मेरी सोच है कि जिस तरह आयोजकों ने रामदेव जी के हाथों में एक पाश्चात्य वाद्य यंत्र थमा कर चित्र को मुख्य आकर्षण बनाना चाहा है उससे बाबा जी की वर्षों की मेहनत से बनी उनकी छवि शायद निखरेगी तो नहीं ! उल्टा लोगों को और बातें बनाने का मौका मिल जाएगा। हम कितना भी कहें कि हमें किसी की परवाह नहीं पर कुछ बातों का कहीं ना कहीं, कुछ ना कुछ असर तो पड़ता ही है !!
देश-दुनिया में हरेक इंसान को अपनी मन-मर्जी से जीने का, काम करने का, व्यवसाय को आगे बढ़ाने का, अपने भले-बुरे को समझने का पूरा हक़ है। पर जब कोई इंसान समाज में ख़ास पद, ख़ास मुकाम या किसी क्षेत्र में ख़ास दर्जा हासिल कर लेता है तो उससे आम जनता की कुछ और अघोषित अपेक्षाएं जुड़ जाती हैं। ज्यादातर लोगों के मानस में नेता, अभिनेता, आध्यात्मिक गुरुओं, साधू-संत-महात्मा इत्यादि की एक छवि बनी हुई है उसी के अनुसार लोग उनसे एक आदर्श और उच्च आचरण की अपेक्षा रखते हैं। हालांकि इन दिनों हर छवि खुद को खंडित करने पर तुली हुई है फिर भी अपेक्षाएं पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई हैं। पर जब इन ख़ास लोगों को आम आदमी की तरह हरकतें करते पाया जाता है तो मन में अंदर ही अंदर ठेस तो लगती ही है, मोह-भंग भी हो जाता है। पता नहीं यह बात कुछ लोगों की समझ में क्यों नहीं आती जबकि उनके सामने इसके दुष्परिणामों के दसियों उदाहरण मौजूद होते हैं !!
देश-दुनिया में हरेक इंसान को अपनी मन-मर्जी से जीने का, काम करने का, व्यवसाय को आगे बढ़ाने का, अपने भले-बुरे को समझने का पूरा हक़ है। पर जब कोई इंसान समाज में ख़ास पद, ख़ास मुकाम या किसी क्षेत्र में ख़ास दर्जा हासिल कर लेता है तो उससे आम जनता की कुछ और अघोषित अपेक्षाएं जुड़ जाती हैं। ज्यादातर लोगों के मानस में नेता, अभिनेता, आध्यात्मिक गुरुओं, साधू-संत-महात्मा इत्यादि की एक छवि बनी हुई है उसी के अनुसार लोग उनसे एक आदर्श और उच्च आचरण की अपेक्षा रखते हैं। हालांकि इन दिनों हर छवि खुद को खंडित करने पर तुली हुई है फिर भी अपेक्षाएं पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई हैं। पर जब इन ख़ास लोगों को आम आदमी की तरह हरकतें करते पाया जाता है तो मन में अंदर ही अंदर ठेस तो लगती ही है, मोह-भंग भी हो जाता है। पता नहीं यह बात कुछ लोगों की समझ में क्यों नहीं आती जबकि उनके सामने इसके दुष्परिणामों के दसियों उदाहरण मौजूद होते हैं !!

पहले एक भौंडे हास्य मंच, जो द्विअर्थी संवादों और छिछले हास्य के लिए जाना जाता है, पर उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी और फूहड़ता से बच नहीं पाए थे। अभी फिर एक तथाकथित रियल्टी शो में उनका प्रमुख स्थान है। भले ही शो पर आयोजकों ने भक्ति की चाशनी चढ़ा दी हो, कोशिश कर के हिंदी शब्दों को प्रमुखता से बोला जाता हो, हर शुरुआत के पहले

ये मेरे अपने विचार हैं ! मेरी सोच है कि जिस तरह आयोजकों ने रामदेव जी के हाथों में एक पाश्चात्य वाद्य यंत्र थमा कर चित्र को मुख्य आकर्षण बनाना चाहा है उससे बाबा जी की वर्षों की मेहनत से बनी उनकी छवि शायद निखरेगी तो नहीं ! उल्टा लोगों को और बातें बनाने का मौका मिल जाएगा। हम कितना भी कहें कि हमें किसी की परवाह नहीं पर कुछ बातों का कहीं ना कहीं, कुछ ना कुछ असर तो पड़ता ही है !!
#हिन्दी_ब्लागिंग
12 टिप्पणियां:
अत्यंत विचारोत्तेजक लेख...आपकी बातों से पूर्णतया सहमत है हम।बहुत अच्छे विचार आपके गगन जी।सराहनीय👍
श्वेता जी, कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, स्व॰ हबीब तनवीर साहब और ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-09-2017) को "वक़्त के साथ दौड़ता..वक़्त" (चर्चा अंक 2716) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, शुक्रिया
आपने विचारणीय बातें कही हैं
Dhanywad, Onkarji
उनके लिए शोभायमान नहीं
वही तो अरुण जी, यह बात क्यों नहीं समझ पा रहे ये महोदय !
नेता ,अभिनेता ,स्वामी,बाबा सभी प्रचार के भूखे हैं.
राजीव जी,
वह तो है ही पर अधिक प्रचार, विख्यात बना सत्ता के नजदीक भी तो ले जाता है और यही मकसद होता है ऐसे लोगों का !
एक टिप्पणी भेजें