अब वह मैराथन दौडना तो दूर, अपने साथियों के बराबर भी नहीं दौड पाता। उसने नेशनल लेवल तो क्या कोई राज्य स्तरीय अथवा जिला स्तरीय प्रतियोगिता भी नहीं जीती है। हालांकि दावे तो ओलम्पिक और मैराथन जीतने के हुआ करते थे ! बेवक्त, बेवजह का स्टारडम, ख्याति, परिवार की उसे दूसरों से अलग व विशेष बनाने की सनक, अति अपेक्षा और लालच के चलते, मैराथन दौडने वाला बुधिया, स्कूल स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में भी सामान्य बच्चों से पिछडता चला गया....................!!
#हिन्दी_ब्लागिंग
याद है आपको, वह पांच साल का बच्चा, बुधिया ! जिसने ओडिसा में 2006 के मई महीने की तपती दोपहरी में लगातार सात घंटे दो मिनट दौड़ कर पुरी से भुवनेश्वर तक की 65 किलोमीटर की दूरी को नाप कर दुनिया का सबसे कम उम्र का मैराथन धावक बनने का गौरव हासिल कर, सब को आश्चर्यचकित कर रख दिया था ! जिसका उत्साहवर्धन करने और मनोबल बनाए रखने के लिए रिजर्व पुलिस बल के दो सौ जवान भी उसके साथ दौड़े थे। जो रातों-रात हर अखबार और टेलीविजन चैनल की सुर्खियों में छा दुनिया भर में मशहूर हो गया था ! जबकि उस समय उसकी उम्र चार वर्ष से कुछ ही ज्यादा थी ! इस हैरतंगेज कारनामे के लिए उसका नाम ''लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस" में भी शामिल किया गया था। बुधिया ने महज 5 साल की उम्र में 48 मैराथन पूरे कर लिए थे ! नन्हें बुधिया के चर्चा में आते ही विभिन्न संस्थाओं ने उसके लिए ढेरों कोष बनाने की घोषणाएं भी की थीं। उसके नाम के साथ Budhiya Born to Run ! Budhiya the Wonder Boy जैसे तरह-तरह के विशेषण जुड़ने लग गए थे ! पर फिर क्या हुआ ? कहां गुम हो गया, वह नन्हा मैराथन धावक ?
कोच बिरंची दास के साथ बुधिया |
हालांकि उसकी प्रतिभा के चलते सरकार ने उसे भुवनेश्वर के SAI होस्टल मे रख, लंबी दूरी का धावक बनाने का प्रयास विधिवत रूप से शुरू किया भी था ! मगर इस सब से उचाट बुधिया हाॅस्टल से ही भाग निकला ! अपनी माँ की महत्वाकांक्षा और लालच के चलते एक विलक्षण प्रतिभा का वो हश्र हुआ, जो नही होना चाहिये था ! यह एक कटु सत्य है कि जो बच्चे अपने बचपन में ही अनायास मिली ख्याति, प्रसिद्धि और स्टारडम का स्वाद चख लेते हैं, आगे चल कर असफलता उनकी नियति बन जाती है ! हमारे आस-पास ऐसे लाखों उदाहरण मौजूद हैं ! इसमें उन मूर्ख अभिभावकों का भी बहुत बड़ा हाथ होता है जो अपने अधूरे सपनों को अपने मासूम बच्चों की मार्फ़त पूरा करने की भूल किए जाते हैं ! जिंदगी की दौड़ में अपने बच्चे के पिछड़ जाने के बेफिजूल डर से वे अपने बच्चों से उनका बचपन, मासूमियत, भोलापन छीन बेवजह पैसा लुटा उसे सफल बनाने पर तुले रहते हैं ! वे भूल जाते हैं कि पौधा प्राकृतिक रूप से ही बड़ा हो पेड़ बनता है ! ज्यादा खाद-पानी उसे नष्ट भी कर सकते हैं ! पर नहीं ! सबके सब अपने बच्चों को बिना उनकी लियाकत या रुझान जाने, नायक, गायक, खिलाड़ी बनाने पर आमादा रहते हैं ! एक अँधी दौड चल रही है ! एक छलावा भ्रमित किए हुए है ! यही बुधिया के साथ हुआ !
