हमारे देश में, गीता को छोड़ दीजिए, वह तो प्रभू की वाणी है। पर जिस तरह मानव-रचित रामायण व महाभारत, सदियों से हमारे सबसे पवित्र, सम्माननीय व लोकप्रिय ग्रंथ हैं; उसी तरह विष्णु जी की सबसे जनप्रिय, घर-घर में गायी जाने वाली, सबसे पमुख, प्रमाणिक मानी जाने वाली आरती "ॐ जय जगदीश हरे" है। उसको भी इन कुंठित दिमाग वालों ने नहीं बक्शा। जिस तरह के वस्त्र पहना कर एक प्रतिस्पर्द्धी से इसे पाप संगीत (पॉप म्युजिक) में गवाया गया है उसे किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं किया जाना चाहिए
#हिन्दी_ब्लागिंग
पता नहीं ऐसा क्यूँ है कि जब हमारे सामने कुछ गलत होता है तो हम उसे चुपचाप देखते रहते हैं और जब उसकी बुराई पूरी तरह खुल कर सामने आती है तो फिर हफ़्तों हाय-तौबा मचाए रखते हैं। इधर जितनी भी बड़ी घटनाएं हुई हैं वे सब इस बात का प्रमाण हैं। वैसा ही कुछ एक तथाकथित "रिएलिटी शो" में, जो अपनी सफाई में भजन
विधा को नई ऊंचाइयों और लोगों में स्थापित करने के दावे के साथ शुरू हुआ है, जिस तरह भजनों-आरतियों की बखिया उधेड़ी जा रही है, उस के बारे अभी कहीं से कोई आवाज नहीं उठ रही; पर जैसे ही एक बड़ा जनमत इसका विरोध करेगा तब सभी इसके विरोध में बोलना शुरू कर देंगे। इस पर एक पोस्ट पहले भी लिखी थी; पर उस पर भी लोगों की प्रतिक्रिया, सब चलता है, जैसी ही थी।
बाबा रामदेव को ढाल बना इस शो में जिस तरह भजनों को "फ्यूज" कर अन्धकार को लोकप्रिय बनाने का प्रयत्न हो रहा है वह किसी भी तरह ग्राह्य नहीं है। आश्चर्य है कि इतने दिनों बाद भी किसी तरह की आलोचनात्मक आवाज नहीं उठी है ! हो सकता है बाबा रामदेव के इससे जुड़े होना ही कारण हो और यही इस शो
शो के जज |
हमारे देश में, गीता को छोड़ दीजिए, वह तो प्रभू की वाणी है। पर जिस तरह मानव-रचित रामायण व महाभारत, सदियों से हमारे सबसे पवित्र, सम्माननीय व लोकप्रिय ग्रंथ हैं; उसी तरह विष्णु जी की सबसे जनप्रिय, घर-घर में गायी जाने वाली, सबसे पमुख, प्रमाणिक मानी जाने वाली आरती "ॐ जय जगदीश हरे" है। उसको भी इन कुंठित दिमाग वालों ने नहीं बक्शा। जिस तरह के वस्त्र पहना कर एक प्रतिस्पर्द्धी से इसे पाप संगीत
(पॉप म्युजिक) में गवाया गया है उसे किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं किया जाना चाहिए। पर विडंबना है कि मंच पर उपस्थित बाबा रामदेव सहित तथाकथित जज व अन्य, तालियां बजा - बजा कर उसे, भक्ति-गायन को एक अलग तरह की ऊंचाइयों पर ले जाने की उपलब्धि मान रहे हैं। कम से कम बाबा रामदेव से ऐसे मंच पर उपस्थित होने की उम्मीद नहीं थी जबकि उन्होंने बड़ी मेहनत से अपनी छवि एक देशभक्त, योग-गुरु, स्वदेशी और अपनी परंपराओं का सम्मान करने वाले के रूप में बनाई है।
(पॉप म्युजिक) में गवाया गया है उसे किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं किया जाना चाहिए। पर विडंबना है कि मंच पर उपस्थित बाबा रामदेव सहित तथाकथित जज व अन्य, तालियां बजा - बजा कर उसे, भक्ति-गायन को एक अलग तरह की ऊंचाइयों पर ले जाने की उपलब्धि मान रहे हैं। कम से कम बाबा रामदेव से ऐसे मंच पर उपस्थित होने की उम्मीद नहीं थी जबकि उन्होंने बड़ी मेहनत से अपनी छवि एक देशभक्त, योग-गुरु, स्वदेशी और अपनी परंपराओं का सम्मान करने वाले के रूप में बनाई है।
9 टिप्पणियां:
आभार, शास्त्री जी
जी, सही कहा भक्ति का संबंध आत्मा और भक्ति से होता है, भजनों को नया स्वरूप देने के नाम पर कानफोड़ू संगीत में बदल दिया जाय और सुनने से मनोरंजन का भाव उत्पन्न हो वो निःसंदेह ही गलत है।
बहुय अच्छा लेख गगन जी।
सही कहा
श्वेता जी,
यहाँ तो बाड ही खेत को नष्ट कर रही है।
लपेटना वाला एक रिवाज बनता जा रहा है।
जागरूक कराती प्रस्तुति
Onkar ji
स्वागत है
कविता जी,
कैसी कैसी बातें ग्राह्य होती चली जा रही है!!
सही कहा। भजन और आरती पॉप संगीत में नही गाई जानी चाहिए।
ज्योति जी,
जगराते वगैरह में भी फिल्मी धुनो पर आधारित भेटे कहाँ ठीक लगती हैं !
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