कुटिल अंग्रेजों ने वीर सावरकर जी को जानबूझ कर ऐसी कोठरी में रखा था जिसके सामने फांसी और दंडस्थल थे ! जिससे सजायाफ्ता कैदियों को क्रूरता से दंड पाते देख वे टूट जाएं, पर उनकी यह मंशा कभी पूरी नहीं हुई ! आज तो इस जगह को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया है। बिजली-पानी की सुविधा, उच्च कोटि के रखरखाव, साफ़-सफाई, लॉन और फूलों की क्यारियों से सुसज्जित होने के कारण जेल दर्शनीय हो गई है ! पर पुराने चित्रों और वर्णनों में इसकी जो तस्वीर उभरती है वो ह्रदय-विदारक है...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
देश के विभिन्न हिस्सों की यात्रा के बनिस्पत, सुदूर स्थित, अंडमान जाना कुछ अलग मायने रखता है ! वर्षों से वहाँ जाने का सपना पलने के बावजूद विभिन्न कारणों से वह साकार नहीं हो पा रहा था ! पर पिछले दिनों महामारी से कुछ हद तक उबरने के पश्चात अपनी #RSCB (Retired and Senior Citizen Brotherhood) संस्था द्वारा उपलब्ध अवसर को, काफी इट्स-बट्स, शंका-कुशंका, हाँ-ना, फेर-बदल, कुछ-कुछ विपरीत हालात-परिस्थितियों के बावजूद, बेजा ना जाने देने का निर्णय ले ही लिया ! इसमें दो साल पहले की केरल यात्रा के साथी श्री और श्रीमती बेदी जी तथा सुश्री कैलाश जी का साथ भी मिल गया। यात्रा 11 दिसम्बर से 16 दिसंबर तक की थी।
|
अंतरिक्ष में बाल रवि की अंगड़ाई |
|
बादलों का अद्भुत रेगिस्तान |
पहला दिन -
जेनिथ हॉस्पिटालिटी ट्रैवल एजेंसी द्वारा संचालित इस पर्यटन के लिए गो-एयर की सुबह छह बजे की फ्लाइट निश्चित की गई थी ! जिसके लिए रात के तीन बजे एयर पोर्ट पर सभी 28 सदस्यों को इकट्ठा होना था ! यह उड़ान बैंगलुरु होते हुए पोर्टब्लेयर जाती है जिसमें तकरीबन सात घंटे लग जाते हैं ! करीब सवा एक बजे पोर्टब्लेयर पहुंचने पर कोरोना की वजह से गहन जांच के कारण निकलते-निकलते तीन बज गए ! दिल्ली के ठंड के विपरीत यहां का तापमान 30*c को छू रहा था ! काफी गर्मी थी ! एयर पोर्ट से होटल नजदीक ही था फिर भी जब सेलुलर जेल देखने के लिए निकले, तब घड़ी चार का आंकड़ा पार कर ही गई थी। अच्छी बात यह थी कि यहां कहीं भी आने-जाने में 10-15 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगता।
|
परिसर |
|
संग्रहालय |
सेलुलर जेल यानी कालापानी ! इसमें पानी के रंग का नहीं बल्कि काल का भाव समाहित है ! काल, यानी मृत्यु या मौत ! कालापानी शब्द का अर्थ मृत्यु जल या मृत्यु के स्थान से है, जहाँ से कोई वापस नहीं आ पाता है ! अंग्रेजों ने अपने विरोधियों, देशभक्त क्रांतिकारियों और दुर्दांत अपराधियों के लिए इस जगह जेल का निर्माण किया था ! किसी को कालेपानी की सजा का मतलब ही था कि उसको अपने बचे हुए जीवन में कठोर और अमानवीय यातनाएँ सहन करते हुए यहीं प्राण त्याग देने हैं ! यहां की सजा नरक तथा मौत की सजा से भी बदतर थी ! कई तो इस सजा को पाने पर यहां आने के पहले ही इसके खौफ से आत्महत्या कर लेते थे !
