गुरुवार, 15 जून 2023

दिल की जुबान हैं, आंसू

ऐसा समझा या माना जाता है कि कभी ना रोनेवाले या कम रोनेवाले मजबूत दिल के होते हैं ! पर डाक्टरों का नजरिया अलग है, उनके अनुसार ऐसे व्यक्ति असामान्य होते हैं ! उनका मन रोगी हो सकता है ! ऐसे व्यक्तियों को रोने की सलाह दी जाती है ! तो जब भी कभी आंसू बहाने का दिल करे (प्रभू की दया से मौके खुशी के ही हों) तो झिझकें नहीं ! पर इसके साथ ही यह भी ध्यान रहे कि आप के कारण किसी  के  आंसू ना  बहें .........!

#हिन्दी_ब्लागिंग  

दुनिया में शायद ही कोइ ऐसा इंसान होगा जिसकी आंखों से कभी आंसू न बहे हों ! जीवन के विभिन्न  हालातों, परिस्थितियों, घटनाओं  से इनका अटूट संबंध रहता है। समय कैसा भी हो, दुख का, पीड़ा का, ग्लानी का, परेशानी का, खुशी का, यह नयन जल, नयनों का बांध तोड़ खुद को उजागर कर ही देता है ! मन की विभिन्न अवस्थाओं पर शरीर की प्रतिक्रिया के फलस्वरुप आंखों से बहने वाला, जब भावनाएं बेकाबू हो जाती हैं तो मन को संभालने वाला, दुःख के समय मन को हल्का करने वाला, सुख के अतिरेक में भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम, हमारे शरीर का साथी है, यह "अश्रु" ! इतना ही नहीं सामान्य अवस्था में यह हमारी आंखों को साफ तथा कीटाणु-जीवाणु मुक्त भी रखता है। 
आंसू
इसके सामान्यतया तीन रूप होते हैं ! पहले हैं बेसल आंसू ! जो आंखों में नमी तथा स्नेहन की स्थिति बनाए रखते हैं, जिससे आँख साफ रहती है और आंखों का सूखेपन से होने वाले नुक्सान से बचाव होता है ! दूसरे होते हैं रीफ्लेक्स आंसू ! वह जल जो कभी धूल-कण या किसी कीड़े वगैरह के आँख में पड़ जाने से आंखों भर आता है, जिससे अवांछित वस्तु आँख से बाहर आ जाती है और तीसरा जो सबसे अहम् है, वह है साइकिक आंसू ! रुदन-समय पर बहने वाला रूप ! आंसू  हमारी मनोदशा को भी उजागर कर देते हैं ! दुख या सुख में निकलने वाले आंसू जाहिर कर देते हैं कि व्यक्ति खुश है या दुखी ! इसीलिए शायरों ने इन्हें दिल की जुबान कहा है ! वैसे बीमारी तथा भोज्य पदार्थ की तीक्ष्णता इत्यादि के कारण भी यह आंखों से बहने लगते हैं !  

आंसू का निर्माण "लैक्रिमल सैक" नाम की ग्रन्थी से होता है। भावनाओं की तीव्रता आंखों में एक रासायनिक क्रिया को जन्म देती है, जिसके फलस्वरुप आंसू बहने लगते हैं ! इसका रासायनिक परीक्षण बताता है कि इसका 94 प्रतिशत पानी तथा बाकी का भाग रासायनिक तत्वों का होता है। जिसमें कुछ क्षार और लाईसोजाइम नाम का एक यौगिक रहता है, जो कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है। इसी के कारण हमारी आंखें जिवाणुमुक्त रह पाती हैं ! वैज्ञानिकों के अनुसार आंसूओं में इतनी अधिक कीटाणुनाशक क्षमता होती है कि इससे  छह हजार गुना ज्यादा  जल में भी इसका प्रभाव बना रहता है यानी एक चम्मच आंसू तकरीबन सौ गैलन पानी को कीटाणु रहित कर सकता है !

