लोग बसों से आते-जाते थे, उसके किराए बढ़ा दिए गए ! लोग ने चुप रह मेट्रो का रुख किया तो उसकी कीमतें भी बढ़ा दी गयीं ! तर्क ये कि सालों से इसका किराया नहीं बढ़ा है ! गोयाकि सालों से नहीं बढ़ा है सिर्फ इसीलिए बढ़ाना जरुरी है; भले ही वह फायदे में चल या चलाई जा सकती हो ! पर नहीं सबसे आसान तरीका सब को यही सूझता है कि मध्यम वर्ग की जेब का छेद बड़ा कर दिया जाए.........
#हिन्दी_ब्लागिंग
एक पुरानी फिल्म, यकीन, का गाना है, "बच बच के, बच के, बच बच के, बच के कहाँ जाओगे" ! जो आज पूरी तरह देश के मध्यम वर्ग पर लागू हो फिर मौंजूं है ! उस गाने के बोलों को बिना जुबान पर लाए, आजमाया जा रहा है, देश के इस शापित वर्ग पर। देश की जनता समझ तो सब रही है ! फिलहाल चुप है। पर उसकी चुप्पी को अपने हक़ में समझने की भूल भी लगातार की जा रही है। आम-जन के धैर्य की परीक्षा तो ली जा रही है, पर शायद यह सच भुला दिया गया है कि हर चीज की सीमा होती है। नींबू चाहे कितना भी सेहत के लिए मुफीद हो, ज्यादा रस पाने की ललक में अधिक निचोड़ने पर कड़वाहट ही हाथ लगती है....।
#हिन्दी_ब्लागिंग
एक पुरानी फिल्म, यकीन, का गाना है, "बच बच के, बच के, बच बच के, बच के कहाँ जाओगे" ! जो आज पूरी तरह देश के मध्यम वर्ग पर लागू हो फिर मौंजूं है ! उस गाने के बोलों को बिना जुबान पर लाए, आजमाया जा रहा है, देश के इस शापित वर्ग पर। देश की जनता समझ तो सब रही है ! फिलहाल चुप है। पर उसकी चुप्पी को अपने हक़ में समझने की भूल भी लगातार की जा रही है। आम-जन के धैर्य की परीक्षा तो ली जा रही है, पर शायद यह सच भुला दिया गया है कि हर चीज की सीमा होती है। नींबू चाहे कितना भी सेहत के लिए मुफीद हो, ज्यादा रस पाने की ललक में अधिक निचोड़ने पर कड़वाहट ही हाथ लगती है....।
किसके बूते ? |
भले ही वह फायदे में चल या चलाई जा सकती हो ! पर नहीं सबसे आसान तरीका सब को यही सूझता है कि मध्यम वर्ग की जेब का छेद बड़ा कर दिया जाए। आम नागरिक फिर कड़वा घूंट पी कर रह गया। लोगों ने इसका तोड़, कार-स्कूटर पूल कर निकाला तो फिर इस बार सीधे पेट्रोल पर ही वार कर दिया गया। उस पर तरह-तरह के टैक्स, फिर टैक्स पर टैक्स, फिर सेस, पता नहीं क्या-क्या लगा उसकी कीमतों को अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से भी दुगना कर दिया गया। हल्ला मचा तो हाथ झाड़ लिए !
सरकारी, गैर-सरकारी कंपनियों की कमाई कहाँ से आती है; मध्यम वर्ग से ! देश भर में मुफ्त में अनाज, जींस, पैसा बांटा जाता है उसकी भरपाई कौन करता है; मध्यम वर्ग। सरकारें बनाने में किसका सबसे ज्यादा योगदान रहता है; मध्यम वर्ग का। फिर भी सबसे उपेक्षित वर्ग कौन सा है; वही मध्यम वर्ग !! अब तो उसे ना किसी चीज की सफाई दी जाती है नाहीं कुछ बताना गवारा किया जाता है। तरह-तरह की बंदिशों के फलस्वरूप इस वर्ग के अंदर उठ रहे गुबार को अनदेखा कर उस पर धीरे-धीरे हर तरफ से शिकंजा कसा जा रहा है कि कहीं बच के ना निकल जाए ! ऐसा करने वाले उसकी जल्द भूल जाने वाली आदत और भरमा जाने वाली फितरत से पूरी तरह वाकिफ हैं, इसीलिए अभी निश्चिंत भी हैं। पर कब तक ???