अपने देश में भी ऐसा एक विचित्र वस्तु का संग्रहालय है जिसके बारे में अधिकांश देशवासियों को पता ही नहीं है ! जानकारी है भी तो बहुत कम लोगों को ! वह भी आधी-अधूरी ! हालांकि यह हर एक इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा है ! वह है शौचालय ! जिसके बिना किसी भी इंसान का दिन सुचारु रूप से शुरू नहीं हो पाता ! इसी की निर्मात्री संस्था द्वारा एक और अनूठी और अभूतपूर्व पहल भी की गई है ! जिसके तहत हाथ से मैला साफ़ करने जैसे अमानवीय काम से छुटकारा पाने वाले कर्मियों के परिवारों के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बुनियादी सुविधाओं और गुणवत्तापूर्ण मुफ्त शिक्षा प्रदान करने हेतु एक स्कूल का भी निर्माण किया गया है ................!
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
शनिवार, 31 जुलाई 2021
एक अनोखा संग्रहालय, शौचालयों का
#हिन्दी_ब्लागिंग
संग्रहालय एक ऐसा संस्थान है, जिसमे प्राचीन वस्तुओं, युद्धसामग्री, गहने, ममी, जीवाश्म, चित्र आदि का दुर्लभ और पुप्तप्राय चीजों का संग्रह कर शोध, प्रचार व लोगों के अवलोकनार्थ रखा जाता है। जिससे जनसामान्य को उन चीजों के बारे में भी जानकारी मिल सके जिन्हें वर्तमान में देख सकना असंभव है ! इनका उपयोग शिक्षा, अध्ययन और मनोरंजन के लिए होता है। दुनिया के हर देश मे तरह-तरह के संग्रहालय हैं। जिनमें कोशिश की गयी है, अपने देश के इतिहास, विज्ञान, कला-संस्कृति को सहेज कर रखने की। समय के साथ विभिन्न अजीबोगरीब वस्तुओं के संग्रहालय भी अस्तित्व में आते चले गए ! जैसे महिलाओं के बालों का, जीते-जागते इंसानों के मोम के पुतलों का, पुरानी कारों का, जीवों की हड्डियों का, लंच बाक्सों का, जादू की चीजों का, बारीक वस्तुओं का, ट्राफियों का ! कुछ तो ऐसी चीजों के संग्रहालय बना दिए गए हैं जिनका यहां उल्लेख भी नहीं किया जा सकता !
अपने देश में भी एक ऐसा और विचित्र वस्तु का संग्रहालय है जिसके बारे में अधिकांश देशवासियों को पता ही नहीं है ! जानकारी है भी तो बहुत कम लोगों को ! वह भी आधी-अधूरी सी ! हालांकि यह हर एक इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा है ! वह है शौचालय, जिसके बिना किसी भी इंसान का दिन सुचारु रूप से शुरू नहीं हो पाता ! इंसान को अपने सर पर ‘मैला’ ढोने के अभिशाप से मुक्ति दिलवाने का संकल्प ले कर देश में सुलभ शौचालयों की श्रृंखला बनाने वाले डॉ. विंधेश्वरी पाठक ने अपने एन.जी.ओ. द्वारा उन्हीं शौचालयों का एक म्यूजियम देश की राजधानी दिल्ली में बना डाला है !
बिहार से शुरुआत कर सारे देश में धीरे-धीरे स्वच्छता का विस्तार करने वाले पाठकजी के मन में एक ऐसा संग्रहालय बनाने की बात आई जिसमें इस अहम वस्तु के इतिहास और समय-समय पर हुए बदलाव के बारे में पूरी जानकारी हासिल हो। इस योजना को मूर्त रूप देने में इनको अपना अमूल्य समय और ऊर्जा खपानी पड़ी। उन्होंने देश विदेश में आधुनिक और पुरातन काल में काम मे आने वाले शौचालयों के बारे में छोटी से छोटी जानकारी हासिल की। इसके लिये वह जगह-जगह विशेषज्ञों, जानकारों के अलावा अलग-अलग देशों के दूतावासों, उच्चायुक्तों से मिले जिन्होंने उनकी पूरी सहायता कर उन्हें इस क्षेत्र में समय-समय पर आए बदलाव, तकनिकी और शोध की विस्तृत जानकारी तथा फोटो वगैरह उपलब्ध करवाए।
उन्हीं के परिश्रम के फलस्वरूप दिल्ली में ''पालम-दाबड़ी मार्ग'' पर स्थित ''महावीर एन्कलेव" में दुनिया का अकेला, अनूठा, विचित्र और अपूर्व संग्रहालय आम जनता के लिए उपलब्ध हुआ ! इस अजायबघर का उद्देश्य है, इस क्षेत्र में समय-समय पर आए बदलाव और विकास की लोगों को जानकारी देना । प्राचीन काल, इतिहास काल से लेकर अब तक उपयोग में लाए गए उपकरणों के साथ-साथ धन कुबेरों के द्वारा उपयोग में लाए जा रहे सोने के टॉयलेट्स का विवरण भी यहां उपलब्ध है ! इस संग्रहालय का उद्देश्य अवाम को जानकारी प्रदान करने के अलावा इस क्षेत्र से सम्बंधित लोगों को अपनी वस्तुएं बनाने में उपयोगी जानकारी उपलब्ध करवाने तथा उन वस्तुओं की बेहतरी के लिए उच्च स्तर पर शोध में मदद करना है ! जिससे वातावरण को दुषित ना होने देने और प्रकृति को स्वच्छ रखने मे सहायता मिल सके !
