गुरुवार, 6 मई 2021

समय निकाल कर सोचिएगा जरूर, यह आज भी सामयिक है

कुछ नाम ऐसे हैं जो अपने बाहुबल, निर्भयता, शौर्य और देशप्रेम की खातिर इतिहास के पन्नों के मोहताज नहीं रहे !सोचने की बात है कि वेतनभोगी, स्वामिभक्त, छद्म इतिहासकार रूपी चारण जब उनकी ख्याति को इतिहास के पन्नों में, तोड़-मरोड़ कर ही सही, जगह देने के लिए मजबूर हो गए तो असल में वे देशरत्न कितने महान होंगे ! सैंकड़ों ऐसे नाम हैं जिन्हें मुगलों, अंग्रेजों, वामियों के अतिरिक्त हमारे खुद के लोगों ने नीचा दिखाने के लिए तरह-तरह के प्रपंच रचे ! आज के माहौल में एक ऐसा ही नाम फिर याद आता है, जिसके दुश्मन को नेस्तनाबूद करने के हठ के चलते उसके खुद के सरदारों ने ही जहर दे कर मार डाला था ! राणा सांगा .............!

#हिन्दी_ब्लागिंग

हमारे देश पर सदियों से बाहरी आक्रांताओं द्वारा लूट-खसोट के लिए हमले होते रहे हैं। उनके आतंक का हमारे वीर, देशभक्त रणबांकुरों ने माकूल जवाब भी दिया है ! पर विडंबना यह भी रही कि वे सब विभिन्न कारणों से कभी भी एकजुट होकर दुश्मन को चुन्नौती नहीं दे पाए ! ऐसे एक-दो नहीं हजारों योद्धा हुए हैं जिनके नाम सुन कर ही दुश्मनों के पसीने छूट जाते थे। परन्तु विभिन्न षड्यंत्रों के तहत, देसी-विदेशी आकाओं द्वारा पोषित, हमारे छद्म, तथाकथित इतिहासकारों ने अपने आकाओं के झूठे-सच्चे किस्सों की खातिर उन वीरों को गुमनामी के कोहरे के पीछे धकेल कर रख दिया। परन्तु उनके शौर्य, जज्बे, देश के प्रति आत्मोसर्ग को जनमानस की यादों से कभी नहीं हटा पाए।

फिर भी कुछ नाम ऐसे हैं जो अपने बाहुबल, निर्भयता, शौर्य और देशप्रेम की खातिर इतिहास के पन्नों के मोहताज नहीं रहे ! सोचने की बात है कि वेतनभोगी, स्वामिभक्त, इतिहासकार रूपी चारण जब उनकी ख्याति को इतिहास के पन्नों में, तोड़-मरोड़ कर ही सही, जगह देने के लिए मजबूर हो गए तो असल में वे देशरत्न कितने महान होंगे ! सैंकड़ों ऐसे नाम हैं जिन्हें मुगलों, अंग्रेजों, वामियों के अतिरिक्त हमारे खुद के लोगों ने नीचा दिखाने के लिए तरह-तरह के प्रपंच रचे ! आज के माहौल में एक ऐसा ही नाम फिर याद आता है, जिसके दुश्मन को नेस्तनाबूद करने के हठ के चलते उसके खुद के सरदारों ने ही जहर दे कर मार डाला था ! राणा सांगा ! जी हाँ ! उस जैसा राणा ना कभी हुआ और अब तो क्या ही होगा ! 

कुछ समय बाद एक आँख, एक हाथ और एक पैर ना होने के बावजूद उस अप्रतिम योद्धा ने फिर बाबर से मुकाबला करने का निश्चय किया। पर इस बार उनके  साथी सरदार इसके लिए राजी नहीं हुए। उन्हें जब लगा कि राणा बिना युद्ध किए नहीं मानेंगे तो उन सब ने षड्यंत्र कर राणा को जहर दे दिया........!

राणा संग्राम सिंह यानी राणा सांगा ! मेवाड़ की धरती जिन्हें जन्म दे कर धन्य हो गई। वे मेवाड़ के सबसे महान शासक थे। उनके राजकाल में मेवाड़ ने आशातीत सफलताएं, शक्ति, समृद्धि और ऊंचाइयां प्राप्त की थीं। उनका साम्राज्य उत्तर में सतलुज नदी से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक और पूर्व में भरतपुर से लेकर पश्चिम में सिंधु तक फैला हुआ था। राणा सांगा पहले और अंतिम भारतीय शासक थे, जो तक़रीबन तमाम राजपूत राजाओं को अपने नेतृत्व में शामिल करने में सफल रहे थे ताकि विदेशी लुटेरों को देश के बाहर खदेड़ दिया जा सके ! उनका व्यक्तित्व, कृतित्व, शौर्य ही कुछ ऐसा था कि तमाम आपसी भेदभावों के बावजूद तमाम राजा उनके राजनितिक और सैन्य कौशल के कायल थे। उस समय उनके सामने था काबुल से आया एक आक्रांता, बाबर ! उसने भी अपने संस्मरण बाबरनामा में उन्हें उस समय का सबसे शक्तिशाली शासक बताया है। 

