शिकायत उससे भी नहीं करता ! उसकी यही इच्छा है तो यही सही ! उसी का अंश हूँ ! उसी की कृति हूँ ! इंतजार करता हूं, अगली सुबह का, जो फिर ले कर आएगी एक नया जोश, नया विश्वास मेरे लिए ! लगता है "फीनिक्स' बन गया हूँ ! रोज झोंक देता हूँ, खुद को जिंदगी के अलाव में ! तप कर, जल कर, शायद निखर कर फिर उठ खड़ा होता हूँ, अन्यायों का, आरोपों का, मिथ्या वचनों का, प्रपंचों का सामना करने हेतु ! पर कितने दिन.......नहीं जानता !
#हिन्दी_ब्लागिंग
थक जाता हूंँ ! हो जाता हूँ मायूस ! घेर लेते हैं निराशा के अंधेरे ! भीतर ही भीतर कहीं एक भय डेरा जमाने लगता है ! हो जाता हूं पस्त ! हताश-निराश ! पसर जाता हूं, बिस्तर पर एक घायल सैनिक की तरह ! पर हार नहीं मानता, परास्त नहीं होता ! कोशिश करता हूँ जिजीविषा को बचाए रखने की
इसीलिए इंतजार करता हूं फिर अगली सुबह का, जो फिर ले कर आएगी एक नया जोश, नया विश्वास, एक नई आशा मेरे लिए ! स्थावर तो कुछ भी नहीं है...... समय भी नहीं ! लगता है फीनिक्स बन गया हूँ ! रोज झोंक देता हूँ खुद को जिंदगी के अलाव में ! तप कर, जल कर, शायद निखर कर फिर उठ खड़ा होता हूँ, अन्यायों का, आरोपों का, मिथ्या वचनों का, प्रपंचों का सामना करने हेतु ! पर कितने दिन.......नहीं जानता !!!
17 टिप्पणियां:
कर्म करते रहिये ,कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकलेगा ,शुभकामनायें |
अनुपमा जी, हार्दिक आभार आपका
उम्मीद पर दुनिया कायम ।
बिलकुल संगीता जी, बेहतरी की उम्मीद लगाए इंसान जीवन बिता देता है
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-6-22) को "सफर चल रहा है अनजाना" (चर्चा अंक-4459) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सही कहा कि कभी तो लगता हैं कि सारी विषमताएं बस हमें झुकाने तोड़ने और हराने के लिए ही हैं बस इसी उम्मीद के साथ जीते है कि कल न ई सुबह के साथ सब ठीक हो
बहुत सटीक एवं विचारणीय लेख ।
कामिनी जी,
मान देने हेतु आपका हार्दिक आभार 🙏
सुधा जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका 🙏
शर्माजी, नकारात्मक सोच के अंधेरे से बाहर निकलने के लिए हमें अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना होता है। थोड़े से प्रयास से दृष्टिकोण को बदलकर हम सकारात्मकता के प्रकाश की ओर बढ़ सकते हैं।...और फिर आपने ही तो स्वयं को एक घायल सैनिक कहा और सैनिक जूझता रहता है बिना थके..सो अब से आप बस, अपने मस्तिष्क में बने हुए अपने दृष्टिकोण और उसकी शब्दावली में थोड़ा सा हेर-फेर कर लें।
स्वर्ण तप कर कुंदन बन जाता है।
जीवन में उतार चढ़ाव चलते रहते हैं,
बस हौसला कभी नहीं खोना तो सब ठीक है।
अलकनंदा जी
सदा स्वागत है आपका
कुसुम जी
यही तो जीवन है... हार्दिक आभार🙏
सकारात्मक संदेश देती बहुत सुंदर रचना।
ज्योति जी
सदा स्वागत है आपका🙏🏻
सकारात्मक संदेश
संजय जी
हार्दिक आभार🙏
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