बुधवार, 18 अप्रैल 2018

ल्ल ! हो गईल चार..!

एक रात जब एक पहरेदार ने सुबह चार बजे की सुचना घंटा बजा कर दी, तो दूसरे ने पूछा, का हो, मिसिर ! केतना बजइले ? पहला बोला, चार ! पर हम तो तीन ठो सुनले हईं ! पहला बोला।  अरे नाहीं, पूरा गिन के चार बार बजइले हईं !  दूसरा, अरे बुड़बक, तीन बार बजइले हउआ, फजिर में बड़ा साब निकाल बाहिर करीहें। अब पहला घबड़ा गया उसे लगा की गल्ती हो गयी है ! उसने मुगदर उठाया और दन्न से घंटे पे दे मारा....,ल्ल ! हो गईल चार.............!

#हिन्दी_ब्लागिंग
कभी-कभी दिलो-दिमाग पर पड़ी किसी हल्की सी दस्तक से कोई ऐसी याद कपाट खोल सामने आ जाती है जो बरबस तन-बदन को तरंगित कर मुस्कुराने पर मजबूर कर देती है। कल रात सोते समय पता नहीं कैसे-कैसे, क्या-क्या लिंक जुड़ते गए जो धीरे-धीरे मुझे सत्तर के दशक में खींच कर ले गए। अपना बचपन, उस से जुड़े लोग, उनका भोलापन, बड़े लोगों की दयालुता-दानिश्ताई सब जैसे सजीव सा होता चला गया। उसी समय के दो-तीन प्रसंग पेश हैं जो आपके चहरे पर भी मुस्कान बिखेर देंगे। 
एस्पलेनेड के खादी उद्योग भवन पर लगी घडी 

हर की पौड़ी का टॉवर क्लॉक 
उन दिनों हाथ-घड़ियाँ आम नहीं हुआ करती थीं। समाज का ख़ास वर्ग ही उनका उपयोग किया करता था। आज यह जान कर अजीब लगे पर निम्न आय और मजदूर वर्ग तो शायद सोचता भी नहीं था घडी लेने के बारे में। लोगों की सहूलियतों के लिए शहरों-कस्बों के बड़े चौराहे पर बड़ी-बड़ी घड़ियाँ मीनार पर या ऊँची इमारतों पर लगाई जाती थीं। अभी भी ऐसी घड़ियाँ छोटे-बड़े शहरों में देखी जा सकती हैं। इसके अलावा कामगारों की सहूलियत के लिए  कल-कारखानों के साथ-साथ कई जगह रात के समय गजर, जिसे घंटा कहा जाता था, बजाने की परंपरा भी थी। यह एक लोहे का बड़ा सा, भारी आयताकार टुकड़ा होता था जो एक हुक से दोलायमान अवस्था में लटका रहता था इस पर सयानुसार एक लोहे के हथौड़े से चोट कर समय बताया जाता था, जैसे दो बजे, दो प्रहार कर, तीन बजे, तीन प्रहार कर। यह क्रम रात के ग्यारह बजे से शुरू हो सुबह के चार बजे तक हर घंटे, समय के अनुसार चलता था। 
गंगा का किनारा, जहां बचपन बीता ! 

घर गंगा किनारे वाले 
हमारी फैक्ट्री #Reliance Jute & Ind. ltd., का रिहाइश वाला हिस्सा ठीक गंगा नदी के किनारे पर था। वहाँ कोई दिवार वगैरह नहीं थी। उन दिनों चोरी-चकारी का उतना डर नहीं था फिर भी रात दस बजे से सुबह पांच बजे तक दो दरबानों (Guard) की ड्यूटी वहाँ लग जाया करती थी। उन्हीं पर रात को हर घंटे गजर बजाने का भी जिम्मा रहता था। कारखाने का तैयार माल-असबाब, रेल-सड़क और जल-मार्ग तीनों से बाहर भेजा जाता था। इसलिए नदी पर "जेटी" भी बनी हुई थी, जो घरों के पास ही थी। फैक्ट्री में गजर दो जगह बजाया जाता था; एक तो मेन-गेट पर, दूसरा जेटी पर। तो एक रात जब एक पहरेदार ने सुबह चार बजे की सुचना घंटा बजा कर दी, तो दूसरे ने पूछा, का हो, मिसिर ! केतना बजइल ? पहला बोला, चार ! पर हम तो तीन ठो सुनले हईं ! पहला बोला।  अरे नाहीं, पूरा गिन के चार बार बजइले हईं !  दूसरा, अरे बुड़बक, तीन बार बजइले हउअ, फजिर में बड़ा साब निकाल बाहिर करीहें। अब पहला घबड़ा गया उसे लगा की गल्ती हो गयी है ! उसने मुगदर उठाया और दन्न से घंटे पे दे मारा।... ल्ल ! हो गईल चार। दोनों जने संतुष्ट हो खैनी रगड़ने लगे।   
जेटी 

इसी तरह के होते थे गजर 
फिर ?
फिर क्या ! उधर चीफ-इग्ज़ेक्युटिव डागा जी अपने बंगले में जाग चुके थे। उन्होंने जब एक घंटे की आवाज सुनी तो चौंके कि अभी तो चार बजे थे पांच मिनट बाद ही एक कैसे बज गया ? घडी देखी तो सुबह के चार बज के पांच मिनट हुए थे। उस समय तो उन्होंने किसी को नहीं बुलाया पर सुबह छह बजे आफिस पहुंचते ही जेटी पर के उन दरवानों को बुला भेजा। दोनों जने डरते-कांपते हाजिर हुए ! सारी बात बतला सर झुकाए खड़े रहे। आगे से ध्यान रखने की हिदायत और जाने की इजाजत पा दोनों भगवान को धन्यवाद देते हुए भाग खड़े हुए। थोड़ी ही देर में यह बात पूरी मिल में फ़ैल गयी और दोनों जने हफ़्तों मुंह बचाते लुकते-छिपते रहे, खासकर हम बच्चों से.......!

*कल फिर मिसिर जी की पेशी 

10 टिप्‍पणियां:

समय चक्र ने कहा…

खूब रोचक प्रस्तुति ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

महेंद्र जी, स्नेह बना रहे!

Sweta sinha ने कहा…

वाहह...रोचक मेरे बचपन की याद दिला दी आपने, काफी छोटे थे तब हमारे कॉलोनी में ऐसा ही घंटा बजता था।
बहुमूल्य होती है ऐसी यादें।
आभार आपका गगन जी।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी, सदा स्वागत है आपका

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 18 अप्रैल - विश्व विरासत दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी,
बहुत-बहुत धन्यवाद

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

बेचारे सीधे-सादे प्राणी -बहुत मज़ेदार !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रतिभा जी,
शायद तभी दुनिया का संतुलन बना हुआ है !

संजय भास्‍कर ने कहा…

रोचक प्रस्तुति ...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संजय जी,
आभार

विशिष्ट पोस्ट

रॉबिन्सन क्रूसो का मैन फ्राइडे, क्या से क्या हो गया

अपने सृजन के समय जो चरित्र एक भरोसेमंद, भलामानस व  मददगार के रूप में गढ़ा गया था !  वह आज तक आते-आते पूर्णतया रीढ़-विहीन, मतलब-परस्त, कुटिल, ध...