दुःख के आंसू |
खुशी के आँसू |
आंसू की इस परिभाषा का भी ध्यान रखें -
It is a Hydraulic force through which Masculine WILL POWER defeated by Feminine WATER POWER. 😅
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
दुःख के आंसू |
खुशी के आँसू |
पहाड़ों में प्रचलित एक कहावत के अनुसार तीन Unpredictable ''W'' में से एक, Weather, का शाम होते-होते मिजाज बदलने लगा था ! आस-पास की पहाड़ियों पर घने काले बादल छाने व मंडराने लग गए थे ! इसके पहले कि उसका गुस्सा बढ़ता हमने अपने होटल की शरण लेना बेहतर समझा ! परंतु शॉपिंग का प्रेम कुछ लोगों को मॉल की ओर ले तो गया, पर बारिश ने प्रेम पर अपना आँचल डाल दिया, फिर क्या ! वही हुआ जो मंजूरे बरसात था ! कुछ लेना-खरीदना तो दूर जो अपने पास था वह भी पानी-पानी हो गया 😃
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
RSCB के मई के उत्तरार्द्ध के अमृतसर-चिंतपूर्णी यात्रा का अमृतसर के बाद दूसरा पड़ाव था, हिमाचल का खूबसूरत, छोटा सा पहाड़ी शहर डलहौजी ! सफर के दूसरे दिन होटल वगैरह की कार्यवाही निपटा, जालियांवाला बाग में श्रद्धांजलि अर्पित करने और दुर्गयाणा मंदिर के दर्शनों के पश्चात हमारी स्वस्थ-प्रसन्न टोली ने यहां से तक़रीबन 198 किमी दूर स्थित डलहौजी का रूख किया ! सड़क मार्ग से डलहौज़ी दिल्ली से 555 किमी तथा चंबा से 45 किमी है ! इसका निकटतम रेलवे स्टेहन पठानकोट यहां से 85 किमी की दूरी पर है !
दुर्गियाना मंदिर |
जालियांवाला बाग, प्रवेश द्वार |
जालियांवाला बाग |
डलहौजी की शाम |
खजियार |
खज्जीनाग मंदिर पंचपुला झरने की ओर
पंचपुला झरना |
लौटने का समय हो रहा था ! वैसे भी पहाड़ों में प्रचलित एक कहावत के अनुसार तीन Unpredictable ''W'' में से एक, Weather के स्वभाव में बदलाव आता दिख रहा था ! आस-पास की पहाड़ियों पर घने काले बादल छाने व मंडराने लग गए थे ! इसके पहले कि उसका मिजाज और खराब होता, हमने अपने होटल की शरण लेना श्रेयकर समझा ! परंतु इस हालात में भी शॉपिंग का प्रेम कुछ लोगों को मॉल की ओर ले ही गया ! पर बारिश ने उस प्रेम पर अपना आँचल डाल दिया ! फिर क्या....., वही हुआ जो मंजूरे बरसात था 😃
-- कल धर्मशाला की ओर
देश प्रेम से ओत-प्रोत उस परिवेश में रमे-बसे लोग भूल गए थे गर्मी को, अपनी थकान को, अपनी भूख-प्यास को ! यदि कुछ था तो देश, देश की सेना और देश प्रेम ! यहां आ कर अपने और अपने पडोसी का फर्क साफ दिखाई-सुझाई पड़ने लगा था ! जहां इस ओर नाचते-गाते जयकारा लगाते हजारों-हजार लोग, वातावरण के साथ एकाकार हो रहे थे, वहीं चंद कदमों की दूरी पर, फाटक के दूसरी ओर पाकिस्तानी परिवेश में सन्नाटा पसरा हुआ था ! गिनती के पांच-सात लोग एक कोने में सिमटे बैठे थे ! वे भी शायद इधर की रौनक ही देखने आए लगते थे.........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
इस बार RSCB के कार्यक्रम के तहत मई के उत्तरार्द्ध में अमृतसर-डलहौज़ी-चिंतपूर्णी यात्रा की बागडोर मुझे संभालनी थी ! चूँकि सारी रूपरेखा हफ़्तों पहले से ही तय हो जाती है, इसलिए निर्धारित समय पर पड़ने वाली गर्मी जरा चिंता का विषय तो थी, पर मौसम के अजीबोगरीब उलटफेर के चलते पूरे मई के महीने ने अपने तेवर कुछ हद तक ढीले ही रखे ! हालांकि जब 22 मई की सुबह शताब्दी से चल कर हमारा तीस जनों का ग्रुप अमृतसर स्टेशन पर उतरा तो पारा 42-43 के बीच पींगे ले रहा था !
अटारी-वाघा बॉर्डर भारत और पाकिस्तान के बीच एक अहम स्थान है। यह भारत और पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है, जो अमृतसर (भारत) और लाहौर (पाकिस्तान) के बीच ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है। यहां रोजाना एक समारोह का आयोजन होता है जिसे बीटिंग रिट्रीट कहते हैं। जिसके दौरान संध्या समय दोनों देशों के झंडे सम्मान और विधिपूर्वक उतारे जाते हैं ! इस कार्यक्रम के लिए बार्डर को नियमित रूप से रोज पर्यटकों के लिए खोला जाता है। उस दिन यानी 22 मई की शाम वहां हमारी हाजरी लगनी थी ! इस तरह की यात्राओं की रूप-रेखा तैयार करने वाली, हमारी संस्था से वर्षों से जुड़ी, अनुभवी और दक्ष FOXTRAV की टीम ने वहां सीटों की अग्रिम बुकिंग करवा रखी थी ! ऐसा न होने पर अपार भीड़ के कारण, उस भव्य परेड को सिर्फ वहां लगे बड़े स्क्रीन वाले टीवी पर ही देखना संभव हो पाता ! होटल में सामान वगैरह रख हम सब तकरीबन 4.30 बजे बॉर्डर पर पहुँच अपने निर्धारित स्थानों पर बैठ गए, जो सीमा पर के गेट के बिलकुल पास था !
हमारा ग्रुप |
अपार जन समूह वहां पहले से ही विद्यमान था ! गर्मी के बावजूद ठठ्ठ के ठठ्ठ लोग आए जा रहे थे ! लोगों का अटूट रेला, जिसमें बूढ़े, बच्चे, युवक, युवतियां, महिलाएं सभी शामिल थे, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था ! ऊँची आवाज में बज रहे, देश प्रेम में पगे गाने लोगों के उत्साह को सातवें आसमान तक पहुंचा रहे थे ! बी.एस.एफ. का एक जवान अपनी तेज-तर्रार शैली में लगातार लोगों में जोश भरे जा रहा था ! उसका कौशल, उसकी ऊर्जा, उसकी शैली देखने लायक थी ! उस माहौल का वहां उपस्थित रह कर ही अनुभव किया जा सकता है ! शब्दों में वर्णन असंभव है !
असली भारत |
उस ओर व्याप्त सन्नाटा |
जय हिंद, जय हिंद की सेना !
आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...