रानी सती जी के मंदिर से चल जब रात नौ बजे के करीब सालासर पहुंचे तो वहाँ अपार जन-समूह को ठाठें मारते देख हम सबके होश उड़ गए। कहीं भी रहने की जगह नहीं मिल पा रही थी। इस बार अगस्त की 13-14-15 की एक साथ पड़ी तीन छुट्टियों ने यह सीख तो दे ही दी कि हम सिर्फ तुम्हारे लिए ही नहीं आईं हैं, हजारों और लोग भी हमारा फ़ायदा उठाने को आतुर हैं ! किसी तरह 'अग्रवाल सेवा सदन' में दो कमरे मिले, हमने प्रभु को शुक्रिया अदा किया और अत्यधिक थके होने के बावजूद, बच्चे भी रात की अंतिम आरती में भाग लेने मंदिर की ओर अग्रसर हो गए।
मंदिर से पच्चीस-तीस की.मी. पहले प्रवेश द्वार |
वहाँ का हाल भी बेहाल था। रात दस बजे भी अपार भीड़ थी, जिसके कारण अंदर जाने का मार्ग बंद कर दिया गया था। हम निराश हो लौटने ही लगे थे कि एक सज्जन ने मार्ग फिर खुलने की जानकारी दी, शायद प्रभु को हमारे ऊपर तरस आ गया था। आरती समाप्त हो चुकी थी, पर व्यवस्थापकों ने वहां उपस्थित लोगों को जल्दी-जल्दी दर्शन कर लेने का सुयोग प्रदान कर दिया था। निकलते-निकलते सवा ग्यारह बज गए थे किसी तरह, एक-दूसरे पर लदे लोगों के बीच जो मिला, खा कर करीब बारह बजे जो बिस्तर पर गिरे तो सुबह आठ बजे ही होश आया। सब के आलस मिटाते, सुस्ताते, बतियाते, चाइयाते (चाय इत्यादि), नहाते-धोते करीब ग्यारह बज गए, सवा ग्यारह के आस-पास हम फिर मंदिर में दर्शन हेतु लाइन में लगे हुए थे।
पंच-मुखी वक्र-गामी मार्ग |
दिनों-दिन, जैसे-जैसे भीड़ बढती जाती है वैसे-वैसे उसे सँभालने के जतन भी मंदिर वाले करते जाते हैं। जब भी कभी जाना होता है, तभी कोई नया बढ़ा हुआ रास्ता देखने को मिलता है। इस बार रास्ते को और लंबा पाया। पहले 'राम सेतु' नामक "फ्लाई ओवर" से गुजर कर पंचमुखी, वक्र-गामी मार्ग पर आना हुआ। इस जगह हजार के ऊपर, लोग समाए हुए थे। हालांकि स्वंयसेवी संस्थाओं द्वारा विशाल कूलरों और पीने के पानी की व्यवस्था की गयी थी, फिर भी गर्मी और उमस के मारे बुरा हाल था। कतार धीरे-धीरे, रुकते-चलते, रेंगते दूसरे हॉल में पहुंची जहां त्रिमुखी वक्र मार्ग हमारा इंतजार कर रहा था। वहां समय बिता एक और 'पल' से होते हुए जब मुख्य द्वार के पास द्विमुखी वक्र मार्ग में फंसे तब पाया कि भारी जेबों वाले, देश के ख़ास कहे जाने वाले, पुलिस और पण्डों की पहचान वालों से पटा एक दूसरे मार्ग का मुहाना भी वहीँ खुल रहा है। खैर धक्का खाते, धकियाते, दर्शन पाते अपने-आप बाहर आते-आते घडी ने दो बजा ही दिए थे। इसीलिए तुरंत ऑटो कर 'चमेली देवी सेवा सदन पहुंचे, इस बार भीड़ के कारण वहां रहना संभव नहीं हो पाया था पर उसका आजमाया हुआ खाना, जाना-पहचाना था। जल्दी इसलिए थी क्योंकि वहां "लंच' दो बजे तक ही उपलब्ध होता है, पर कुछ देर होने के बावजूद भोजन उपलब्ध हो गया।
हर बार सालासर धाम से करीब चालीस की.मी. दूर डूंगरगढ़ बालाजी के दर्शन हेतु जरूर जाना होता है। पर पिछली बार उधर जाने के बाद समयाभाव के कारण लौटते समय खाटू श्याम जी के दर्शन नहीं हो पाए थे, सो इस बार समय हाथ में रख, चार बजे माँ अंजनी के दर्शनों के बाद हम सब खाटू के लिए रवाना हो गए। सालासर से करीब 85 की.मी. की दूरी पर सीकर जिले में स्थित यह भीम पुत्र बर्बरीक का मंदिर है। जिसकी मान्यता मारवाड़ी समाज सहित पूरे देश में मानी जाती है। शाम को छह बजे जब वहां पहुंचे तो पाया कि वहां भी पैर रखने की जगह नहीं है। भीड़ के कारण गाडी खड़े होने की जगह से मंदिर तक का पांच सौ गज का फासला पैदल तय करने में चालीस मिनट लग गए। मालुम पड़ा कि एकादशी और रविवार का संयोग एक साथ पड़ने के कारण जन-समुद्र उमड़ा पड़ा है। सारी जगहें छान मारीं, कहीं भी आश्रय स्थल उपलब्ध नहीं हुआ। हो भी जाता तो दर्शन दुर्लभ थे, मीलों लंबी कतार में करीब पच्चीस से तीस हजार लोग खड़े थे। हालात तब और पस्त हो गयी जब सुनने में आया कि यह हालात सुबह चार बजे से ही हैं, लोगों के ठठ्ठ के ठठ्ठ आते जा रहे हैं, भीड़ बढती ही जा रही है। आपस में विचार-विमर्श कर बच्चों और साथ के लोगों की सेहत को ध्यान में रख उसी समय दिल्ली वापसी का फैसला पास करवा लिया गया। शाम के साढ़े सात बजे टेम्पो-ट्रेव्हलर ने रवानगी ले, दो बजे के आस-पास वापस हमें घर तक पहुंचा दिया।
इस यात्रा ने ज्ञान चक्षुओं को खोलते हुए कुछ बातें गाँठ बाँध लेने को कहीं। पहली कि छुट्टियां सिर्फ हमारी ही नहीं होतीं ! दूसरे आप कहीं भी जा रहे हों, भले ही आप वहां से पूरी तरह से परिचित हों फिर भी ताजा जायजा जरूर ले लें !! तीसरे हर देवता का दिन-त्यौहार देख परख कर ही वहां जाने का कार्यक्रम बनाएं, और यदि उसी बीच जाना ही हो तो आने वाली परेशानियों का सामना करने के लिए तैयार हो कर जाएं। सबसे अहम परामर्श, आपकी चाहे हजार इच्छा हो, बिना प्रभु की मर्जी के किसी भी देवस्थान तक नहीं जाया जा सकता है और जब उनकी अनुमति होती है तो कोई भी बाधा वहाँ जा दर्शनों से नहीं रोक पाती। इस बात को मूल मंत्र बना लें।
8 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-8-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2438 में दिया जाएगा
धन्यवाद
दिलबाग जी,
स्नेह बना रहे
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति अमर क्रान्तिकारी मदनलाल ढींगरा जी की १०७ वीं पुण्यतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-08-2016) को "शब्द उद्दण्ड हो गए" (चर्चा अंक-2439) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Harshvardhan ji,
Dhanywad
Shastri ji,
sneh banaa rahe
बिल्कुल सही...
रश्मि जी,ब्लॉग पर सदा स्वागत है
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