देश के चाहे किसी भी हिस्से में निकल जाइए, शहर हो या क़स्बा, आपको किसी न किसी पेड़ के नीचे हमारे भगवानों की भग्न, बदरंग या पुरानी मुर्तिया, टूटे कांच या फ्रेम में जड़ी देवी-देवताओं की कटी-फटी तस्वीरें,
अर्चना की गयी होगी। इनमें अपने प्रभू या इष्ट की कल्पना की गयी होगी। पर आज गंदगी के माहौल में जानवरों-कीड़े-मकौड़ों के रहमो-करम पर लावारिस पड़ी, धूल फांक रही हैं। क्यों ऐसा होता है या किया जाता है ? धार्मिक प्रवित्ति के होते हुए भी हम क्यों ऐसा करते हैं ? तो इसका एक ही उत्तर दिखता है कि इस बारे में आम इंसान को सही विधि मालुम नहीं है, जब कि धार्मिक पुस्तकों में इसके लिए दिशा-निर्देश उपलब्ध हैं।ऐसी मान्यता है कि भग्न, बेरंग, कटी-फटी या कुरूप प्रतिमा की घर में पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसा निर्देश है कि खंडित प्रतिमा को बहते जल में या फिर बड़े तालाब में छोड़ देना चाहिए। पर जहां जल ना हो ? वहां किसी पवित्र जगह में उन्हें जमीन में दबा देना चाहिए। अब पवित्र जगह को लेकर असमंजस हो सकता है इसलिए पीपल के वृक्ष के पास की भूमि इस कार्य के लिए उपयुक्त बताई गयी है। पर लोग कष्ट ना कर पीपल के तने के पास ही मूर्तियां रख अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं। यह सोचे बिना कि समय के साथ मूर्तियों का और उसके साथ-साथ, आस-पास के पर्यावरण का क्या होगा ! यही हाल फ्रेम में जड़ी तस्वीरों का होता है जिसमें लगा कांच और भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है। इसके लिए चाहिए कि पहले लकड़ी और कांच को अलग कर लिया जाए और कागज को जला दिया जाए। जलाना पढ़ कर कुछ अजीब और गलत सा लगता है पर वैसे ही छोड़ दिए जाने की बेकद्री से तो बेहतर ही है। वैसे हिन्दू धर्म के अनुसार अग्नि एक पवित्र तत्व है, इसलिए ऐसी पवित्र वस्तुओं को अग्नि तत्व में मिला देना चाहिए और फिर भस्म होने के बाद बची हुई राख को पीपल की जड़ के आस-पास दबा दें।
घर में टूटी-फूटी प्रतिमा नहीं रखनी चाहिए उससे अनिष्ट हो सकता है, यह तो हम सोच लेते हैं और डर कर उन्हें बाहर कर देते हैं। यहां दो बातें हैं, आध्यात्मिक र्रूप से पहली यह कि हम बड़ी श्रद्धा-भक्ति से धार्मिक
वस्तुओं में प्रभू की छवि या मौजूदगी का अहसास कर उन्हें घर में स्थापित करते हैं पर खंडित होने पर शंकाग्रस्त हो उन्हें लावारिस रूप में कहीं बाहर रख देते हैं, ऐसा करते हुए हमारी निष्ठा, भक्ति, आस्था सब गायब हो जाती हैं ! घर लाते समय जिसमें हमें भगवान् नज़र आते हैं खण्डित होते ही वह सिर्फ एक मिटटी या धातु का टुकड़ा मात्र रह जाता है ! यदि अनिष्ट का इतना ही डर है तो भी यह तो सुनिश्चित करना बनता ही है ना कि ऐसी वस्तुओं का अनादर ना हो !
दूसरी बात, धार्मिक पक्ष को छोड़ दें तो भी ऐसी चीजों को बाहर करते समय हम इसका ध्यान नहीं रखते कि जाने-अनजाने कूड़ा-कर्कट बढ़ा कर हम पर्यावरण की क्षति का कारण बन जाते हैं। जिस वृक्ष के नीचे हम ऐसी चीजों का ढेर लगाते हैं धर्मभीरुता के कारण किसी की चाह के बावजूद वहां सफाई नहीं हो पाती। फिर फूल वगैरह की वजह से वहां कीड़े-मकौड़ों-जानवरों की आवक बढ़ जाती है, अच्छी-भली जगह कूड़ा घर में तब्दील हो जाती है जो उस पादप के लिए समय के साथ बहुत ही हानिकारक और खतरनाक साबित होता है।
इसीलिए अब जब भी कोई ऐसी स्थिति सामने आए तो हमें इन कुछ जरुरी बातों का ध्यान तो रखना ही चाहिए साथ ही अपने आस-पास के माहौल को भी बिना झिझक, बिना अनदेखा किए जागरूक करने में योगदान करना चाहिए।
10 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "खुफिया रेडियो चलाने वाली गांधीवादी क्रांतिकारी - उषा मेहता “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बिल्कुल सही .....
बहुत खूब,...
ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक धन्यवाद
सुधा जी, सदा स्वागत है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-03-2017) को
"राम-रहमान के लिए तो छोड़ दो मंदिर-मस्जिद" (चर्चा अंक-2611)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, स्नेह बना रहे
बहुत उपयोगी सुझाव..आभार !
अनिता जी, "कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है
दिनांक 28/03/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
कुलदीप जी, स्नेह बना रहे
एक टिप्पणी भेजें