पश्चिम -बंगाल देश का अकेला राज्य है जहां की पुलिस के लिए दो तरह के रंग की "ड्रेस" निर्धारित की गयी है। महानगरीय पुलिस के लिए सफेद तथा बाक़ी के लिए खाकी।
पश्चिम-बंगाल और कोलकाता प्रवास के दौरान बाहर से आए पर्यटकों ने वहां की पुलिस में कुछ को खाकी और कुछ को सफेद रंग की वर्दी में देखा होगा। देश के बाक़ी हिस्सों में रहने वालों के मन में भी फिल्मों में कोलकाता की पुलिस दिखाई जाते समय उसके खाकी के बदले सफेद कपड़ों के बारे में शायद ही जिज्ञासा उत्पन्न हुई हो। पर जब देश के सारे हिस्सों में खाकी-वर्दी का बोल-बाला है तो कोलकाता की पुलिस सफेद-पोश क्यों ? ज्यादातर लोग इस बात पर गौर नहीं करते। पर इसका भी कारण है।
जब कभी घूमने-फिरने की बात आती है तो कोलकाता का नाम बाकी जगहों के काफी बाद आता है। जबकी अंग्रेजों के राज में हर बात में अग्रणी बंगाल का यह भव्य नगर 1911 तक देश की राजधानी रहा था। यह कहावत काफी दिनों तक लोगों की जुबान पर रही थी कि वर्तमान में जो बंगाल सोचता है वही भविष्य में देश की सोच होती है। गुलामी का समय था, पर बंगाली नौजवानों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। उन्हें देश छोड़ने को बाध्य करने के लिए हिंसक और अहिंसक दोनों मार्ग अख्तियार किए जाते रहे थे। फिर भी अराजकता की स्थिति होने के बावजूद अंग्रेजों ने राजधानी "कलकत्ता" की शानो-शौकत को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आज भी उस जमाने के बनी महलनुमा इमारतें दर्शनीय हैं। इसीलिए कोलकाता को "महलों का शहर" भी कहा जाता है।
इसके व्यवस्थित और संस्थागत रख-रखाव के लिए उन्नीसवीं सदी के मध्य में 1856 में पुलिस विभाग में भी कई आमूल-चूल परिवर्तन किए गए। लंदन पुलिस की तरह गुप्तचरों को भर्ती किया गया। पुलिस को शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ख़ास अधिकार भी दिए गए। उसी समय प्रदेश की पुलिस से कलकत्ता पुलिस को अलग कर उसे एक अलग संगठन का रूप दे दिया गया तथा उस समय के मुख्य न्यायाधीश को इसका पहला कमिश्नर बनाया गया। इस तरह तब से कोलकाता में दो पुलिस फोर्स काम कर रहीं हैं, पहली वेस्ट-बेंगाल पुलिस तथा दूसरी कोलकाता पुलिस। कोलकाता पुलिस के अंतर्गत महानगरीय इलाका आता है जबकि वेस्ट-बेंगाल पुलिस बाकी इलाकों की देख-भाल करती है।
उसी समय कलकत्ता पुलिस को प्रदेश की पुलिस से अलग पहचान देने के लिए, खाकी के बदले सफेद वर्दी याने यूनिफार्म प्रदान की गयी। बंगाल देश का अकेला राज्य है जहां की पुलिस के लिए दो तरह की "ड्रेस" निर्धारित की गयी है। यहां की यातायात पुलिस को एक और सुविधा मिली हुई थी जो देश की किसी अन्य पुलिस को उपलब्ध नहीं थी, और वह है कमर की बेल्ट में छाते को लगाने की सुविधा। जिससे यातायात नियंत्रण के लिए हाथ भी खाली रहते थे और सूर्य की तीखी रौशनी से भी बचाव हो जाता था। पता नहीं देश के अन्य प्रदेशों की पुलिस के आला अफसर अपने जवानों को यह सुविधा क्यों नहीं प्रदान करते ?
1 टिप्पणी:
मनोज जी, हार्दिकआभार
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