गुरुवार, 7 सितंबर 2017

ब्रह्मदेश, बर्मा या म्यांमार का काली माता का मंदिर

बर्मा का भारतीय फ़िल्मी दुनिया से भी संबंध काफी पुराना है। फ़िल्मी जगत की सबसे सफल नर्तकी-अभिनेत्री हेलेन मूल रूप से बर्मा की ही हैं। वर्षों पुराना सदाबहार गीत "मेरे पिया गए रंगून किया है वहाँ से टेलीफून" को लोग आज भी गुनगुनाते हैं। बर्मा को लेकर कई फ़िल्में भी बन चुकी हैं............. 

#हिन्दी_ब्लागिंग
म्यांमार, हमारे पड़ोसी देशों में से एक; पर जिसके बारे में हम शायद सबसे कम जानते हैं। इतना कम कि हमें यह भी नहीं मालुम कि 1937 के पहले भारत का ही एक अंग हुआ करता था, जिसे ब्रह्मदेश के नाम से जाना जाता था। पर 1937 के बाद अंग्रेजों ने इसे भारत से अलग कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस पर जापान ने कब्जा कर लिया; जिससे 1945 में इसे मुक्ति मिली। 1948 में यह स्वतंत्र देश बन गया। पर इसके बारे में जानकारी इतनी कम है कि अधिकाँश को इसकी आज की राजधानी का नाम नाएप्यीडॉ (Naypyidaw) भी मालूम नहीं होगा। कारण भी है, यह देश सालों साल मिलिट्री शासन के कारण एक लौह-कपाट के पीछे ही रहा है। अब दुनिया के साथ चलने के लिए जैसे ये नींद से जागा है। पिछले दिनों भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की यहां की यात्रा के बाद लोगों की इसके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ी है।



पहले म्यांमार को बर्मा के नाम से जाना जाता था। जो यहां की बर्मी आबादी के कारण पड़ा था। तब इसकी राजधानी का नाम रंगून था, जिसे बाद में यांगून कहा जाने लगा। यह 2006 तक यहां की राजधानी रहा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का मुख्यालय यहीं बनाया था। भारत के बौद्ध प्रचारकों के प्रयासों से यहाँ बौद्ध धर्म की स्थापना हुई थी। वैसे भी यहां भारत से लोग अलग-अलग कारणों से आते रहते थे।  जिन्होंने यहां रह कर अनेक मंदिरों का निर्माण किया। सही संख्या तो नहीं मालुम पर पचास से ज्यादा मंदिर अभी भी यहां हैं। पिछले दिनों अपनी म्यांमार यात्रा के दौरान उन्हीं में से एक, माँ काली के प्राचीन मंदिर में जा नरेंद्र मोदी जी ने पूजा-अर्चना की थी। 

म्यांमार के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण शहर यांगून में स्थित इस मंदिर को अट्ठारवीं शताब्दी में भारत से गए तमिल लोगों ने बनवाया था। यह मंदिर अपनी कलात्मकता और खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। खासकर इसकी छत पर उकेरी गयी देवी-देवताओं की मूर्तियां मन मोह लेती हैं। अभी इसका रख-रखाव का जिम्मा वहां के भारतीय समुदाय के लोगों पर है।

 यहीं पर विश्व-प्रसिद्ध  श्वेडागोन पैगोडा तथा भारत के अंतिम मुग़ल बादशाह, बहादुर शाह जफ़र का मकबरा भी है, जिन्हें अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह के बाद भारत से लाकर यहां दफना दिया था। बरसों बाद बाल गंगाधर तिलक को भी यहां की मांडले जेल में कैद रखा गया था। रंगून और मांडले की जेलें अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों की गवाह हैं। 

यहां बड़ी संख्या में गिरमिटिया मजदूर ब्रिटिश शासन की गुलामी के लिए ले जाए गए जो लौट कर नहीं आ सके। इनके अलावा रोज़गार और व्यापार के लिए गए भारतियों की भी बड़ी संख्या यहां निवास करती है। 1962 के दंगों के दौरान हिंदुओं द्वारा बड़ी संख्या में बर्मा छोड़ देने और अभी कुछ प्रतिबधों के बावजूद भी करीब दस लाख हिंदू यहां के नागरिक हैं; जिनके पूर्वज वर्षों-वर्ष पहले आ कर यहाँ बस गए थे। उन्हें यह अपना ही देश लगता है। 
बर्मा का भारतीय फ़िल्मी दुनिया से भी संबंध काफी पुराना है। फ़िल्मी जगत की सबसे सफल नर्तकी-अभिनेत्री 'हेलेन' बर्मा की ही हैं। वर्षों पुराना सदाबहार गीत "मेरे पिया गए रंगून किया है वहाँ से टेलीफून" को लोग आज भी गुनगुनाते हैं। बर्मा को लेकर कई फ़िल्में भी बन चुकी हैं। 

छोटा होने के बावजूद बर्मा की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वह हमारे और चीन के बीच पड़ता है इसलिए भी उसकी स्थिति महत्वपूर्ण हो जाती है। वैसे भी वह पहले हमारा ही अंग रह चुका है सो हमसे जुड़ाव होना नैसर्गिक है; हमें आशा करनी चाहिए कि आने वाले दिनों में अपने इस पड़ोसी से हमारी नजदीकियां और भी बढ़ेंगी। 


"चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से" 

5 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

बहुत ही लाज़वाब जानकारी और तस्वीरे तो बहुत ही सुंदर है।आभार आपका इतने सुंदर पोस्ट के लिए।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, अनेकानेक धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी,
आपका सदा स्वागत है

Onkar ने कहा…

बढ़िया जानकारी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी, आभार

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