुरुषों से ज्यादा भावुक होती हैं ! अब लोगों के "घंटों रोने" की बात मुहावरा बन चुकी है, क्योंकि आमतौर पर महिलाएं औसतन एक बार में कम से कम छह मिनट तक रोती हैं, जबकि पुरुषों के लिए आंसू बहने की अवधि आमतौर पर दो से चार मिनट तक ही होती है !
बहुत छोटे बच्चे जब रोते हैं तो उनके आंसू नहीं बहते ! लगभग छः माह की उम्र होने तक रोने पर भी बच्चों की आँख से आँसू नहीं निकलते सिर्फ रोने की आवाज ही आती है ! आंसू बनाने वाला लैक्रिमल ग्लैंड आंखों के ऊपरी हिस्से में स्थित होता है ! बहुत अधिक आंसू बनने की दशा में ये आँखों से बाहर आने के साथ-साथ श्वास नली में भी चले जाते हैं, जिससे नाक बहने लगती है ! प्याज काटते वक्त इससे निकलने वाला ऑक्साइड, लैक्रिमल ग्लैंड को प्रभावित करता है ! यही वजह है प्याज काटते वक्त आंखों में जलन के साथ आंसू निकलते हैं।
दुःख के आंसू |
प्राणी शास्त्रियों का कहना है कि सिर्फ बंदर ही ऐसा जीव है, जो दुख या तकलीफ में हमारी तरह आंसू बहाता है ! जानवर हमारी तरह आंसू बहाकर अपना दुख व्यक्त नहीं करते हैं। फिर भी जानवरों की आंखों से जो आंसू निकलते देखे जाते हैं, उनका जानवरों के दुख और तकलीफ से कोई लेना-देना नहीं है ! वह उनकी आँखों को साफ़ रखने की प्राकृतिक क्रिया है ! हम जब रोते हैं तो हमारी आंखों के चारों ओर की मांसपेशियों में खिंचाव होता है और हमारी अश्रुग्रंथियों पर दबाव पड़ता है, जिसकी वजह से आंसू बह निकलते हैं पर जानवरों में इस तरह की मांसपेशियां होती ही नहीं हैं ! उनका अपने दुःख-तकलीफ को जाहिर करने का दूसरा तरीका होता है !
खुशी के आँसू |
ऐसा समझा या माना जाता है कि कभी ना रोनेवाले या कम रोनेवाले मजबूत दिल के होते हैं ! पर डाक्टरों का नजरिया अलग है, उनके अनुसार ऐसे व्यक्ति असामान्य होते हैं ! उनका मन रोगी हो सकता है ! ऐसे व्यक्तियों को रोने की सलाह दी जाती है ! तो जब भी कभी आंसू बहाने का दिल करे (प्रभू की दया से मौके खुशी के ही हों) तो झिझकें नहीं ! पर इसके साथ ही यह भी ध्यान रहे कि हमारे कारण किसी और के आँसूं ना बहें !
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आंसू की इस परिभाषा का भी ध्यान रखें -
It is a Hydraulic force through which Masculine WILL POWER defeated by Feminine WATER POWER. 😅
आंसू की इस परिभाषा का भी ध्यान रखें -
It is a Hydraulic force through which Masculine WILL POWER defeated by Feminine WATER POWER. 😅
8 टिप्पणियां:
सच में हम भी मानते हैं दिल की जुबान है आँसूँ।
बहुत अच्छा लेख।
प्रणाम सर
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी
हार्दिक आभार आपका🙏
बढ़िया लेखन कथेतर में
विभा जी
हार्दिक आभार आपका 🙏
अपनी शैली से थोड़ा हटकर लिखा ये लेख मन को छू गया।मुस्कुराहट झूठी हो सकती है आसूँ नहीं।बेहतरीन लेख के लिए बधाई और आभार गगन जी 🙏
आँसू पर बहुत ही जानकारी पूर्ण लेख
सही कहा दिल की जुबान है आँसू.
बहुत सटीक एवं लाजवाब ।
रेणु जी
बहुत-बहुत धन्यवाद🙏
सुधा जी
अनेकानेक धन्यवाद🙏
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