सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

उस दिन कुछ भी हो सकता था, एक संस्मरण

भयंकर और डरावना दृश्य था !आगे-आगे एक इंसान को घसीटते ले जाती गाडी और पीछे कुछ भी कर गुजरने पर उतारू, डंडे-लाठी उठाए चीखते-चिल्लाते-आक्रोषित लोगों का सागर ! लगातार बजते हार्न को सुन दरबान के साथ जैसे ही उन्होंने गेट से बाहर देखा, पलक झपकते ही उन्हें सारा माजरा समझ में आ गया ! उन्होंने तुरंत पूरा गेट खुलवाया और गाडी अंदर आते ही हतबुद्धि दरबान के साथ मिल उसे तुरंत बंद करवा दिया। गाडी को रोकते ही दुबे ने जोर से कहा, माँ जी लोग, जल्दी से कहीं भी जा कर छिप जाइये और इतना कह खुद भागता चला गया, क्योंकि वह जानता था कि यदि कहीं भीड़ के हाथ पड़ गया तो उसका क्या हश्र होगा ............! 

#हिंदी_ब्लागिंग  
घटना काफी पुरानी है पर जेहन में गहराई तक पैबस्त है ! अखबार इत्यादि में यदा-कदा वैसी दुर्घटनाओं का जिक्र देख वह दिन जैसे फिर आँखों के सामने साकार हो उठता है ! सन तो ठीक-ठीक याद नहीं पर शायद 64-65 के वर्षांत का अपराह्न था, क्योंकि उस दिन मील के बाहर की एक टीम के साथ क्रिकेट का मैच चल रहा था और हम जीत की कगार पर थे। तभी अचानक एक भीषण शोर की आवाज उठी, देखा तो सैंकड़ों की बेकाबू भीड़ क्लब वाले गेट की तरफ से घुसी चली आ रही है। कैसे-क्यूँ-क्या हुआ, कुछ पता नहीं, आज तक ऐसा कभी कुछ घटा नहीं था ! अफरा-तफरी मच गयी ! जिसके जहां सींग समाए जा दुबका ! कौन कहां गया कुछ पता नहीं ! हम चार-पांच बच्चे ऊपर दूसरे माले पर जा, रेलिंग से लटक कर नीचे ताकने लगे ! नीचे कोहराम मचा हुआ था ! नरमुंड ही नरमुंड ! सारा पार्क उजाड़ दिया गया था ! लोग बढे ही चले आ रहे थे ! करीब आधे घंटे के तांडव के बाद पुलिस पहुंची ! लाठी-चार्ज हुआ ! भगदड़ मची ! सबको खदेड़ने के बाद करीब चार-पांच बोरी चप्पलें-जूते और तक़रीबन दस-पंद्रह सायकिलें जब्त की गयीं। पार्क का यह हाल था जैसे कोई हाथी उसे रौंद गया हो ! 

मील के अधिकारी वर्ग और कामगारों के बीच सदा तनाव भरा रिश्ता रहा है ! संस्थान के अपने कामगारों की भलाई के लाख प्रयासों के बावजूद कुछ मतलब-परस्त मजदूर नेता सिर्फ अपनी रोटी सेंकने के लिए, कामगारों में स्टाफ के प्रति जहर उगल नफरत की दिवार बनाए रखते थे। ऐसे लोग दोनों तरफ के हितैषी बन अपना उल्लू सीधा करने में अत्यंत दक्ष होते थे। इसी नफ़रत, द्वेष, रोष के कारण उस दिन एक छोटी सी घटना ने विकराल रूप ले लिया था।  

