बुधवार, 1 अप्रैल 2020

काश ! कोरोना संकट के बाद भी पर्यावरण साफ़ और स्वच्छ रह पाता

आज निरभ्र, धूम्र, धूर रहित गगन !नब्बे से ऊपर शहरों में स्वच्छ व संतोषजनक होती वायु ! चमकीली पहाड़ों जैसी धूप ! निर्मल होता नदियों का जल ! उनमें बढ़ती मछलियों की तादाद ! 36 मॉनिटरिंग  स्थलों में से 28 की रिपोर्ट के अनुसार नहाने योग्य साफ़ होता गंगा का पानी ! हिंडन और यमुना जैसी सबसे प्रदूषित नदियों की गुणवत्ता में आता सुधार ! सागर तट के करीब डॉल्फिन, जो सिर्फ साफ़ पानी में ही रहती है, की उपस्थिति ! कालिमा रहित पेड़ों की हरीतिमा ! अक्सर मुरझाए रहने वाले गमलों पर आती रौनक ! उन पर मंडराते भौंरे-तितलियां-शलभ ! कबूतरों के अलावा अब तोते, गौरैया, कौवे, तोते, चील, मैना, टिटहरी जैसे अन्य पंक्षियों की संख्या में इजाफा ! इन दिनों प्रकृति और पर्यावरण में आए साफ़ और शुद्ध वातावरण के द्योतक हैं ! काश, संकट के बाद भी यह बदलाव चिरस्थाई रह पाता  ! वैसे संकेत सीधा और साफ़ है कि कायनात सिर्फ मानव को सबक सिखाना चाहती है....................!                                                                   

