शनिवार, 11 अप्रैल 2020

अब तो ! शठे शाठ्यं समाचरेत

जिस दिन सेना निकल आई, और अपनी पर आ गई तो सारी अकड़, सारी हेकड़ी, सारी उदंडता, सारी गुंडागर्दी, सारी बकवाद भुलवा दी जाएगी ! बहुत हो गया ! कुछ समय पश्चात कमजोरी, लाचारी और बेबसी के प्रतीक बने प्रेम, मनुहार, आग्रह, उपहार इत्यादि से निजात पा ही लेनी चाहिए ! उसके बाद तो ''शठे शाठ्यं समाचरेत'' की नीति का ही प्रयोग हितकारी रहता है ! फिर चाहे वह उद्देश्य पूर्ती के बीच बाधा बनता समुद्र हो, कटु वचनों का जहर उगलता शिशुपाल या फिर अपनी कलम को देश अहित के लिए उपयोग में लाता, खैरात पर पलता कोई भी ऐरा-गैरा ...............!     

#हिन्दी_ब्लागिंग 
कल एक अखबार में एक तथाकथित बुद्धिजीवी पत्रकार के ज्ञान बांटने की बारी थी। ये भला आदमी चाहे कितना भी अपनी निष्पक्षता का ढोल पीटे या बौद्धिकता का प्रदर्शन करे, इसकी प्रतिबद्धता, इसकी मानसिकता, इसकी स्वामिभक्ति किनके प्रति है ये कोई छिपी बात नहीं है ! ठीक है अपने उपकृत करने वालों को नहीं भूलना चाहिए पर उसके लिए सही को गलत या अच्छाई को नजरंदाज करना पत्रकारिता तो नहीं ही होती !

कल तक स्टेज पर खड़े हो जनता को बेवकूफ समझते, गलबहियां डालते, मन में प्र.मं. की कुर्सी को कब्जियाने की लालसा पाले दो दर्जन नेताओं की कारगुजारियों को सदा ही नजरंदाज करते इस जैसे कामगारों को अब कोरोना के चश्में से उन्हीं में फिर भविष्य के वैकल्पिक नेतृत्व की झलक दिखने लगी है ! यू.पी. में काम बड़े पैमाने पर हुआ है इसलिए उसको तो छिपाया नहीं जा सकता था, पर इसके शब्दों के खेल में यह पूरी कोशिश रही है कि किसी भी तरह मोदी उभर कर सबके ऊपर ना छा जाए ! राज्य सरकारों से केंद्र की दूरी बनाए रखने जैसी बेबुनियाद बात गढ़, मोदी को क्या- क्या करना चाहिए, इसकी समझाइश देते इस इंसान को शायद सपने में भी यह ख्याल नहीं आया होगा कि मोदी में रत्ती भर भी सत्ता की लालसा, अपने पूर्वगामियों की तरह होती तो इस दारुण संकट के समय का लाभ उठाते हुए वह कभी भी आपातकाल का सहारा ले तानाशाही लागू कर देता ! कोई मुश्किल आड़े नहीं आती, रोज दिखती जहालतों को काबू करने की कोशिशों में ! वे कूढ़ मगज भी निगलने और उगलने की स्थिति में होते, जिनके आकाओं ने अपने देशों के लाखों लोगों को विरोध करने के कारण देशनिकाला या नजरबंद कर डाला था ! विरोध के जहर से कुंद इनकी यादाश्त को तो यह भी याद नहीं आता कि पडोसी ने तंग आ कर अपने ही देश में मस्जिद पर सैनिक कार्यवाई कर दी थी। 

जो हुक्म मेरे आका ! ये चिरागी जिन्न आजकल पत्रकारों का रूप धर अपनी कलमों से क़यामत ढाते हैं ! पर इनकी कलमों की रोशनाई भी इस बात पर रोशनी डालने से परहेज कर गई, कि इस समय कोई भी अड़चन नहीं थी एक और ब्लूस्टार के उदित हो जाने देने में ! कौन रोकता ! उल्टे हैरान-परेशान अवाम साथ ही देती ! पर जिस तरह सरकार द्वारा अब तक नर्मी, धैर्य, व सहनशीलता का परिचय दिया गया है वह काबिले-तारीफ हो ना हो आश्चर्य का विषय जरूर है ! 

एक सवाल जो आज आम नागरिक को परेशान कर रहा है, कि एक साधारण आदमी का किसी पर थूकना या पत्थर उठाना तो दूर, यदि वह सड़क पर निकल भी जाए तो उसके तफरीह के भूत को पुलिस का डंडा झाड़ा लगा भगा देता है ! तो ये कौन लोग हैं. जिनको किसी का खौफ नहीं ! जिनको दूसरों की जान की परवाह नहीं ! जो देश समाज के दुश्मन बने हुए हैं ! सबसे बड़ी बात इनके पीछे कौन है जिसकी शह पर यह इतने बेखौफ हो दुनिया की पांचवीं सैन्य शक्ति की तरफ से बेखबर हो उत्पात मचा रहे हैं !

पर एक सच्चाई यह भी है कि कुछ लोग सिर्फ लातों की भाषा जानते हैं ! जिस दिन सेना निकल आई, और अपनी पर आ गई तो सारी अकड़, सारी हेकड़ी, सारी उदंडता, सारी गुंडागर्दी, सारी बकवाद भुलवा दी जाएगी ! बहुत हो गया ! ऐसा हो भी जाना चाहिए ! कुछ समय पश्चात कमजोरी, लाचारी और बेबसी के प्रतीक बने प्रेम, मनुहार, आग्रह, उपहार इत्यादि से निजात पा लेनी चाहिए ! उसके बाद तो ''शठे शाठ्यं समाचरेत'' की नीति का ही प्रयोग हितकारी रहता है, हर दृष्टि से ! फिर चाहे वह उद्देश्य पूर्ती के बीच बाधा बनता समुद्र हो, कटु वचनों का जहर उगलता शिशुपाल या फिर अपनी कलम को देश अहित के लिए उपयोग में लाता, खैरात पर पलता कोई भी ऐरा-गैरा !      

4 टिप्‍पणियां:

Kamini Sinha ने कहा…

" जिस दिन सेना निकल आई, और अपनी पर आ गई तो सारी अकड़, सारी हेकड़ी, सारी उदंडता, सारी गुंडागर्दी, सारी बकवाद भुलवा दी जाएगी !"
बिलकुल सही कहा आपने ,सादर नमन आपको

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हद भी तो कर दी है जाहिलों ने ¡

Kamini Sinha ने कहा…

vसादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-4-2020 ) को " इस बरस बैसाखी सूनी " (चर्चा अंक 3671) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार

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