क्यों ऐसी अनहोनी घटी ! उस दिन सुबह। मंजू भाभी (डागाजी की पुत्रवधु) भंडारी तथा राजगढ़िया आंटी तथा मेरी माता जी, सुबह किसी काम से मील की अम्बैसडर कार में बाहर गयीं हुई थीं। मील का सबसे विश्वसनीय-भरोसेमंद-दक्ष ड्राइवर दुबे भइया थे। जाहिर है वही गाडी चला रहे थे। लौटते समय कांकिनाड़ा के संकरे बाज़ार से गुजरते हुए एक नौसिखिए, लापरवाह, बेखबर सायकिल सवार बालक को कार छू गयी ! घबड़ाहट और डर के मारे वह सायकिल समेत गिर पड़ा ! हालांकि उसे कोई चोट नहीं लगी थी पर हल्ला मच गया कि मील की गाडी ने बच्चे का एक्सीडेंट कर दिया है। पहले दुबे ने सोचा कि उतर कर देखें बच्चे को, पर बढ़ते हुजूम, गाडी में महिलाओं की उपस्थिति और आक्रोषित आवाजों को देख-सुन उसने गाडी आगे बढ़ा दी ! इससे लोग और भड़क गए और एक ''हीरो'' उछल कर गाडी के बोनट पर चढ़ने की कोशिश में फिसल कर गाडी के अगले बाएं चक्के में जा फंसा ! गाडी की महिलाएं इस हादसे से अनजान थीं और बार-बार दुबे को गाडी रोकने को कह रहीं थीं, पर दुबे को तो हकीकत समझ में आ चुकी थी, उसको अपने से ज्यादा माँ समान महिलाओं की चिंता थी ! इसीलिए कभी आँख भी ना उठाने वाले युवक को मजबूरन जोर से कहना पड़ा, ''माँ जी, आपलोग चुपचाप बैठिए, गाडी अंदर जा कर ही रुकेगी !'' इधर हर राह चलते की नजर जब गाडी से घिसटती मानव देह पर पड़ती तो पहले तो वह एकबारगी सन्न रह जाता पर अगले ही पल भीड़ का अंग बन, रोको, मारो, मारो चिल्लाते गाडी के पीछे दौड़ने लगता ! देखते-देखते सैंकड़ों की संख्या में गुस्साए लोग जो हाथ लगा ले, गाडी के पीछे लग गए ! भयंकर और डरावना दृश्य था। आगे-आगे एक इंसान को घसीटते ले जाती गाडी और पीछे कुछ भी कर गुजरने पर उतारू, डंडे-लाठी उठाए चीखते-चिल्लाते-आक्रोषित लोगों का सागर !   

दुबे के लिए तो यह जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा की घडी थी ! बहुत बड़ा भार था उसके ऊपर ! चार संभ्रांत महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी ! करीब तीन पहियों पर दौड़ रही गाडी का संचालन ! परिस्थितिवश ही सही एक इंसान की मौत का खौफ ! इतने तनाव के बावजूद संयत रहना, दिलो-दिमाग पर काबू रखना बहुत बड़ी बात थी ! उसका सिर्फ एक ही लक्ष्य था, किसी भी तरह गाडी को मील परिसर में पहुंचा देना इसके लिए उसने एक तरह से अपनी जान की बाजी लगा दी थी। डेढ़-दो की.मी. की दूरी जैसे ख़त्म ही नहीं हो रही थी। 

मैनेजर गेट के लिए जैसे ही गाडी बायीं तरफ मुड़ी दुबे ने हार्न बजाना शुरू कर दिया। संयोगवश वहां दरबान के अलावा एक और सज्जन भी मौजूद थे ! लगातार बजते हार्न को सुन दरबान के साथ जैसे ही उन्होंने गेट से बाहर देखा, पलक झपकते ही उन्हें सारा माजरा समझ में आ गया ! उन्होंने तुरंत पूरा गेट खुलवाया और गाडी अंदर आते ही हतबुद्धि दरबान के साथ मिल उसे तुरंत बंद करवा दिया। गाडी को रोकते ही दुबे ने जोर से कहा, माँ जी लोग, जल्दी से कहीं भी जा कर छिप जाइये और इतना कह खुद भागता चला गया, क्योंकि वह जानता था की यदि कहीं भीड़ के हाथ पड़ गया तो उसका क्या हश्र होगा ! गाडी में आगे मेरी माताजी बैठीं थीं वह जैसे ही उतरीं उनका पैर लाश से जा टकराया, वे तो जैसे होश ही गंवा बैठीं ! बाकियों का भी क्या हुआ, क्या हुआ करते जब वास्तविकता से सामना हुआ तो सारी जैसे जड़ हो गयीं ! तभी उन सज्जन ने, जिनका नाम याद आते-आते भी नहीं आ रहा है, तुरंत सब को झिंझोड़ कर अपने साथ ले जा एक जगह बंद कर दिया, इस हिदायत के साथ कि कोई बाहर झांकेगा भी नहीं। 