इन आंसुओं के बारे में वैज्ञानिक लंबे समय से रिसर्च कर रहे हैं ! प्रकृति की इस विलक्षण देन के अनुसंधान से कई अनोखे तथ्य सामने आए हैं ! जर्मन शोध की मानें तो महिलाएं, पुरुषों से अधिक रोती हैं ! महिलाओं के आंसुओं से संबंधित ग्लैंड पुरुषों से अधिक सक्रीय होते हैं और उनकी बनावट भी अलग होती है ! वैसे भी महिलाएं पुरुषों से ज्यादा भावुक होती हैं ! अब लोगों के "घंटों रोने" की बात मुहावरा बन चुकी है, क्योंकि आमतौर पर महिलाएं औसतन एक बार में कम से कम छह मिनट तक रोती हैं, जबकि पुरुषों के लिए आंसू बहने की अवधि आमतौर पर दो से चार मिनट तक ही होती है !    

बहुत छोटे बच्चे जब रोते हैं तो उनके आंसू नहीं बहते ! लगभग छः माह की उम्र होने तक रोने पर भी बच्चों की आँख से आँसू नहीं निकलते सिर्फ रोने की आवाज ही आती है ! आंसू बनाने वाला लैक्रिमल ग्लैंड आंखों के ऊपरी हिस्से में स्थित होता है ! बहुत अधिक आंसू बनने की दशा में ये आँखों से बाहर आने के साथ-साथ श्वास नली में भी चले जाते हैं, जिससे नाक बहने लगती है ! प्याज काटते वक्त इससे निकलने वाला ऑक्साइड, लैक्रिमल ग्लैंड को प्रभावित करता है ! यही वजह है प्याज काटते वक्त आंखों में जलन के साथ आंसू निकलते हैं। 
दुःख के आंसू 
प्राणी शास्त्रियों का कहना है कि सिर्फ बंदर ही ऐसा जीव है, जो दुख या तकलीफ में हमारी तरह आंसू बहाता है ! जानवर हमारी तरह आंसू बहाकर अपना दुख व्यक्त नहीं करते हैं। फिर भी जानवरों की आंखों से जो आंसू निकलते देखे जाते हैं, उनका जानवरों के दुख और तकलीफ से कोई लेना-देना नहीं है ! वह उनकी आँखों को साफ़ रखने की प्राकृतिक क्रिया है ! हम जब रोते हैं तो हमारी आंखों के चारों ओर की मांसपेशियों में खिंचाव होता है और हमारी अश्रुग्रंथियों पर दबाव पड़ता है, जिसकी वजह से आंसू बह निकलते हैं पर जानवरों में इस तरह की मांसपेशियां होती ही नहीं हैं ! उनका अपने दुःख-तकलीफ को जाहिर करने का दूसरा तरीका होता है !
खुशी के आँसू 
ऐसा समझा या माना जाता है कि कभी ना रोनेवाले या कम रोनेवाले मजबूत दिल के होते हैं ! पर डाक्टरों का नजरिया अलग है, उनके अनुसार ऐसे व्यक्ति असामान्य होते हैं ! उनका मन रोगी हो सकता है ! ऐसे व्यक्तियों को रोने की सलाह दी जाती है ! तो जब भी कभी आंसू बहाने का दिल करे (प्रभू की दया से मौके खुशी के ही हों) तो झिझकें नहीं ! पर इसके साथ ही यह भी ध्यान रहे कि हमारे कारण किसी और के आँसूं ना  बहें !
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आंसू की इस परिभाषा का भी ध्यान रखें -
It is a Hydraulic force through which Masculine WILL POWER defeated by Feminine WATER POWER. 😅

शुक्रवार, 9 जून 2023

यादगार यात्रा, डलहौजी-खजियार की

पहाड़ों में प्रचलित एक कहावत के अनुसार तीन Unpredictable ''W'' में से एक, Weather, का शाम होते-होते मिजाज बदलने लगा था ! आस-पास की पहाड़ियों पर घने काले बादल छाने व मंडराने लग गए थे ! इसके पहले कि उसका गुस्सा बढ़ता हमने अपने होटल की शरण लेना बेहतर समझा ! परंतु शॉपिंग का प्रेम कुछ लोगों को मॉल की ओर ले तो गया, पर बारिश ने प्रेम पर अपना आँचल डाल दिया, फिर क्या ! वही हुआ जो मंजूरे बरसात था ! कुछ लेना-खरीदना तो दूर जो अपने पास था वह भी पानी-पानी हो गया 😃

