आज जो सक्षम हैं वे चतुर-चालाक हो गए हैं। अब वे खुद दान-दक्षिणा नहीं करते, दूसरों से करवाते हैं। जब भी किसी आपात अवस्था में किसी सहायता की जरुरत होती है तो ये नेता-अभिनेता तुरंत जनता के सामने झोली फैला कर पहुंच जाते हैं। देश के आम आदमी में लाख धोखों-चोटों के बावजूद अभी भी भावुकता, परोपकारिता, दयालुता बची हुई है इसी के चलते वह पहले से ही फटी अपनी जेब को और खाली करने में संकोच नहीं करता...
हमारे कथा-कहानी-किस्सों में दान की महिमा और दानियों की दरियादिली के अनगिनत किस्से दर्ज हैं। प्राचीन काल से ही देश-समाज और जनकल्याण के लिए राजाओं, ऋषि-मुनियों यहां तक की साधारण नागरिकों ने भी समय पड़ने पर जरूरतमंदों के लिए बिना हिचके अपना सर्वस्व दान कर दिया था। पर अब लगता है कि अतीत की यह बातें सिर्फ दिल खुश करने के लिए ही रह गयी हैं। पहले हम, हमारा देश, हमारा समाज हुआ करता था। पर अब हमें धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्रीयता और ना जाने किस-किस चीज पर बांट दिया गया है ! दिलों में कलुषता और दिमाग में वैमनस्य भर दिया गया है। हमें एक-दूसरे पर शक करना सीखा दिया गया है। ऐसे में कौन किसकी सहायता करेगा !
इस बात का तो खूब शोर मचाया जाता है कि फलानी जगह फलाने इंसान की भूख से मौत हो गयी। जो भी सत्ता के विपक्ष में होता है वह राशन-पानी लेकर कुर्सी-धारियों पर चढ़ बैठता है। पर कभी सुना गया है कि इन अरब-खरबपतियों ने, जो जमीन पर चलना अपनी हेठी समझते हैं, जिन्हें जनता के पैसे पर घर-वाहन-दफ्तर सब वातानुकूलित चाहिए, जिन्हें मंहगे खाद्य-पदार्थ भी तकरीबन मुफ्त में मिलते हैं, जिनकी संपत्ति दो-तीन साल में सैकड़ों गुना बढ़ जाती है, जो खुद तो राजा और उनके दूर-दराज के रिश्तेदार भी नवाब बन जाते हैं, कभी किसी बदहाल परिवार की एक पैसे की भी मदद की हो ? यही कारण है कि आज हम इस देने की प्रक्रिया में विश्व में दूर कहीं 133वें नंबर पर खड़े हैं। शर्म आती है यह देख कर कि हमारे छोटे-छोटे, निर्धन, पडोसी देश, नेपाल, श्री लंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान यहां तक की पाकिस्तान भी हमसे कहीं बेहतर साबित हुए हैं इस काम में ! जबकि विडंबना यह है कि, एक सर्वे के अनुसार, पिछले कई वर्षों से दुनिया के मुकाबले हमारे यहां करोड़ और अरबपतियों की सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है पर यह सब ज्यादातर छोटे दिल वाले ही साबित हुए हैं।
आज जो सक्षम हैं वे चतुर-चालाक हो गए हैं। अब वे खुद दान-दक्षिणा नहीं करते, दूसरों से करवाते हैं। जब भी किसी आपात अवस्था में किसी सहायता की जरुरत होती है तो ये नेता-अभिनेता तुरंत जनता के सामने झोली फैला कर पहुंच जाते हैं। देश के आम आदमी में लाख धोखों-चोटों के बावजूद अभी भी भावुकता, परोपकारिता, दयालुता बची हुई है इसी के चलते वह पहले से ही फटी अपनी जेब को और खाली करने में संकोच नहीं करता। इसमें उस छवि का भी हाथ है जो आज के मीडिया ने नेताओं-अभिनेताओं को महिमामंडित कर गढ़ी है। उनके "औरे" से वह इतना चौन्धियाया रहता है कि वह कभी पूछने तो क्या सोचने की भी हिम्मत नहीं कर पाता कि आपने अपनी तरफ से क्या मदद की है ? उल्टा वह तो उनमें से किसी के द्वारा अपने ही बेटे-बेटियों को अपना धन बांटने के बेशर्म खुलासे पर उसको महानता की श्रेणी में खड़ा कर उसकी वाह-वाही करने लगता है !!
आज संसार में नवधनाढ्यों की सबसे बड़ी जमात भारत में है। धर्म के नाम पर या अनिश्चित भविष्य से आशंकित हो, भय के कारण हम भले ही धर्मस्थलों पर लाखों का चढ़ावा चढ़ा दें पर किसी जरूरतमंद को, किसी सर्वहारा को कुछ देने में सदा कंजूसी बरतते है। दान-पुण्य में हम बहुत पीछे हैं। यह सही है कि किसी से जबरदस्ती "चैरिटी" नहीं करवानी चाहिए यह तो दिल से होना चाहिए जिसकी हमें आदत नहीं है। हमें खुद को बदलने की सख्त जरुरत है यह जानते हुए कि विश्व भर के गरीबों की एक तिहाई संख्या हमारे ही देश में है।
5 टिप्पणियां:
शास्त्री जी, हार्दिक धन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और केदारनाथ अग्रवाल में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सुन्दर प्रस्तुति
ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार
Onkar ji, kuchhalagsa par sadaa swagat hai
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