बुधिया सिंह, अब |
26 टिप्पणियां:
बिल्कुल सही लिखा है आपने। कुछ धुंधली यादें भी ताजा हो गई अखबार में वही जवानों के साथ दौड़ने वाली फोटो छपी थी। मेरी भी उम्र वही 6 साल ही थी उस समय। खैर बुधिया कहीं खो सा गया। फिर फिल्म और zeeन्यूज पर इसके बारे में जानने को मिला। आज तो आपने ब्लॉग ही लिखा डाला।🌻
शिवम जी
सदा स्वागत है आपका । सपरिवार स्वस्थ व प्रसन्न रहें
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 18 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी
सम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
आपकी बात से पूरी तरह सहमत। जैसे जबरदस्ती पकाया गया फल अपना स्वाद खो देता है वैसे ही ऐसे बच्चे जिन पर उनके अभिभावक या समाज जरूरत से ज्यादा बोझ डाल देते हैं वह अपनी प्रतिभा खो देते हैं या उसे इस्तेमाल करने से कतराने लगते हैं। ऐसा ही एक मामला एक शतरंज के खिलाड़ी का जिसने छोटी उम्र में ही काफी प्रसिद्धि हासिल करने के उपरान्त इसी अनावश्यक दबाव के चलते शतरंज से ही किनारा कर दिया था। अभिभावकों को सीखना चाहिए।
विकास जी
प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
उस समय तो बुधिया का कितना नाम हुआ था । लेकिन उसके जीवन की कहानी आपके ब्लॉग पर इस पोस्ट से मिली ।
जानकारी युक्त पोस्ट ।
आभार, संगीता जी।
शिक्षाप्रद आलेख।
अत्यंत मार्मिक कथा एक दम तोड़ चुकी प्रतिभा का उन कारणों से जिसके लिए वह जिम्मेवार नहीं।
अनुपमा जी
अनेकानेक धन्यवाद
विश्वमोहन जी
इन्हीं कारणों से कई प्रतिभाऐं समय के पहले ही गुमनामी के अंधेरे में खो गईं
बुधिया के बारे में विस्तृत जानकारी अच्छी लगी...सही कहा आपने ऐसे बच्चे अपनी प्रतिभा ही खो बैडते हैं जिन पर अत्यधिक दबाव हो...।
लालची अभिभावकों को नसीयत देता शानदार लेख।
बेवक्त, बेवजह का स्टारडम, ख्याति, परिवार की अति अपेक्षा, उसे दूसरों से अलग व विशेष बनाने की सनक और लालच के चलते, मैराथन दौडने वाला बुधिया, स्कूल स्तर की प्रतिस्पर्धाओं मे भी सामान्य बच्चो से पिछडता चला गया । उसका कैरियर बनने से पहले ही ढह कर रह गया !
ऐसे ही बहुत सी प्रतिभाएं समय से पहले ही खो गई, ये कुचक्र टूटना मुश्किल है...। बहुत अच्छा आलेख है गगन शर्मा जी।
सुधा जी
अनेकानेक धन्यवाद
संदीप जी
माता-पिता का लालच, अपेक्षाऐं, जल्दबाजी भारी पड जाती हैं बच्चों पर
बहुत ही सारगर्भित विषय पर आपका यह आलेख बहुत ही सार्थक और सराहनीय है,आपने सच कहा कि फालतू के स्टारडम के चक्कर में आजकल बच्चों की नैसर्गिक प्रतिभा का हनन हो जाता है,और वो जीवन में कुछ नही कर पाते,जिसमें माता पिता भी शामिल हैं,विचारणीय लेखन ।
कुछ अलग। साधुवाद।
जिज्ञासा जी
टीवी पर चलने वाले तथाकथित टैलेंट खोजी आयटमों को देख कर भी बहुतेरे मॉॅॅं-बाप अपने बच्चे को अंधी दौड में झोंक देते हैं। जहां सब कुछ सिर्फ छलावा ही होता है
सुशील जी
हार्दिक आभार
बिलकुल सही कहा आपने
प्रीति जी
हार्दिक आभार! सदा स्वागत है आपका
आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है. ऐसे ही आप अपनी कलम को चलाते रहे. Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.
अंकित जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका
Dukhad
कदम जी
सफलता पाने और उसे बनाए रखने में भाग्य का भी बहुत बड़ा हाथ होता है
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