बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

बलिहारी BSNL की

ना कोई मेरा सगा मंत्रिमंडल में है और नहीं कोई संबंधी सरकारी अमले में।  तो क्यों एक आम आदमी के लिए ये लोग ख़ास प्रबंध करें ?   जहां  मेरे  फोन  के  तार जोड़े गए हैं वहाँ कोई जोर से छींक भी देता है तो मेरा फोन बेचारा किसी अनिष्ट की आशंका से अपने खोल में सिमट जाता है !             


जर्जर अवस्था वाले एक बांस में खुली तारों के सहारे मेरा फोन 
जबसे हुदहुद के आने की खबर सुनी थी तब से दिल धुक-धुक कर रहा था। तरह-तरह की आशंकाएं तूफानी हवाओं की तरह दिलो-दिमाग को मथ रही थीं। हालांकि उसके प्रभाव क्षेत्र में हम नहीं आ रहे थे पर उसका जो थोड़ा-बहुत असर होना था वही चिंता का विषय बना हुआ था। परेशानी अपने फोन के कनेक्शन को ले कर थी। क्योंकि इस बार तो हमारी सरकारी कंपनी ने ही खुद कह दिया था कि इस आने वाले तूफान से  BSNL की सेवाएं बाधित हो सकती हैं। यही मेरी चिंता का विषय था कि जब ये फोन वाले कुछ नहीं कहते तब तो मेरे "कोमा" में गए फोन को होश आने में 15 से 20 दिन लग जाते हैं, इस बार तो ये खुद ही पहले से हाथ खड़े कर रहे हैं।  पर तूफान आया और तटीय इलाकों में मजबूर लोगों पर अपना रोष तथा रौब जमा चला गया।  इधर फसलों को छोड़ कर उतनी तबाही नहीं हुई। आश्चर्य की बात यह भी रही कि मेरी फोन लाइन ने मेरा साथ नहीं छोड़ा।        

आप भी कहेंगे कि इसमें क्या बात है बहुतों के पास इसका कनेक्शन है और सब ठीक-ठाक रहा। कोई परेशानी नहीं हुई।  पर जब मेरे घर पहुंचती इनकी सेवा का जायजा लेंगे तो शायद आपकी धारणा बदल जाए। क्या है कि इस सरकारी उद्यम के "बेहतर काम" से अपनी बेहतरी चाहने वालों ने दूसरी प्रायवेट कंपनियों की शरण ले ली है।  पर अपने राम, पता नहीं क्यों, अभी भी इनसे किस उम्मीद की
ऐसे कनेक्शन देती है BSNL 
आशा लगा जुड़े हुए हैं। इस इलाके में मेरा अकेले का फोन सरकारी है, अब सीधी बात है कि ना कोई मेरा सगा मंत्रिमंडल में है और नहीं कोई संबंधी सरकारी अमले में।  तो क्यों एक आम आदमी के लिए ये लोग ख़ास प्रबंध करें ?  इसी लिए जहां मेरे तार जोड़े गए हैं वहाँ कोई जोर से छींक भी देता है तो मेरा फोन बेचारा किसी अनिष्ट की आशंका से अपने खोल में सिमट जाता है।  अब जब फोन बंद हो जाता है तो इन भले लोगों की शर्त है कि खराबी की शिकायत भी BSNL के फोन से ही होनी चाहिए। अब इस कंपनी का फोन तो चिराग लेकर ढूंढने से ही मिलता है।  पता नहीं सरकारी काम, नियम, कानून ऐसे क्यों होते है ?  बैंक से लोन लेने वाले से प्रॉपर्टी दिखाने की मांग की जाती है। अरे भले लोगो उसके पास जायदाद होती तो तुम्हारे मुंह क्यों लगता ?  उनका कहना है कि इससे हैसियत देखी जाती है कि उनका पैसा कैसे वापस आएगा।  यह दूसरी बात है कि "हैसियत वालों"  से पैसा वापस लेने की इनकी हैसियत नही होती !!!

एक बात आज तक समझ नहीं आई की BSNL इतना बड़ा उद्यम है, सर पर सरकार का हाथ है तो फिर क्यों ये लोग विदेशी उपकरणों का प्रयोग करते हैं, वह भी किसी भरोसेमंद देश के नहीं बल्कि चीन के।  जो अपने उत्पादों के कारण ऐसे ही बदनाम है। मेरे इंटरनेट के लिए जो  'मॉडम' उपलब्ध करवाया गया है वह भी चीन का बना हुआ है और अपने देश की ख्याति के अनुसार साल-डेढ़ साल में चीनी भाषा में  "टैं" बोल जाता है। फिर खड़काते रहो सरकारी दफ्तर के दरवाजे। आज के समय में उच्च तकनीकी उपकरणों की सहायता से जहां इनके प्रतिद्वंदी एक दो दिन में उपकरणों में जान डाल देते हैं वहीं सरकारी सहायता आने में हफ़्तों लग जाते हैं। यही हाल इनके मोबाइल कनेक्शन का है।  जो सबके सामने खुले में ही बात करवाता है,  घर के अंदर से बात करवाने में शर्माता है। जिन्होंने इसे छोड़ा है वे पूछने पर बतलाते है कि भाई उससे तो टावर के नीचे खड़े हो तो भी बात नहीं होती थी। अब ऐसा क्यों है कि प्रायवेट कंपनियां दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही हैं, लोग उनसे जुड़ते जाते हैं और
इसके नाम से नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं ?  वैसे चतुर-सुजान "जो सच" उजागर करते हैं उस पर अविश्वास भी नहीं होता।   


आजकल चारों ओर हल्ला है कि अच्छे दिन आने वाले हैं, सो इसी आशा में इसे गले में लटकाए बैठे हैं, कि और चीजों के साथ शायद हमारा बीएसएनलवा भी सुधर जाए ……… आमीन        

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (16-10-2014) को "जब दीप झिलमिलाते हैं" (चर्चा मंच 1768) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बढ़िया पोस्ट ..यही हाल सब जगह हैं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, हार्दिकआभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुमन जी, ब्लॉग पर सदा स्वागत है

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