स्पर्द्धा में टिके रहने के लिए अपने ''पारले ग्लूको'' के नाम और उस समय के कवर पर की ''गाय और ग्वालन'' की तस्वीर को बदल एक विशेष पीले रंग के कवर. लाल रंग के लोगो व एक लड़की की फोटो के साथ एक नए पैकिंग को पेटेंट करवा उसे 1982 में बाजार में उतारा। इतना सम्मान पाने वाली किस बच्ची की फोटो है यह.........?
#हिन्दी_ब्लागिंग
पतानहीं कैसे यह बात चली और एक बहस शुरू हो गयी, पारले बिस्कुट के रैपर पर छपी बच्ची की पहचान को ले कर ! अधिकतर गूगल ज्ञानियों का दावा था कि यह फोटो सुधा कृष्णमूर्ति जी के पिताजी द्वारा खींची गयी, बचपन की फोटो है, जब वह चार साल की थीं ! कई इसे नीरू देशपांडे की तथा कुछ गुंजन गंडानिया की बता रहे थे। अक्सर कई चीजों को ले कर क्षण भर के लिए ऐसी जिज्ञासाएं उठती रहती हैं और कुछ देर बाद ही वह भूला भी दी जाती हैं ! पर इस बार सोचा कि गहरे पानी पैठ ही लिया जाए।
सन 1929 में एक रेशम के व्यापारी मोहनलाल चौहान ने मुंबई के पास इर्ले और पार्ले नामक गांवों के क्षेत्र में टॉफी, कैंडी व मिठाई इत्यादि बनाने के लिए एक छोटे से कारखाने ''पारले एग्रो उत्पादन'' की शुरुआत की तथा स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित हो कर खुद कन्फेक्शनरी बनाने की कला सीख अपने परिवार के सदस्यों के साथ काम शुरू कर दिया। सारा परिवार अपने काम में इतना मशगूल हो गया कि अपने संस्थान को कोई नाम देना ही याद ना रहा ! कुछ समय उपरांत नजदीकी स्टेशन, विले पार्ले, जो खुद पास के गांव पार्ले के नाम पर आधारित था, के नाम पर ही अपना नामकरण कर दिया गया। इनका पहला उत्पाद नारंगी कैंडी थी। कारखाने की स्थापना के करीब दस साल बाद पारले कम्पनी ने 1939 में अपना पहला बिस्कुट निकाला था। जिसके बाद से यह भारत की सबसे बड़ी खाद्य उत्पाद कंपनियों से एक हो गयी थी। यह बात है, दूसरे विश्व युद्व की। कम कीमत और उच्च गुणवत्ता के कारण इसकी मांग उस समय इतनी बढ़ गयी कि आपूर्ति करना मुश्किल हो गया था।
वैसे तो पारले कंपनी और भी बहुत सारी चीजें बनाती हैं जैसे कि सॉस, टॉफी, केक पर इसका सर्वोपरि बिकने वाला उत्पाद बिस्कुट ही है। जिसे गरीब हो या आमिर, चाहे बच्चा हो या बूढ़ा, हर कोई खाता-पसंद करता है। शायद ही देश में ऐसा कोई हो जिसने पारले का बिस्कुट कभी ना कभी, कहीं ना कहीं ना खाया हो।
जैसा की होना ही था, इसकी प्रसिद्धि और कमाई देख अन्य निर्माता भी इस क्षेत्र में उतरे, जिनमें ब्रिटानिया प्रमुख था। उसने अपना ग्लूकोज बिस्कुट ब्रिटानिया-डी के नाम से बाजार में उतारा। मजबूरन पार्ले ने स्पर्द्धा में टिके रहने के लिए अपने ''पारले ग्लूको'' के नाम और उस समय के कवर पर की ''गाय और ग्वालन'' की तस्वीर को बदल एक विशेष पीले रंग के कवर. लाल रंग के लोगो व एक लड़की की फोटो के साथ एक नए पैकिंग को पेटेंट करवा उसे 1982 में बाजार में उतारा। पहले के पारले-जी यानी पारले ग्लूकोज को बदल नया नारा दिया पारले जीनियस। खर्च में कटौती के लिए वैक्स पेपर को प्लास्टिक के रैपर से बदल दिया गया। जो भी हो इसकी लोकप्रियता अभी भी बरकरार है। सर्वे को देखा जाए तो पारले-जी की बिक्री दुनिया के चौथे सबसे बड़े बिस्कुट उपभोक्ता मुल्क चीन से भी ज्यादा है। भारत से बाहर यह यूरोप, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आदि में भी उपलब्ध है। पारले-जी अकेला ऐसा बिस्कुट है जो कि गांवों से लेकर शहरों तक में एक ही रेट से बिकता है और दोनों जगह ही इसकी लोकप्रियता एक समान है।
अब रैपर पर छपी मासूम सी सुंदर बच्ची की बात, जिस पर बहस और यह लेख शुरू हुआ था ! तो यह जान लें कि यह फोटो किसी मॉडल या सेलिब्रेटी की नहीं बल्कि एक ऐनिमेटड पिक्चर है जिसका निर्माण 1979 में किया गया था। यह बात पारले कंपनी के ग्रुप प्रोडक्ट मैनेजर रहे मंयक शाह ने साफ़ की कि पारले के पैकिट पर दिखायी देने वाली लडकी एक काल्पनिक लडकी का चित्र है। जिसे एवरेस्ट क्रियेटिव कंपनी के चित्रकार मगनलाल दहिया ने 1960 के दशक में इस तस्वीर को पारले कंपनी के लिए बनाया था। उसके बाद ये बिस्कुटों पर नजर आने लगी थी। उनके अनुसार इससे संबंधित सारी अफवाहें बेबुनियाद हैं। तो यह है उस रैपर पर छपी क्यूट सी बच्ची के फोटो की हकीकत !