#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

RSCB के मई के उत्तरार्द्ध के अमृतसर-चिंतपूर्णी यात्रा का अमृतसर के बाद दूसरा पड़ाव था, हिमाचल का खूबसूरत, छोटा सा पहाड़ी शहर डलहौजी ! सफर के दूसरे दिन होटल वगैरह की कार्यवाही निपटा, जालियांवाला बाग में श्रद्धांजलि अर्पित करने और दुर्गयाणा मंदिर के दर्शनों के पश्चात हमारी स्वस्थ-प्रसन्न टोली ने यहां से तक़रीबन 198 किमी दूर स्थित डलहौजी का रूख किया ! सड़क मार्ग से डलहौज़ी दिल्ली से 555 किमी तथा चंबा से 45 किमी है ! इसका निकटतम रेलवे स्टेहन पठानकोट यहां से 85 किमी की दूरी पर है !   

दुर्गियाना मंदिर 

जालियांवाला बाग, प्रवेश द्वार 

जालियांवाला बाग 

डलहौजी, 19वीं शताब्दी में भारत के ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी के नाम पर इसका नामकरण किया गया था ! धौलाधार पर्वत श्रृंखला की पांच पहाड़ियों, कैथलॉग, पोट्रेस, तेहरा, बकरोटा और बोलुन, पर बसा यह शहर, अपने सुरम्य परिदृश्य, अद्भुत वनों, प्राकृतिक दृश्यों, हरी, मृदु घास के मैदानों के लिए पर्यटकों में खासा लोकप्रिय है ! धुंध से घिरी धौलाधार पर्वत की घाटियां, उसकी स्वप्निल चोटियों से निकलती तेज प्रवाह नदियों के अनूठे घुमावदार मोड़, दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं ! यहां के ब्रिटिश कालीन, संरक्षित चर्च अपनी अनोखी वास्तुकला के चलते अभी भी बेहद दर्शनीय हैं ! 

डलहौजी

डलहौजी की शाम 
हाड़ी रास्ते के कारण डलहौजी के निर्धारित होटल तक पहुंचते-पहुंचते रात घिर आई थी ! कुछ बस यात्रा की थकान भी थी, सो कहीं बाहर ना जा, सभी सदस्यों ने चाय के सहारे एक साथ मिल-बैठ कर बेहतरीन समय का आनंद उठाया ! बेतकल्लुफ़ी के माहौल में एक-दूसरे को बेहतर तरीके से समझना-जानना हुआ ! कितनों की दबी-ढकी प्रतिभाएं सामने आईं ! एक-दूसरे के अनुभवों का, जानकारियों का आदान-प्रदान हुआ ! फिर सबने एक-दूसरे से विदा ली ! अगले दिन खजियार भी तो जाना था !

खजियार

खजियार
खजियार, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत में एक से एक खूबसूरत, मनोरम व सकूनदायक पहाड़ी स्थल हैं। उन्हीं में से एक है, हिमाचल के डलहौजी शहर से करीब 24 किमी दूर एक मनोहारी स्थल, खजियार ! जिसने अपनी अत्यधिक प्राकृतिक सुंदरता के कारण, मिनी स्विटरजलैंड का खिताब हासिल किया हुआ है ! चारों ओर से चीड़ के वृक्षों से घिरे इसके बुग्याल में एक मनोरम झील भी है, जिसे खजियार लेक के नाम से जाना जाता है ! झील के पास ही एक नाग मंदिर है, जहां प्रस्तर से बनी नागदेवता की मूर्ति की विधिवत रोजाना पूजा की जाती है ! पहाड़ी स्थापत्य कला में निर्मित 10वीं शताब्दी का यह धार्मिक स्थल खज्जी नाग मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के मंडप के कोनों में पांच पांडवों की लकड़ी की मूर्तियां स्थापित हैं। मान्यता है कि पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहां आकर ठहरे थे। यहां की लोक-मान्यता के अनुसार इस जगह का नाम खज्जी नाग  के नाम पर पड़ा है, जिनका मूल निवास आज भी इसी झील में है !