तब तक गेट पीटना आरंभ हो चुका था ! तभी दो चार अति उत्साहित जनों ने गेट के ऊपर से आ उसे खोल दिया ! फिर क्या था टिडडी दल की तरह लोग सब तरफ छा गए ! ''दुबे को बाहर निकालो ! उसे हमारे हवाले करो ! उसे छोड़ेंगे नहीं ! साहब लोगों का जुलुम नहीं सहा जाएगा !'' जैसी आवाजें कानफोड़ू शोर बन गयीं थीं ! जैसे बाढ़ अपने किनारों को तहस-नहस कर चारों ओर कहर बरपा देती है उसी तरह हजारों बेकाबू लोग घुसे चले आ रहे थे ! सारा गुस्सा पेड़-पौधों, फूलों-क्यारियों पर उतारा जा रहा था।

अंदर आने वालों की संख्या भले ही हजारों में थी पर उसमें 95 प्रतिशत से भी ज्यादा वे तमाशबीन लोग थे जिन्होंने मील के इस हिस्से के कभी दर्शन नहीं किए थे। मील के अंदर, वह भी रिहायशी इलाके में आना उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी, जिसका ख्वाब भी उन्होंने कभी नहीं देखा था। इसीलिए बाग़-बगीचे को ही नुक्सान पहुंचा वह भी इतनी बड़ी बेतरतीब-बेकाबू भीड़ के कारण ! इसके अलावा कोई तोड़-फोड़, पथराव या आगजनी की हरकत को अंजाम नहीं दिया गया।  यहां तक कि गेट पर ही खड़ी गाडी को भी कुछ डेंटों के अलावा ज्यादा नहीं छेड़ा गया।   

कुछ ही देर बाद पुलिस का आगमन हुआ ! लोगों को गेट के बाहर निकाला गया ! दुबे को जीप में उनको दिखाते हुए कि गिरफ्तार कर लिया गया है, थाने ले जाया गया ! केस चला, गलती ना पाए जाने से दुबे बरी हुए ! उन्हें मामला ठंडा होने तक गांव भेज दिया गया ! पीड़ितों को हर्जाना मिला और एक दुर्घटना पैबस्त हो गयी जेहन में, कभी-कभी यादों में उभर आने के लिए ! पर यह सोच कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि यदि उस दिन प्रभु का साथ न होता, गाडी बाजार में ही रोक ली जाती, कार का इंजन रास्ते में ही बंद या खराब हो जाता, चक्के जाम ही हो जाते, दुबे आपा खो संतुलन बिगाड़ बैठता, वो सज्जन गेट पर ना होते, आपाधापी में गेट बंद ही ना हो पाता...तो ..तो...... ?

16 टिप्‍पणियां:

Rohitas Ghorela ने कहा…

जबरदस्त तरीके से घटनाओं को एकरूपता में बांधी गयी है।
घटना को बताते वक्त उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या होने वाला है...यानी लेखन की कसावट लाजवाब है।
जबरदस्त लेखन।

मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है लोकतंत्र 

सदा ने कहा…

बेहतरीन लेखन ...

Jyoti khare ने कहा…

बेहद प्रभावी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी,
बहुत-बहुत धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रोहतास जी
हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सदा को हार्दिक शुभकामनाएं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

खरे जी
स्नेह बना रहे

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी,
अनेकानेक धन्यवाद

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

.. क्या यह घटना वाकई में सत्य घटना है या फिर आपने कहानी या किसी संस्मरण को यहां लिखा इतनी ज्यादा उत्सुकता अंत तक बनी रही थी.... लग रहा था अब..क्या होगा.क्या होगा..!
बहुत अच्छी पकड़ है आपकी लेखनी में धन्यवाद

Kamini Sinha ने कहा…

बेहतरीन ,एक एक घटना दृश्यमान हो रहा था ,सादर नमन आपको

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
पूरी सत्य घटना है बिना किसी अतिशयोक्ति के ¡
माँ से जुडी होने के कारण कभी भूल नहीं पाता।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कामिनी जी
हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक आभार

बेनामी ने कहा…

Hi, Hope you are doing great,
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Alaknanda Singh ने कहा…

शर्मा जी, आपका लेखन पुरानी फ‍िल्म की तरह द‍िलोद‍िमाग पर छा गया है, जैसे क‍ि कोई स्क्र‍िप्ट ल‍िखी जा रही हो ज‍िसमें दुबे की कई तस्वीर सामने आ रही है, कभी भीड़ से घ‍िरी गाड़ी, कभी अदालत से बरी होकर बाहर न‍िकलता हुआ ... बहुत ही खूबसूरत संस्मरण

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अलकनंदा जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है आपका

Unknown ने कहा…

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