इसके अलावा इस संस्था द्वारा एक अनूठी और अभूतपूर्व पहल की गई है ! जिसके तहत हाथ से मैला साफ़ करने जैसे अमानवीय काम से छुटकारा पाने वाले कर्मियों के परिवारों के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बुनियादी सुविधाओं और गुणवत्तापूर्ण मुफ्त शिक्षा प्रदान करने हेतु स्कूल की भी व्यवस्था की गई है ! जिसमें इनके लिए 60% और अन्य जातिसमूहों के लिए 40% स्थान उपलब्ध करवाए जाते हैं ! इस शिक्षण संस्थान का प्रयास है कि इन बच्चों को समाज के हर तबके के साथ साथ मिलने-जुलने-चलने का अवसर मिले जिससे उनमें भी आत्मविश्वास की बढ़ोत्तरी हो ! यह हर्ष का विषय है कि इस स्कूल के बच्चे हर दिशा में सफलता प्राप्त कर रहे हैं।
इस संग्रहालय का उचित व व्यापक प्रचार नहीं हो पाया है। यही कारण है कि दुनिया के इस एकमात्र अजूबे की देश-विदेश की तो क्या ही कहें, अधिकांश दिल्ली वासियों को भी खबर नहीं है। यदि कभी मौका मिले तो एक बार इसे देखने जरूर जाना चाहिए !
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19 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 01 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी
सम्मिलित करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद
बहुत ही अनोखी और अनजानी जानकारी, आभार
कदम जी
स्वागत है आपका
रोचक जानकारी। लॉकडाउन से पहले यहाँ का प्लान था लेकिन फिर रह ही गया।
विकास जी
यही होता है एक बार कुछ छूट जाए तो रह ही जाता है । खासकर जब पास ही हो तो कभी भी देख लेने वाला समय आता ही नहीं है
आभार, सुशील जी
वाह बहुत खूब...। अच्छी जानकारियां...।
संदीप जी
स्वागत है आपका
बिल्कुल नई और अद्भुत जानकारी ।
हमारे तो बिल्कुल ही पास है । कोरोना मुक्त हों तो ये भी देखा जाय ।
संगीता जी
नजदीक की जगह ही अक्सर अनदेखी रह जाती है
दिलचस्प जानकारियां, सच में कुछ अलग सा है आपका अंदाज़ ए बयानी।
शांतनु जी
बहुत-बहुत आभार
नवीनता से भरी सुंदर शानदार जानकारी, बहुत बहुत आभार आपका।
आभार, जिज्ञासा जी
बेहद खूबसूरत शानदार जानकारी
हार्दिक आभार, मनोज जी
वाह गगन जी ! बहुत हैरत वाली जानकारी है | मैंने कभी नहीं सुना इस बारे में |डॉ. विंधेश्वरी पाठक निश्चित ही सराहना और साधुवाद की पात्र हैं | मैला ढ़ोने की प्रथा सदियों से मानवता पर एक कलंक रही है | आधुनिकता और भौतिकवाद में जहाँ पुराने मिथक टूटे ऐसी अमानवीय प्रथाओं का खात्मा भी हुआ है |शौचालय का संग्रालय निश्चित ही स्वच्छता की दिशा में प्रेरक कदम होगा |
रेणु जी
सबसे बडी बात बिना किसी अपेक्षा के जो सोचा उसे पूरा किया।
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