खज्जीनाग मंदिर 
पंचपुला झरने की ओर 

पंचपुला झरना 
एक लोक कथा के अनुसार सदियों पहले पूंपर नामक इस गांव के लोगों को एक बार पहाड़ पर कुछ चमकीली चीज दिखाई दी ! उनके वहां खजाना समझ खुदाई करने पर चार नाग देवता प्रगट हुए ! जिनके आदेशानुसार उन्हें एक डोली में बैठा, नीचे ले आया जाने लगा, पर रास्ते में सुकरेही नामक स्थान पर डोली के अत्यधिक भारी हो जाने के कारण उसे वहीं रख देना पड़ा ! तब चारों नाग देवता वहां से अलग-अलग जगहों, खजियार, नधूईं, चुवाड़ी और जमुहार में जा कर बस गए ! तभी से इस जगह को खज्जी नाग के नाम पर खजियार या खज्जियार कहा जाने लगा ! खजियार के पास ही कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जिनमें कालाटोप वन्यजीव अभ्यारण्य, पंचपुला, सुभाष बावली इत्यादि प्रमुख हैं !

                                                                 मस्ती, खुले दिल से           

लौटने का समय हो रहा था ! वैसे भी पहाड़ों में प्रचलित एक कहावत के अनुसार तीन Unpredictable ''W'' में से एक, Weather के स्वभाव में बदलाव आता दिख रहा था ! आस-पास की पहाड़ियों पर घने काले बादल छाने व मंडराने लग गए थे ! इसके पहले कि उसका मिजाज और खराब होता, हमने अपने होटल की शरण लेना श्रेयकर समझा ! परंतु इस हालात में भी शॉपिंग का प्रेम कुछ लोगों को मॉल की ओर ले ही गया ! पर बारिश ने उस प्रेम पर अपना आँचल डाल दिया ! फिर क्या....., वही हुआ जो मंजूरे बरसात था 😃   

-- कल धर्मशाला की ओर 

रविवार, 4 जून 2023

अटारी-वाघा, एक अनूठा अनुभव

देश प्रेम से ओत-प्रोत उस परिवेश में रमे-बसे लोग भूल गए थे गर्मी को, अपनी थकान को, अपनी भूख-प्यास को ! यदि कुछ था तो देश, देश की सेना और देश प्रेम ! यहां आ कर अपने और अपने पडोसी का फर्क साफ दिखाई-सुझाई पड़ने लगा था ! जहां इस ओर नाचते-गाते जयकारा लगाते हजारों-हजार लोग, वातावरण के साथ एकाकार हो रहे थे, वहीं चंद कदमों की दूरी पर, फाटक के दूसरी ओर पाकिस्तानी परिवेश में सन्नाटा पसरा हुआ था ! गिनती के पांच-सात लोग एक कोने में सिमटे बैठे थे ! वे भी शायद इधर की रौनक ही देखने आए लगते थे.........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

इस बार RSCB के कार्यक्रम के तहत मई के उत्तरार्द्ध में अमृतसर-डलहौज़ी-चिंतपूर्णी यात्रा की बागडोर मुझे संभालनी थी ! चूँकि सारी रूपरेखा हफ़्तों पहले से ही तय हो जाती है, इसलिए निर्धारित समय पर पड़ने वाली गर्मी जरा चिंता का विषय तो थी, पर मौसम के अजीबोगरीब उलटफेर के चलते पूरे मई के महीने ने अपने तेवर कुछ हद तक ढीले ही रखे ! हालांकि जब 22 मई की सुबह शताब्दी से चल कर हमारा तीस जनों का ग्रुप अमृतसर स्टेशन पर उतरा तो पारा 42-43 के बीच पींगे ले रहा था !  


अटारी-वाघा बॉर्डर भारत और पाकिस्तान के बीच एक अहम स्थान है। यह भारत और पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है, जो अमृतसर (भारत) और लाहौर (पाकिस्तान) के बीच ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है। यहां रोजाना एक समारोह का आयोजन होता है जिसे बीटिंग रिट्रीट कहते हैं। जिसके दौरान संध्या समय दोनों देशों के झंडे सम्मान और विधिपूर्वक उतारे जाते हैं ! इस कार्यक्रम के लिए बार्डर को नियमित रूप से रोज पर्यटकों के लिए खोला जाता है। उस दिन यानी 22 मई की शाम वहां हमारी हाजरी लगनी थी ! इस तरह की यात्राओं की रूप-रेखा तैयार करने वाली, हमारी संस्था से वर्षों से जुड़ी, अनुभवी और दक्ष  FOXTRAV की टीम ने वहां सीटों की अग्रिम बुकिंग करवा रखी थी ! ऐसा न होने पर अपार भीड़ के कारण, उस भव्य परेड को सिर्फ वहां लगे बड़े स्क्रीन वाले टीवी पर ही देखना संभव हो पाता ! होटल में सामान वगैरह रख हम सब तकरीबन 4.30 बजे बॉर्डर पर पहुँच अपने निर्धारित स्थानों पर बैठ गए, जो सीमा पर के गेट के बिलकुल पास था ! 

