ऐसा होता भी है, इसकी परख निश्छल मन वाले बच्चों के चहरे पर फैली मुस्कान और हंसी को देख कर अपने-आप हो जाती है। एक बार अपने तनाव, अपनी चिंताओं, अपनी व्यवस्तताओं को दर-किनार कर यदि कोई अपने बचपन को याद कर, उसमें खो कर देखे तो उसे भी इस दैवीय एहसास का अनुभव जरूर होगा। यही है इस पर्व की विशेषता, इसके आतिशी मायाजाल का करिश्मा, जो सबको अपनी गिरफ्त में ले कर उन्हें चिंतामुक्त कर देने की, चाहे कुछ देर के लिए ही सही, क्षमता रखता है।
एक बार फिर आप सब मित्रों, परिजनों और "अनदेखे अपनों" को ह्रदय की गहराइयों से शुभकामनाएं। हम सब के लिए आने वाला समय भी शुभ और मंगलमय हो।
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (25-10-2014) को "तुम ठीक तो हो ना....भइया दूज की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1772) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
प्रकाशोत्सव के महान त्यौहार दीपावली से जुड़े
पंच पर्वों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार, शास्त्री जी
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