भानुमति का पिटारा, छज्जू का चौबारा जैसी अपनी विशेषताओं के लिए मुहावरों और लोकोक्तियों के अति प्रसिद्ध पात्रों की श्रृंखला की तीसरी कड़ी कारूं का खजाना ! कौन था यह कारूं ? जो कहीं भी बेहिसाब दौलत का जिक्र आते ही सामने आ खड़ा होता है ! जिसके बारे में यह प्रचलित था कि वह यूनानी राजा ''मिडास'' का वंशज है। क्या यह कोई काल्पनिक पात्र था या वास्तव में इसका वजूद था ................!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कभी-कभी समय के साथ-साथ कल्पित कथा-कहानियां या उसके पात्र हमसे इतने घुल-मिल जाते हैं कि हम उन्हें वास्तविक समझने लगने लगते हैं और इसके उलट कभी-कभी वास्तविक घटनाएं, पात्र और उनके द्वारा किए गए मानवेत्तर कार्य इतने लोकप्रिय हो जाते हैं कि लोकोक्तियां या मुहावरे बन, वास्तविकता और कल्पना की सीमा को ही ख़त्म कर देते हैं ! ऐसा ही एक पात्र है कारूं ! बेहिसाब दौलत का जब कहीं भी जिक्र होता है तो कारूं के खजाने का मुहावरे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है ! भारत में यह मुहावरा फ़ारसी से आया है। जहां कारूं का उल्लेख कारून के रूप में मिलता है। अंग्रेजी में यही कारून, क्रोशस के रूप में उल्लेखित है ! जहां ''एज़ रिच एज़ क्रोशस'' वाक्य मशहूर है। कौन था यह शख्स ? क्या यह कोई काल्पनिक पात्र था या वास्तव में इसका वजूद था ? इतिहास के सागर में यदि गोता मारा जाए तो यह सच सामने आता है कि यह नाम कोई कोरी कल्पना नहीं है। कभी इस नाम का एक बहुत ही धनी राजा हुआ था पर वह जितना ऐश्वर्यवान था उतना ही महाकंजूस तथा घमंडी भी था।
कारूं |
ईसा से 560 से 547 वर्ष पूर्व एशिया माइनर यानी आज की टर्की में लीडियन साम्राज्य के राजा क्रोशस का शासन था, जिसकी राजधानी सार्डिस थी। उसके बारे में यह प्रचलित था कि वह यूनानी राजा ''मिडास'' का वंशज है। हो सकता है यह धारणा उसके स्वर्ण के प्रति अत्यधिक मोह के कारण बनी हो ! उसके राज्य में ढेरों सोने की खदानों के अलावा राज्य में से हो कर बहती नदियों में भी प्रचुरता से स्वर्ण कणों की उपलब्धता थी। लीडिया की धरती उस समय सोने का पर्याय बन गयी थी। उसकी समृद्धि, धन-वैभव, विशाल व असाधारण खजाने की ख्याति देश-विदेश में चारों ओर फैली हुई थी। पर इतनी अकूत संपत्ति का स्वामी होने के बावजूद वह पर्ले दर्जे का घमंडी व कंजूस था। पर इसके बावजूद उसने दुनिया को एक अनोखी देन भी दी थी और वह है टकसाल ! क्रोशस से पहले सिक्के ठोक-पीट कर बनाए जाते थे पर उसने सोने को ढाल कर इलेक्ट्रम नामक स्वर्णमुद्रा की ईजाद की जिसकी गुणवत्ता बनाए रखने पर बड़ी कड़ाई से ध्यान रखा गया। इसके अलावा वह पहला एशियाई राजा था जिसने यूनान पर अपना अधिकार स्थापित किया।
ढली हुई स्वर्णमुद्रा |
सदियाँ बीत गयीं उस रहस्यमय खजाने पर समय की धूल जमती चली गई ! वह अप्रतिम खजाने का क्या हश्र हुआ यह सवाल अभी तक सुलझ नहीं पाया है। ऐसा माना जाता है कि वह विशाल धन भंडार किसी शाप की वजह से तुर्की के उसाक प्रांत में जमींदोज हो गया है और जो कोई भी उसको हासिल करने की कोशिश करेगा उसकी या तो मौत हो जाएगी या बहुत नुकसान झेलना पडेगा ! पर दुनिया में साहसियों, हठधर्मियों और सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास न करने वालों की बड़ी-पूरी जमात है ! ऐसे ही लोग समय-समय पर उस खजाने को हथियाने की कोशिश करते रहे हैं ! बहुतों को बहुत कुछ हासिल भी हुआ, पर वे उसका उपयोग कुछ दिनों तक ही कर पाए और किसी न किसी हादसे का शिकार हो गए !
इसके बावजूद भी बीच-बीच में तुर्की के आस-पास लालचवश या जरुरत के लिए हुए खनन इत्यादि में तरह-तरह के आभूषण, सोने-चांदी के पात्र, स्वर्णमुद्राएँ और सोने से भरे बर्तन मिलने की ख़बरें आती रहती हैं, पर साथ ही प्राप्तकर्ता के साथ हुए हादसों का जिक्र भी होता है ! इससे यह धारणा और भी पुख्ता होती जाती है कि यह खजाना शापित है ! खजाना तो है इसका प्रमाण है यहां से प्राप्त अमूल्य वस्तुओं में से करीब 363 वे नायाब और अमूल्य कलाकृतियां जो टर्की के म्यूजियम में सुरक्षित रखी हुए हैं ! वास्तविकता चाहे जो हो पर जब तक यह कायनात रहेगी, कारूं के खजाने की चर्चा और लोकोक्ति भी जीवित रहेगी।
इसके बावजूद भी बीच-बीच में तुर्की के आस-पास लालचवश या जरुरत के लिए हुए खनन इत्यादि में तरह-तरह के आभूषण, सोने-चांदी के पात्र, स्वर्णमुद्राएँ और सोने से भरे बर्तन मिलने की ख़बरें आती रहती हैं, पर साथ ही प्राप्तकर्ता के साथ हुए हादसों का जिक्र भी होता है ! इससे यह धारणा और भी पुख्ता होती जाती है कि यह खजाना शापित है ! खजाना तो है इसका प्रमाण है यहां से प्राप्त अमूल्य वस्तुओं में से करीब 363 वे नायाब और अमूल्य कलाकृतियां जो टर्की के म्यूजियम में सुरक्षित रखी हुए हैं ! वास्तविकता चाहे जो हो पर जब तक यह कायनात रहेगी, कारूं के खजाने की चर्चा और लोकोक्ति भी जीवित रहेगी।
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से