मंगलवार, 14 अगस्त 2018

क्या सम्पाती का सूर्य के नजदीक पहुंचना, सिर्फ एक गल्प या कोरी कल्पना है ?

सम्पाती और जटायू का सूर्य प्रयाण कोई भावावेश में, अहम के अतिरेक में या अति उत्साह में उठा लिया गया कदम नहीं था। अंतरिक्ष में जाना कोई हंसी-खेल नहीं है; जो अड़चनें आज हैं वे निश्चित रूप से तब भी होंगीं ! ऐसी यात्रा  बिना पूरी वैज्ञानिक जानकारी के संभव हो ही नहीं सकती ! फिर घायल व मुर्क्षित अवस्था में सम्पाती का, अंतरिक्ष में छिटक कर कहीं और चले जाने के बजाए , वापस अपनी जगह लौट आना भी इस बात का संकेत है कि यह प्रयास यूं ही नहीं कर लिया गया था !  पर विडंबना तो यह है कि आज की पीढ़ी, सम्पाती को तो छोड़िए; रामायण से भी पूरी तरह वाकिफ नहीं है.....................! 

#हिन्दी_ब्लागिंग
कुछ दिनों पहले नासा ने अमेरिकी वैज्ञानिक युजिन पार्कर के नाम पर एक पार्कर यान सूर्य के रहस्यों को जानने के लिए भेजा है, जो 85 दिनों यानी करीब अढ़ाई महीने के बाद सूर्य से 64 लाख किमी की दूरी तक पहुँच, अगले सात सालों तक उसके 24 चक्कर लगा, इसके रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश करेगा। कहा जा रहा है कि यह मानव जाति का पहला ऐसा प्रयास है जो सूर्य के इतने करीब पहुंचेगा। पर यदि हम अपने ग्रंथों को ध्यान से पढ़ें और उनका विश्लेषण करें तो पाएंगे कि ऐसा प्रयास आज से तक़रीबन सात हजार साल पहले, रामायण काल में दो भाइयों, सम्पाती और जटायू द्वारा किया जा चुका है। चूँकि वह अभियान असफल रहा था, शायद इसीलिए उसका विस्तृत विवरण भी उपलब्ध नहीं है और शायद निष्फलता के कारण ही उस दुर्धर्ष प्रयास को दोनों भाइयों के दंभ और अहंकार से जोड़ दिया गया ! 

यदि रामायण को पूरे ध्यान से पढ़ा जाए तो अनेकानेक ऐसे चरित्र सामने आएंगे, जिनका ज्ञान-ध्यान-विज्ञान में कोई सानी नहीं था। जिनके पास अद्भुत शक्तियां थीं। ग्रंथ में तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र, यान, वायु-जल-थल में प्रयोग होने वाली तकनिकी, बल-बुद्धि-साहस-शौर्य का विवरण मिलता ही है, तो इसमें क्या आश्चर्य कि सम्पाती और जटायू ने सूर्य के बारे में जानने की, उसके रहस्यों को खोलने की कोशिश की हो। कथानक में यह साफ़ लिखा है कि सम्पाती सूर्य के अत्यधिक निकट चले गए थे। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिना सोचे-समझे, बिना किसी जानकारी के, बिना किसी गणना के, बिना पूरी तैयारी के, बिना राह में आने वाली परेशानियों-मुश्किलों को जाने, ऐसा उद्यम किया ही नहीं जा सकता था। उस पर घायल व मुर्क्षित अवस्था में भी सम्पाती का वापस अपनी जगह लौटना भी इस बात का संकेत है कि यह प्रयास यूं ही नहीं कर लिया गया था। पर विडंबना तो यह है कि आज की पीढ़ी सम्पाती को तो छोड़िए; रामायण से भी पूरी तरह वाकिफ नहीं है !
   
आज सभी जानते हैं कि अंतरिक्ष में जाना कोई हंसी-खेल नहीं है। जो अड़चने आज हैं वे तब भी होंगी ! तो ऐसी यात्रा बिना पूरी वैज्ञानिक जानकारी के संभव ही नहीं है ! फिर घायल व मुर्क्षित अवस्था में सम्पाती का वापस अपनी जगह लौटना भी इस बात का संकेत है कि यह प्रयास यूं ही नहीं कर लिया गया था। इसके लिए खाने-पीने से लेकर अपने शरीर के बाहरी आवरण को बचाने के लिए भी कई तरह के इंतजाम करने पड़ते हैं, नहीं तो हवा के दवाब के ना होने से किसी का भी शरीर गुब्बारे की तरह फट सकता है। इसके साथ ही किसी प्रकार के वातावरण के नहीं होने से विकिरण एक बहुत बड़ी समस्या बन जाता है। अंतरिक्ष में पूर्ण अंधकार में दिशा का ज्ञान रखना भी बहुत जरुरी है नहीं तो लाखों मील की यात्रा में कोई कहीं का कहीं पहुंच जाए ! अंतरिक्ष में लावारिस क्षुद्र-ग्रहों, उनसे टूटे छोटे-बड़े टुकड़ों से टकराने का भय हर पल बना रहता है ! उस पर शरीर की हड्डियों, आँखों, दिलो-दिमाग पर भी उस अंधेरे, सुनसान, बियाबान, गुरुत्वाकर्षण विहीन वातावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है। ऐसे में बिना किसी सहारे के यात्रा करना सीधे-सीधे मौत के मुंह में जाना है।