#हिन्दी_ब्लागिंग
पतानहीं कैसे यह बात चली और एक बहस शुरू हो गयी, पारले बिस्कुट के रैपर पर छपी बच्ची की पहचान को ले कर ! अधिकतर गूगल ज्ञानियों का दावा था कि यह फोटो सुधा कृष्णमूर्ति जी के पिताजी द्वारा खींची गयी, बचपन की फोटो है, जब वह चार साल की थीं ! कई इसे नीरू देशपांडे की तथा कुछ गुंजन गंडानिया की बता रहे थे। अक्सर कई चीजों को ले कर क्षण भर के लिए ऐसी जिज्ञासाएं उठती रहती हैं और कुछ देर बाद ही वह भूला भी दी जाती हैं ! पर इस बार सोचा कि गहरे पानी पैठ ही लिया जाए।
जैसा की होना ही था, इसकी प्रसिद्धि और कमाई देख अन्य निर्माता भी इस क्षेत्र में उतरे, जिनमें ब्रिटानिया प्रमुख था। उसने अपना ग्लूकोज बिस्कुट ब्रिटानिया-डी के नाम से बाजार में उतारा। मजबूरन पार्ले ने स्पर्द्धा में टिके रहने के लिए अपने ''पारले ग्लूको'' के नाम और उस समय के कवर पर की ''गाय और ग्वालन'' की तस्वीर को बदल एक विशेष पीले रंग के कवर. लाल रंग के लोगो व एक लड़की की फोटो के साथ एक नए पैकिंग को पेटेंट करवा उसे 1982 में बाजार में उतारा। पहले के पारले-जी यानी पारले ग्लूकोज को बदल नया नारा दिया पारले जीनियस। खर्च में कटौती के लिए वैक्स पेपर को प्लास्टिक के रैपर से बदल दिया गया। जो भी हो इसकी लोकप्रियता अभी भी बरकरार है। सर्वे को देखा जाए तो पारले-जी की बिक्री दुनिया के चौथे सबसे बड़े बिस्कुट उपभोक्ता मुल्क चीन से भी ज्यादा है। भारत से बाहर यह यूरोप, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आदि में भी उपलब्ध है। पारले-जी अकेला ऐसा बिस्कुट है जो कि गांवों से लेकर शहरों तक में एक ही रेट से बिकता है और दोनों जगह ही इसकी लोकप्रियता एक समान है।
अब रैपर पर छपी मासूम सी सुंदर बच्ची की बात, जिस पर बहस और यह लेख शुरू हुआ था ! तो यह जान लें कि यह फोटो किसी मॉडल या सेलिब्रेटी की नहीं बल्कि एक ऐनिमेटड पिक्चर है जिसका निर्माण 1979 में किया गया था। यह बात पारले कंपनी के ग्रुप प्रोडक्ट मैनेजर रहे मंयक शाह ने साफ़ की कि पारले के पैकिट पर दिखायी देने वाली लडकी एक काल्पनिक लडकी का चित्र है। जिसे एवरेस्ट क्रियेटिव कंपनी के चित्रकार मगनलाल दहिया ने 1960 के दशक में इस तस्वीर को पारले कंपनी के लिए बनाया था। उसके बाद ये बिस्कुटों पर नजर आने लगी थी। उनके अनुसार इससे संबंधित सारी अफवाहें बेबुनियाद हैं। तो यह है उस रैपर पर छपी क्यूट सी बच्ची के फोटो की हकीकत !
9 टिप्पणियां:
मीना जी
आभार¡कल इन्हीं बिस्कुटों के साथ चर्चा का आनंद लिया जाएगा 😊
हार्दिक आभार आपका 🙏🙏
समय बतलाने वाले यंत्र में कुछ गडबड है शायद ¡
चलिए आपके लेख से पता तो चला कि पारले जी के बिस्किट के ऊपर जो फोटो है वह काल्पनिक है मैं भी सोचती थी कि ये बच्ची कौन है..?
और आपके ब्लॉग में आकर हमेशा ही कुछ नए चीजों से जुड़ती हूं जो वाकई में मुझे बहुत अच्छा लगता है साहित्यिक बातें तो चर्चा मंच में होती रहती है और हमेशा होती रहेगी लेकिन कभी-कभी कुछ अलग तरह की बातें भी पढ़ने को मिले तो बात ही अलग है ज्ञानवर्धक और मन प्रसन्न हो जाता उन चीजों को .देखकर....
अनीता जी
ऐसी ही प्रेरणाओं से कुछ अलग सा करने का हौसला मिलता है¡बहुत-बहुत आभार
ज्ञानवर्धक लेख ,पारले जी की सारी कहानी बड़ी रोचक लगी ,इस सच्चाई को साझा करने के लिए आभार आपका ,सादर नमन
कामिनी जी
स्वागत है सदा आपका
पार्ले जी तो मेरा बचपन से अब तक बड़ा प्रिय रहा। भोजन मिले ना मिले ये मिलना चाहिए।
आज आपके इस रोचक लेख को पढ़ कर आनंद भी आया और मुँह में पानी भी।
आपका हार्दिक आभार इतनी अच्छी जानकारी साझा करने हेतु। सादर प्रणाम
आंचल जी
सदा स्वस्थ,प्रसन्न रहिए
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