अपनी हजार इच्छा हो, बिना प्रभु की मर्जी के किसी भी देवस्थान तक नहीं जाया जा सकता है और जब उनकी अनुमति होती है तो कोई भी बाधा वहाँ जा दर्शनों से नहीं रोक पाती। पर विडंबना है कि सैंकड़ों की.मी. की यात्रा की यादों को सँजोने के लिए आप उन पलों को, कैमरे को साथ रखने की मनाही के कारण, कैद नहीं कर सकते ! समय ही ऐसा चल रहा है.....
इसे प्रभुएच्छा ही कहा जाएगा कि पिछले दो महीनों की भागम-भाग, व्यस्तता और थकान के बावजूद नासिक में संपन्न होने वाले एक विवाह में शामिल होने में कोई बाधा या अड़चन आड़े नहीं आई। कहते हैं ना कि अपनी हजार इच्छा हो, बिना प्रभु की मर्जी के किसी भी देवस्थान तक नहीं जाया जा सकता है और जब उनकी अनुमति होती है तो कोई भी बाधा वहाँ जा दर्शनों से नहीं रोक पाती। ऐसा मेरे साथ कई बार हो चुका है। जिसका ताजा अनुभव शिवजी की कृपा से त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के सौभाग्य का है, जो अभी पिछले दिनों ही प्राप्त हुआ।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर, महाराष्ट्र के नासिक जिले में ब्रह्मगिरि नामक पर्वत की तलहटी में, गोदावरी नदी के उद्गम के पास स्थित है। जनश्रुति है कि गौतम ऋषि तथा गोदावरी रूपी माँ गंगा की प्रार्थना के कारण भगवान शिव ने इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। यह मंदिर के अंदर एक छोटे से गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।
इसे प्रभुएच्छा ही कहा जाएगा कि पिछले दो महीनों की भागम-भाग, व्यस्तता और थकान के बावजूद नासिक में संपन्न होने वाले एक विवाह में शामिल होने में कोई बाधा या अड़चन आड़े नहीं आई। कहते हैं ना कि अपनी हजार इच्छा हो, बिना प्रभु की मर्जी के किसी भी देवस्थान तक नहीं जाया जा सकता है और जब उनकी अनुमति होती है तो कोई भी बाधा वहाँ जा दर्शनों से नहीं रोक पाती। ऐसा मेरे साथ कई बार हो चुका है। जिसका ताजा अनुभव शिवजी की कृपा से त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के सौभाग्य का है, जो अभी पिछले दिनों ही प्राप्त हुआ।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर, महाराष्ट्र के नासिक जिले में ब्रह्मगिरि नामक पर्वत की तलहटी में, गोदावरी नदी के उद्गम के पास स्थित है। जनश्रुति है कि गौतम ऋषि तथा गोदावरी रूपी माँ गंगा की प्रार्थना के कारण भगवान शिव ने इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। यह मंदिर के अंदर एक छोटे से गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।
ज्योर्तिलिंग के उद्भव की कथा के अनुसार प्राचीनकाल में इस त्र्यंबक स्थान पर गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। एक बार किसी बात पर नाराज हो तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों ने गणेश जी की आराधना कर गौतम ऋषि को आश्रम से निकलवाने की प्रार्थना की। गणेश जी ने उन समझाने की चेष्टा की पर अपने भक्तों के हठ पर विवश हो उनकी बात माननी पड़ी। उनका मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि के खेत में जाकर चरने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि ने नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने की कोशिश की, पर तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं गिर कर मर गयी । इस पर सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे और कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। तब ऋषि गौतम के उनसे प्रार्थना कर प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय पूछने पर उन्होंने कहा, तुम यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।
ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा, प्रभू , आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्ति दिलवाएं ! भगवान् शिव ने कहा, गौतम ! तुम तो सर्वथा निष्पाप हो। तुम पर गो-हत्या का दोष लगाने वालों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ। इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु, उन्हीं के कारण तो मुझे आपके दर्शन प्राप्त हुए हैं, उन पर आप क्रोध न कर क्षमा कर दें और आप यहीं निवास करें। प्रभु ने उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए कृपा से गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी के नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।
इसी से सम्बन्धित एक और कथा भी प्रचलित है। कहते हैं कि ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा लबालब पानी रहता है। इस कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
गोदावरी नदी के किनारे स्थित यह कलात्मक त्र्यंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है। इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। यही वह ख़ास पूजा-स्थली है जहां यहाँ कालसर्प योग, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि नामक खास पूजा-अर्चना की जाती है, जिसके कारण यहाँ साल भर भक्तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए आते रहते हैं। शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है।
मंदिर के अंदर गर्भगृह में शिवलिंग की केवल अर्घा दिखाई देती है, जिसके अंदर तीन छोटे-छोटे लिंग स्थापित हैं, जिन्हें त्रिदेव, ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। जिनके दर्शन भाग्यशाली लोगों को ही मिल पाते हैं, क्योंकि हर बड़े और प्रसिद्ध पूजा स्थलों की तरह यहां भी भक्तों को कुछ पलों का ही समय मिलता है दर्शनों का, उसी में जो दिख गया सो दिख गया, फिर तो नसीब में धकियाना ही लिखा होता है।कोई करे भी तो क्या ! भीड़ ही इतनी होती है कि यदि सभी को इच्छानुसार समय लगे तो हफ़्तों लग जाएं लोगों को इंतजार करते ! भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है। धार्मिक ग्रन्थों और शिवपुराण में भी त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन है। नजदीक के ब्रह्मगिरि पर्वत पर जाने के लिए यहां सात सौ सीढियां हैं, जिनसे ऊपर जाने के मध्य मार्ग में रामकुण्ड और लक्ष्मणकुण्ड स्थित हैं। पर्वत की चोटी पर पहुंचने पर गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के विहंगम दर्शन होते हैं।
पर विडंबना है कि सैंकड़ों की.मी. की यात्रा की यादों को सँजोने के लिए आप उन पलों को, कैमरे को साथ रखने की मनाही के कारण, कैद नहीं कर सकते। समय ही ऐसा चल रहा है।
पर विडंबना है कि सैंकड़ों की.मी. की यात्रा की यादों को सँजोने के लिए आप उन पलों को, कैमरे को साथ रखने की मनाही के कारण, कैद नहीं कर सकते। समय ही ऐसा चल रहा है।
4 टिप्पणियां:
behad sundar mandir hai ..ab to tambu taan reling laga kar bhakto ko ghumate hi rahte hai ..kareeb 30 saal pahle ham 100 yatri bina kisi line ke itminan se darshan kar aaye the ..abhi 4 saal pahle gaye to man hi kharab ho gaya ..vyavastha ke naam par thagne jaisa feel hua ...jankari badiya hai
कविता जी, प्राचीन की तो बात ही छोडे, हर वह धर्म-स्थल जिसकी जरा सी भी मान्यता हो जाती है वही दुकान बन जाता है। बिना जरुरत के भी लोगों को परेशान करने से नहीं चूका जाता !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-08-2016) को ""लोकतन्त्र की बात" (चर्चा अंक-2433) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी,
स्नेह बना रहे
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