तलाशी लेने, छापा मारने, किसी को पकड़ने या अपराधी का पीछा करते हुए पुलिस सायरन बजाते क्यों घूमती है ? रात को चौकीदार डंडा पटक, सीटी बजा कर पहरेदारी क्यों करता है ? क्या चोर को बताने के लिए कि भाई मैं इधर हूँ ; तू अपना देख ले ! क्यों लोअर कोर्ट का फैसला हाई कोर्ट में उलट जाता है ? क्या पिछला जज अनुभव हीन होता है ? क्यों माननीय लोगों को अनाप-शनाप सुविधाएं दी जाती हैं ? क्यों नहीं करोड़ों-अरबों के मालिक सांसद वगैरह एक-दूसरे पर लांछन लगाने की बजाए एक-दो गांव गोद ले लेते ? क्यों आदमी जब कुत्ते को काटे तभी मीडिया के लिए खबर बनती हैं ........!
#हिन्दि_ब्लागिंग
कुछ बातें ऐसी होती हैं जो समझ में नहीं आतीं चूँकि होती चली आ रही हैं इसलिए सब उसे सामान्य रूप से लेते चलते हैं, उनका औचित्य किसी की समझ में आता हो या ना आता हो, मुझे तो खैर आज तक नहीं आया ! जैसे
धूम्रपान दुनिया-जहांन में बुरा, सेहत के लिए हानिकारक, शरीर के लिए नुकसानदेह है। सरकार ने सेवन तथा विक्रय करने वालों पर कड़ी नजर तथा दसियों पाबंदियां थोप रखी हैं ! लोगों को इसकी बुराई के बारे में हिदायतें देने पर लाखों रुपये फूँक दिए जाते हैं। पर ना हीं तंबाखू की पैदावार पर कभी रोक लगी और नाहीं सिगरेट इत्यादि बनाने वाले कारखानों पर। अब सोचने की बात यह है कि कोई इंसान करोड़ों खर्च कर इतना बड़ा कारखाना शौकिया तो लगाएगा नहीं; वह तो अपनी लागत निकालने के लिए अपना उत्पाद तो बेचेगा ही। जब सामान बाजार में उपलब्ध होगा, बिकेगा तो खरीदने वाला उसका उपयोग करेगा ही...फिर ? कहते हैं नशीली चीजों से ही सरकार को सबसे ज्यादा आमदनी होती है; तो हुआ करे फिर उनकी बंदी का नाटक क्यों ?
धूम्रपान दुनिया-जहांन में बुरा, सेहत के लिए हानिकारक, शरीर के लिए नुकसानदेह है। सरकार ने सेवन तथा विक्रय करने वालों पर कड़ी नजर तथा दसियों पाबंदियां थोप रखी हैं ! लोगों को इसकी बुराई के बारे में हिदायतें देने पर लाखों रुपये फूँक दिए जाते हैं। पर ना हीं तंबाखू की पैदावार पर कभी रोक लगी और नाहीं सिगरेट इत्यादि बनाने वाले कारखानों पर। अब सोचने की बात यह है कि कोई इंसान करोड़ों खर्च कर इतना बड़ा कारखाना शौकिया तो लगाएगा नहीं; वह तो अपनी लागत निकालने के लिए अपना उत्पाद तो बेचेगा ही। जब सामान बाजार में उपलब्ध होगा, बिकेगा तो खरीदने वाला उसका उपयोग करेगा ही...फिर ? कहते हैं नशीली चीजों से ही सरकार को सबसे ज्यादा आमदनी होती है; तो हुआ करे फिर उनकी बंदी का नाटक क्यों ?
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दोषी लोगों के लिए प्राणदंड का प्रावधान है पर धंदा चालू है। कभी सुना है किसी को दंड भुगतते ?
दो-तीन साल पहले खूब हल्ला मचा प्लास्टिक की थैलियों को लेकर। यह बताने में करोड़ों रूपये बहा दिए कि इससे जमीं-हवा-पानी सब बर्बाद हो जाता है; कुछ दिन असर रहा पर फिर सब यथावत ! ना फैक्ट्रियां बंद हुईँ, ना हीं बिक्री रुकी ! आज सब धड़ल्ले से चल रहा है। बाकी का तो छोड़िए दिल्ली जो प्रदूषित वातावरण से परेशां है वहीँ इसे रोकने वाला कोई नहीं है। अटि पड़ी हैं, सड़कें , नाले-नालियां प्लास्टिक के कचड़े से। जब तक उत्पादन पर रोक नहीं लगेगी तब तक कैसे रुकेगा यह गोरख - धंदा ? सोचने की बात है
कि ऐसी जगहों को बिजली-पानी हर चीज की सुविधा कौन उपलब्ध करवाता है ? क्या आम आदमी ? चाणक्य ने कटीले पौधे की जड़ों में मठ्ठा डाल उसे समूल नष्ट करने की शिक्षा दी थी। पर यहां विडंबना यही है कि आप जड़ को तो ख़त्म कर नहीं रहे पत्तों टहनियों पर जोर दिखा रहे हो तो विष-वृक्ष पनपने से कैसे रुकेगा ? कारण वही है, इन सब चीजों के कारखाने ज्यादातर रसूखदार, भाई-भतीजों, पार्टी नेताओं या आमदनी स्रोतों के पास होते है जो अपने दल-बल-छल से येन-केन-प्रकारेण अपना हित साध लेते हैं। अंदर ही अंदर पैसों का खेल चलता रहता है और हमारे जैसों को कुछ भी समझ नहीं आता।
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