हमारा ग्रुप 

अपार जन समूह वहां पहले से ही विद्यमान था ! गर्मी के बावजूद ठठ्ठ के ठठ्ठ लोग आए जा रहे थे ! लोगों का अटूट रेला, जिसमें बूढ़े, बच्चे, युवक, युवतियां, महिलाएं सभी शामिल थे, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था ! ऊँची आवाज में बज रहे, देश प्रेम में पगे गाने लोगों के उत्साह को सातवें आसमान तक पहुंचा रहे थे ! बी.एस.एफ. का एक जवान अपनी तेज-तर्रार शैली में लगातार लोगों में जोश भरे जा रहा था ! उसका कौशल, उसकी ऊर्जा, उसकी शैली देखने लायक थी ! उस माहौल का वहां उपस्थित रह कर ही अनुभव किया जा सकता है ! शब्दों में वर्णन असंभव है ! 


असली भारत 
देश प्रेम से ओत-प्रोत उस परिवेश में रमे-बसे लोग भूल गए थे गर्मी को, अपनी थकान को, अपनी भूख-प्यास को ! यदि कुछ था तो देश, देश की सेना और देश प्रेम ! यहां आ कर अपने और अपने पडोसी का फर्क साफ दिखाई-सुझाई पड़ने लगा था ! जहां इस ओर नाचते-गाते, जयकारा लगाते हजारों-हजार लोग, वातावरण के साथ एकाकार हो गए थे, वहीं चंद कदमों की दूरी पर, फाटक के दूसरी ओर पाकिस्तानी परिवेश में सन्नाटा पसरा हुआ था ! गिनती के पांच-सात लोग एक कोने में सिमटे बैठे थे ! वे भी शायद इधर की रौनक ही देखने आए लगते थे !


उस ओर व्याप्त सन्नाटा 
सीमा पर झंडों को उतारने का समारोह एक दैनिक अभ्यास है ! जो दोनों देशों के सुरक्षा बलों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है। झंडों को उतारने से पहले विशेष ड्रिल का आयोजन होता है जिसमें विस्तृत और लयबद्ध परेड में पैरों को जितना संभव हो उतना ऊंचा उठाना होता है ! यह समारोह हर शाम सूर्यास्त से ठीक पहले दोनों पक्षों के सैनिकों द्वारा धमाकेदार परेड के साथ शुरू होता है ! जैसे ही सूरज ढलता है, सीमा पर लगे लोहे के गेट खोल दिए जाते हैं और दोनों देशों के झंडों को पूरी तरह से समन्वित रूप से एक साथ उतार, सम्मान के साथ लपेट कर ले जाया जाता है ! इसके साथ ही समारोह एक रिट्रीट के साथ समाप्त हो जाता है ! जिसके बाद फाटकों को फिर से बंद कर दिया जाता है। इस अनोखे कार्यक्रम को देखने दोनों ओर के लोगों के साथ ही विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं !   

उस दिन परेड की शुरुआत दो महिला कैडेट को करते देख, वहां उपस्थित हर देशवासी उनका अभिनंदन करने से खुद को नहीं रोक पा रहा था ! पड़ोस के देश में जहां महिलाओं का सांस लेना दूभर होता जा रहा है वहीं अपने यहां उनको देश की सुरक्षा में खड़ा देख हर नागरिक का मस्तक गर्व से ऊँचा हो जाता है ! अंत में मैं FOXTRAV और उनकी तरफ से हमारे साथ आए अंकित राजपूत को हार्दिक धन्यवाद देना चाहूंगा, जिन्होंने हम वरिष्ठ नागरिकों की अपने घर के बुजुर्गों की,  बिना किसी शिकायत और थकान के, देख-रेख और सहायता की ! उनके सहयोग की जितनी तारीफ की जाए कम है ! 

जय हिंद, जय हिंद की सेना !

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"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...