इसीलिए सम्पाती और जटायू का यह सूर्य प्रवास कोई भावावेश में, अहम के अतिरेक में या अति उत्साह में उठा लिया गया कदम नहीं था। लाखों-लाख मील की यात्रा का आगाज, बहुत सोच-समझ कर राह में आने वाली सारी अड़चनों, परेशानियों, आकस्मिक मुसीबतों को जानते-बूझते, खान-पान-आराम, सुरक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरुरतों का ध्यान और उनका हर तरह का इंतजाम और तैयारी करने के बाद ही संभव हो सकता है। ऐसा सोचने के कुछ कारण, कुछ सच्चाइयां, कुछ तथ्य, हमारे सामने हैं ! आज सभी जानते हैं कि धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से पार पा कर ही अंतरिक्ष में जाया जा सकता है। जिसके लिए अत्यधिक बल की जरुरत पड़ती है। इससे जाहिर होता है कि दोनों भाइयों के पास ऐसा कोई साधन, कोई तकनीक जरूर होगी जिसकी सहायता से उन्होंने यह बाधा पार की होगी ! दूसरी बात, धरा से पांच-सात किमी की ऊंचाई तक जाते-जाते आक्सीजन की कमी होने लगती है, बिना उसके मानव-पशु-पक्षी कोई भी जीवित नहीं रह सकता ! इसका उपाय भी उन्होंने जरूर सोच रखा होगा ! तीसरी, आज यह तथ्य सभी जानते हैं कि पृथ्वी के वातावरण से निकलते ही तापमान कहीं शून्य से कई डिग्री तक कम और कहीं कई डिग्री ज्यादा हो जाता है जिसमें किसी भी जीवित प्राणी के प्राण बचना संभव नहीं है। चौथी, इतनी लम्बी यात्रा बिना खाए-पीए-सोए या आराम किए तो पूरी नहीं ही की जा सकती; तो इसका हल भी उन्होंने जरूर निकाला होगा ! कथा बताती है कि सम्पाती सूर्य के अत्यधिक पास पहुंच गया था तो उसे विकरण, क्षुद्र-ग्रहों के टुकड़ों, धूमकेतुओं, वहाँ के तापमान इत्यादि का भी जरूर ज्ञान होगा ! जिनसे बचाव का उपाय भी उसके पास जरूर होगा ! सबसे अहम बात यह है कि अंतरिक्ष में वातावरण ना होने के कारण सूर्य की गर्मी महसूस नहीं होती, जब तक किसी ग्रह के वातावरण में प्रवेश ना कर लिया जाए ! तो अब इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि सम्पाती सूर्य के कितने नजदीक पहुँच गया था जो उसके पर-पंख या कहें तो सुरक्षा कवच तक जल गए थे ! फिर सबसे बड़ी बात कि इस दुर्घटना के बाद भी उसका घायल, बेहोश शरीर अंतरिक्ष में छिटक कर कहीं गुम हो जाने के बजाय वापस धरती पर पहुँच गया था ! क्या यह सब उच्च कोटि के विज्ञान के ज्ञान के बिना संभव था ?

विडंबना यही है कि हर तरह के ज्ञान-विज्ञान के हमारे पास होते हुए भी हम उस पर विश्वास नहीं करते ! अपने ही वेदों-ग्रंथों पर हमें भरोसा नहीं है। अपने ऋषि-मुनियों द्वारा किए गए मार्ग-दर्शन का हम मजाक तक उड़ा देते हैं। पुरानी सीखों, उपदेशों, शिक्षाओं को मानना हमें पोंगापंथी नजर आती है। हम अपने ही ज्ञान को तब तक नहीं मानते जब तक उस पर विदेश की मोहर ना लग जाए। जबकि सिर्फ रामायण और महाभारत इन दो ही ग्रंथों में वह सब कुछ है जो आज तक दुनिया में होता आया है, हो रहा है तथा होता रहेगा !                

1 टिप्पणी:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी,
हार्दिक धन्यवाद

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