दस सालों में बनी इस सात विंग्स और तीन मंजिला इमारत के लिए ईंटें बर्मा से तथा बाकी लोहे इत्यादि का सामान इंग्लॅण्ड से लाया गया था। इस जेल में कुल 698 कोठरियां बनी थीं और प्रत्येक कोठरी 15×8 फीट की थी। इन कोठरियों में तीन मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान बनाए गए थे ताकि कोई भी कैदी दूसरे कैदी से बात न कर सके। कोठरी में ताला कुछ इस ढंग से लगाया जाता था कि कितनी भी कोशिश कर ली जाए अंदर से उस तक हाथ नहीं पहुँच सकता था ! कहते हैं कि कोठरी में ताला लगा चाबियां अंदर ही फेंक दी जाती थीं पर उनको अंदर से ताले तक पहुँचाना नामुमकिन होता था। इसके अलावा हर पक्ष या खंड के सामने दूसरे खंड का पिछवाड़ा बनाया गया था जिससे कोई भी कैदी न एक दूसरे को देख सके ना हीं इशारों में बात कर सके ! नृशंसता की हद यह थी कि द्वीप के चारों ओर सैंकड़ों मीलों तक पानी होने और भागने की जरा सी भी गुंजायश न होने के बावजूद कैदियों को हथकड़ी-बेड़ी से जकड कर रखा जाता था ! पशुओं से भी ज्यादा बुरा बर्ताव और खाने के नाम पर रेत और कंकड़ मिला भोजन ! रोजमर्रा के कार्यों का लक्ष्य ऐसा जो पूरा हो ही ना पाए और इसी बहाने फिर कैदियों को अमानुषिक दंड देने का स्वनिर्मित विधान ! न्याय-अन्याय की कोई परिभाषा नहीं ! ना कोई पूछने वाला ना कोई देखने वाला ! कितनों को ही मार कर समुद्र में फेंक दिया जाता था, जिसका कोई हिसाब नहीं !
|
जेल की छत |
|
छत से दिखता सागर |
|
प्रयुक्त होने वाले ताला-चाबी |
|
एक साथ तीन जनों को फांसी दी जा सकती थी |
|
इसी लिवर को खींच फांसी दी जाती थी |
|
फर्श की तख्तियां |
|
फांसी गृह के नीचे 8 x 8 का कमरा |
कुटिल अंग्रेजों ने वीर सावरकर जी को जानबूझ कर ऐसी कोठरी में रखा था जिसके सामने फांसी और दंड स्थल थे ! जिससे सजायाफ्ता कैदियों को क्रूरता से दंड पाते देख वे टूट जाएं, पर उनकी यह मंशा कभी पूरी नहीं हुई ! आज तो इस जगह को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया है। बिजली-पानी की सुविधा, उच्च कोटि के रखरखाव, साफ़-सफाई, लॉन और फूलों की क्यारियों से सुसज्जित होने के कारण जेल दर्शनीय हो गई है ! पर पुराने चित्रों और वर्णनों में इसकी जो तस्वीर उभरती है वो ह्रदय-विदारक है !
|
जेल की कोठरियां |
|
इसी गलियारे के अंत में सावरकर जी की कोठरी है |
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ढाए गए अत्याचारों का सिलसिलेवार विवरण जब यहां आयोजित ''लाइट और साउंड शो'' में सामने आता है, तो उपस्थित दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और आँखें नम हो जाती हैं ! खेद होता है कुछ पूर्वाग्रहों से ग्रसित लोगों की अक्ल और विचारों को देख-सुन कर, जिन्हें ना यहां के इतिहास की और ना ही यहां की परिस्थितियों की कोई जानकारी है पर सिर्फ अपना मतलब सिद्ध करने हेतु किसी व्यक्ति विशेष को लक्ष्य कर अमर्यादित टिप्पणियां करने से बाज नहीं आते !
|
साउंड और लाइट शो |
करीब सात बजे शो खत्म होने पर दो दिनों की थकान से निढाल तन और शहीदों की कुर्बानियों की गाथा से भारी मन को लेकर होटल पहुंचे ! किसी तरह भोजन निपटा सभी सदस्य साढ़े आठ, नौ बजे तक गहरी निद्रा की गोद में बेसुध हो चुके थे ! दूसरे दिन रॉस आइलैंड तथा नॉर्थ बे टापू तक जाने के लिए तरो-ताजा होने हेतु !
17 टिप्पणियां:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(३०-१२ -२०२१) को
'मंज़िल दर मंज़िल'( चर्चा अंक-४२९४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
सर, बहुत ही सुंदर चित्रों के साथ आपने हमें भी उस पावन भूमि के दर्शन करा दिये जिस भूमि पर वीर सावरकर जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने असहनीय यातनाओं को सहा वो भी हमारे लिए। जय हिन्द। जय भारत॥
हर्षवर्धन जी
सदा खुश रहिए
रवींद्र जी
पंचामृत में सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
सविस्तर वर्णन और सुंदर चित्रों के माध्यम से अंडमान की सैर ही करा दी आपने, गगन भाई।
बहुत ही सुन्दर तस्वीरें एवं रोचक जानकारी के युक्त लाजवाब आलेख।
बहुत बहुत सुन्दर लेख
बहुत सुंदर वृतांत, जानकारी, सुंदर तस्वीरें।
रोचकता से भरपूर।
सुंदर ब्लॉग!
ज्योति जी
बहुत सुंदर जगह है! शायद अभी "भीड़" नहीं पहुंची है, इसलिए भी!
सुधा जी
अनेकानेक धन्यवाद
आलोक जी
हार्दिक आभार
कुसुम जी
सदा स्वागत है आपका
जोग जी
हार्दिक धन्यवाद
ऐसी विस्तृत जानकारी के लिए हार्दिक आभार
हार्दिक धन्यवाद, कदम जी
एक टिप्पणी भेजें