#हिन्दी_ब्लागिंग   
नीला, निरभ्र, धूम्र-धूल रहित आकाश ! पहाड़ों जैसी चमकीली धूप ! लगातार स्वच्छ होती हवा ! निर्मल होता नदियों का पानी ! सागर जल में आती सवच्छता ! धूल-मिट्टी-कालीमा मुक्त पेड़ों के हरे-भरे पत्ते, पेड़ की शाखाओं में एकाधिक प्रजाति के पक्षी, घरों के गमलों में कीट रहित पौधे और फूल, उनपर मंडराते भौंरे-तितलियां-शलभ ! ये सारे परिवर्तन कोरोना के संकट के दौरान उठाए गए सुरक्षात्मक कदमों का सकारात्मक परिणाम हैं। जो इन दिनों प्रकृति और पर्यावरण में आए साफ़ और शुद्ध वातावरण के द्योतक पर देश-दुनिया पर छाए विकट संकट का दूसरा पहलू है !
अब और तब, चित्र अंतरजाल से 
हर चीज की हद होती है ! प्रकृति ने भी एक सीमा तक हमारी ज्यादितियों को सहन किया  ! बीच-बीच में बार-बार चेतावनी देने पर भी जब हम बाज नहीं आए और हमारी बेवकूफियों के कारण धरती के दूसरे वाशिंदों की जान पर बन आई तो उसने धीरे से अपनी करवट बदली। जिसका खामियाजा आज सारा संसार भुगत रहा है। यह शायद पहली बार हुआ है कि प्रकृति की नाराजगी सारी दुनिया को भोगनी पड़ रही है ! अपने को ही भगवान समझ लेने वाले इंसान की औकात आज किसी कीड़े-मकौड़े से ज्यादा नहीं रह गई है ! जबकि अन्य जीव-जंतुओं पर इसका असर नहीं पड़ा है ! संकेत सीधा और साफ़ है कि कायनात सिर्फ मानव को सबक सिखाना चाहती है !
सांस लेते पत्ते 
एक तरह से खुद ही पैदा की गई इस आपदा के खौफ के कारण आज दुनिया भर में इंसान को चूहे की तरह अपने घरों में दुबकना पड़ गया है। पर उसके इस तरह भयजदा हो, निष्क्रिय पड़े रहने का भी कुछ लाभ तो हुआ ही है। जैसे हर चीज के दो पहलू होते हैं, उसी तरह इस आपदा के भी दो पक्ष नजर आ रहे हैं ! मुसीबत, परेशानी, खौफ जिनका प्रतिशत भी बहुत ज्यादा है, भले ही अपनी जगह हों, पर इसकी कुछ अच्छाइयां, भले ही कम और कुछ समय के लिए ही हों, भी सामने आने लगी हैं। 
पता नहीं पहले कब देखा था ऐसा आकाश 
दिल्ली की ही बात करें तो बरसात के कुछ दिनों को छोड़ शायद ही आसमान का असली रंग कभी किसी को दिखाई देता हो ! बच्चे तो सिर्फ किताबों में ही उसके नीले रंग के बारे में जान पाते रहे हैं ! पर इधर वह अपने असली रंग के साथ रोज ही रूबरू हो रहा है। सुबह से शाम तक निरभ्र तथा रात को तारों से सजी चदरिया को सर पर तने देखने का आनंद वर्षों बाद दिल्ली वासियों को नसीब हुआ है। प्रदूषित पर्यावरण के कारण यहां की हवा तो कभी भी सांस लेने लायक होती ही नहीं ! पर आज खुल कर गहरी सांस ले उसे फेफड़ों में भरते घबड़ाहट नहीं होती। हवा का प्रदूषण कम होने का ही फल है कि करीब चालीस साल के बाद डेढ़ सौ की.मी. दूर धौलाधार की पहाड़ियां जालंधर शहर से नजर आने लगी हैं ! 
जालंधर से नजर आने लगीं धौलाधार के बर्फीले शिखर 
पेड़ तो दिल्ली में बेशुमार हैं पर उनकी हालत पर सदा तरस आता रहता था, पत्तियों में हरापन तो दिखलाई ही नहीं पड़ता था ! सदा उन पर धूएं-धूल-मिटटी की काली परत चढ़ी रहती थी, पौधों का सांस लेना दूभर था ! पर पिछले कुछ दिनों से उनकी हरीतिमा मन मोह ले रही है। चहूँ ओर हरियालो परिलक्षित होने लगी है। उसका असर पश्क्षियों पर भी पड़ा दिखता है ! पहले जहां कालोनी में सिर्फ कबूतर नजर आते थे वहीं अब उनके अलावा तोते, गौरैया, कौवे, चील, मैना, टिटहरी के साथ-साथ और भी एक-दो प्रजाति के पंछी उड़ान भरते दिखते हैं। घरों में गमलों में लगे नाजुक पौधे जो अक्सर बीमार व मुरझाए से रहते थे अब उन पर भी रौनक बरकरार रहने लगी है। इसी कारण अब उन पर भौंरे-तितलियां-शलभ आदि अक्सर मंडराते दिखते हैं, जो कि साफ़ और शुद्ध वातावरण का द्योतक है।
कीट रहित तुलसी 
पर कड़वी सच्चाई यही है कि यह सब ज्यादा दिन तक नहीं रहने वाला ! जैसे ही बिमारी-महामारी का भय दूर होगा, आपदा-विपदा दूर होंगी, हम श्मशान बैराग की तरह सब भूल अपनी उसी औकात पर वापस आ जाएंगे। क्योंकि हम आदतों से बाज न आ अपनी भूलों से कभी सीख नहीं लेते पर उन्हें दोहराते जरूर हैं ! इस बात के लिए किसी गवाही की जरुरत है क्या ?  

7 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी
सम्मिलित करने का लिए हार्दिक आभार

Nitish Tiwary ने कहा…

बहुत सुंदर और विचारणीय पोस्ट।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नितीश जी
''कुछ अलग सा'' पर आपका सदा स्वागत है

Kamini Sinha ने कहा…

"संकेत सीधा और साफ़ है कि कायनात सिर्फ मानव को सबक सिखाना चाहती है "
सही कहा लेकिन जैसा कि आपने कहा - कड़वी सच्चाई यही है कि यह सब ज्यादा दिन तक नहीं रहने वाला ,
श्मशान बैराग की तरह सब भूल जाएंगे ,सादर नमस्कार आपको

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
यही तो विडंबना रही है कि हम सबक लेना ही नहीं चाहते

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी,
ऐसे ही स्नेह बना रहे ! सब स्वस्थ रहें यही कामना है

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