रविवार, 28 जून 2015

अपनी भावनाओं को बड़े बच्चों के साथ भी साझा करें

हमारे ग्रंथ भी इस रिश्ते की नाजुकता को परिभाषित करते है, उनके अनुसार यह रिश्ता प्रत्यंचा की तरह होता है, ढीली रह गयी तो लक्ष्य-भेद नहीं हो पाएगा और ज्यादा कस गयी तो टूटने का भय। कुछ देर चुप रहने के बाद मैंने पूछा, ठाकुर जी एक बात बताएं, क्या आपने कभी खुल कर बिट्टू से अपने प्यार का इजहार किया है ? नहीं ना !    

रविवार, सूकून का दिन। इसलिए प्रात: भ्रमण के पश्चात ठाकुर जी को साथ ही ले आया चाय के लिए। तभी छोटे बेटे को अपनी माँ से बात करते देख ऐसे ही मैंने पूछ लिया क्या बात है, पर जवाब आया कि कुछ नहीं ऐसे ही ! यह देख ठाकुर जी बोले, सभी घरों में ऐसा ही हाल है। बाप की जगह माँ को ही विश्वास में लिया
जाता है। कोई भी बात हो माँ से ही शेयर की जाती है और तो और इन्हें सारे दिन भले ही भूल जाएं पर मदर्स डे जरूर याद रहता है। मैंने पूछा, क्यों कोई ख़ास बात हुई है क्या? ठाकुर जी बोले, नहीं ख़ास तो नहीं पर पिछले दिनों फादर्स डे भी तो आया था पर मेरे बिट्टू ने मुझे विश तक नहीं किया। शर्मा जी, इसे अन्यथा ना लें,  ऐसी बातों को मैं बाज़ार के चोंचले ही मानता हूँ पर पता नहीं क्यों दिल में एक उत्सुकता, एक चाहत रहती है कि बेटा, बाप से अपने प्यार का इजहार तो करे !         

बात हल्की-फुल्की थी पर उसमें कहीं गंभीरता भी थी। आज भले ही नई पीढ़ी में बाप-बेटे एक दूसरे के नजदीक आ गए हों, उनका व्यवहार कुछ दोस्ताना हो गया हो पर अभी भी अधिकांश परिवारों में बेटे अपने पिता से बात करने में झिझकते हैं। माँ से ही अपनी समस्यायों को शेयर करने में उन्हें सहूलियत होती है। मैं
अपनी तरफ देखता हूँ तो पचास पार करने के बावजूद बाबूजी से कोई बात करने में दस बार सोचना पड़ता था, एक झिझक सदा तारी रहती थी। इसीलिए माँ को सदा ढाल बनाया जाता था। पर ऐसा नहीं था कि उनको हमारा ध्यान ना रहता हो, वे भी माँ के मार्फ़त ही हमारी जानकारी हासिल किया करते थे। हमसे लगाव तो बहुत था पर जाहिर नहीं करते थे। आज के दिन बदलाव आया है, रिश्तों की बर्फ पहले की तरह एकदम ठोस नहीं रह गयी है। बच्चे अपने मन की बात सामने रखने लग गए हैं। यही बात मैंने ठाकुर जी से भी कही कि भले ही आपस में वार्तालाप न होता हो पर एक-दूसरे की चिंता किसे किस दिन नहीं रहती ? इस लिहाज से तो हर दिन फादर्स डे है। 

हमारे ग्रंथ भी इस रिश्ते की नाजुकता को परिभाषित करते है, उनके अनुसार यह रिश्ता प्रत्यंचा की तरह होता है, ढीली रह गयी तो लक्ष्य-भेद नहीं हो पाएगा और ज्यादा कस गयी तो टूटने का भय।  कुछ देर चुप रहने के बाद मैंने पूछा, ठाकुर जी एक बात बताएं, क्या आपने कभी खुल कर बिट्टू से अपने प्यार का इजहार किया है ? नहीं ना ! तो उससे बात करने की आप ही पहल कर देखिए, उसके प्रति अपने प्यार को खुल कर सामने आने दीजिए, उसकी समस्यायों का पता कर हल सुझाईये, खेलों, फिल्मों जैसे हलके-फुल्के विषयों पर बातें करिए, अपनी किसी बात को उससे शेयर करें उसके बारे में राय पूछें। अपने बुर्जुआ खोल से बाहर आ एक मर्यादित दोस्ताना माहौल का निर्माण करें।  मुझे विश्वास है कि अगले फादर्स डे का उसे बेसब्री से इंतजार रहेगा।      
            

3 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, मटर और पनीर - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Asha Joglekar ने कहा…

आप के इस लेख को पढ कर अपने पिता की याद आ गई। अब तो यह मलाल ही रहेगा कि उनको ले कर जो हम सोचते थे कभी व्यक्त क्यूंं नही कर पाये।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आशा जी, यह मलाल मेरे आप जैसे हजारों लोगों के मन में रह ही जाता है। चाहते हुए भी भावनाएं शब्दों का रूप नहीं ले पातीं। शायद लगता है ऐसा करने से उनकी गरिमा हो जाएगी या ऐसा ही कुछ !

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