आखिर वह दिन भी आ ही गया ! खानवा में बाबर की सेना के सामने राणा सांगा की सेना आ डटी, जो तक़रीबन अपने विपक्षी से दुगनी थी ! पर उनके पास ना हीं अच्छे घोड़े थे और ना हीं तोपें ! जबकि बाबर की असली ताकत थी उसका तोपखाना ! जिसका कोई जवाब राणा के पास नहीं था।  पता नहीं इस ओर कोई ध्यान क्यों नहीं दिया गया था ! जबकि इसका उपयोग और शक्ति साल भर पहले ही पानीपत के मैदान में बाबर-लोधी युद्ध में सिद्ध हो चुकी थी। क्यों युद्ध में वर्षों से चले आ रहे पारंपरिक तरीके ही अपनाए गए ! क्यों नहीं दुनिया में अपनाई जा रही युद्ध नीतियों को अपनाने में रूचि दिखाई गई ! अस्त्रों-शस्त्रों के आधुनिकरण और उनमें आ रहे बदलावों पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया ! सैनिकों को देश के लिए निछावर होना जरूर सिखाया गया पर ना उन्हें अच्छे घोड़े उपलब्ध करवाए गए और ना हीं उच्च-कोटि के हथियार ! 

16 मार्च 1527 सुबह नौ बजे भयानक युद्ध शुरू हुआ जो बीस घंटों तक चला। पर वीर, साहसी, पराक्रमी व अच्छे योद्धा होने के बावजूद राजपूत बाबर के तोपखाने का सामना नहीं कर सके ! मुगलों की विजय हुई ! बुरी तरह घायल और बेहोश राणा को उनके सहयोगी उन्हें युद्धक्षेत्र से दूर सुरक्षित जगह पर ले गए ! होश आने पर वे बहुत हताश और निराश हुए। उन्होंने अपने आप को किले में बंद कर लिया। कुछ समय बाद एक आँख, एक हाथ और एक पैर ना होने के बावजूद उस अप्रतिम योद्धा ने फिर बाबर से मुकाबला करने का निश्चय किया। पर इस बार उनके  साथी सरदार इसके लिए राजी नहीं हुए। उन्हें जब लगा कि राणा बिना युद्ध किए नहीं मानेंगे तो उन सब ने षड्यंत्र कर राणा को जहर दे दिया जिसके कारण राणा का 30 जनवरी 1528 को निधन हो गया !  

हमारा इतिहास तरह-तरह के यदि, लेकिन और परंतुओं से भरा पड़ा है। दुर्भाग्य का साया ज्यादातर हम हीं पर छाया भी रहा। उस पर छद्म इतिहासकारों के षड्यंत्रों ने सच्चाइयों पर वर्षों पर्दा डाल रखा ! यदि कभी सच को सामने लाने की कोशिश हुई भी तो ऐसे ही लोगों ने तरह-तरह के बखेड़े खड़े  कर दिए ! कुछ समय निकाल कर, सोचिएगा जरूर ! इतिहास भी गवाह है कि देश को डुबोने में बाहरी तूफानों की जगह घर में जमा गंधाते पानी ने ही ज्यादा अहम् भूमिका  निभाई है ! पर हम भी जब तक पानी सर के बिल्कुल ऊपर हो सांस ही बंद नहीं करने लगता, चेतते तो हैं ही नहीं, समय गुजरते ही उस गंधाते पानी को भी भूल उसे जस का तस पड़ा रहने देते हैं, अगली मुसीबत खड़ी करने के लिए  ! 

@संदर्भ - अहा जिंदगी 
फोटो - अंतर्जाल  

3 टिप्‍पणियां:

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने। देश शिक्षा व्यस्था में तथाकथित सेकुलर,लिबरल वामपंथीयो का दबदबा था..। इनके छापखाने से छपने वाली किताबो में आक्रमणकारी महान थे..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शिवम जी
पर वहीं आक्रांताओं के विरुद्ध एकजुटता का अभाव भी रहा

Flyus Travels ने कहा…

Thank you for sharing such good information.
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