व्यापारी का लड़का सोच मे पड़ गया कि क्या बापू ने झूठ कहा था कि बंदर नकल करते हैं। उधर बंदर सोच रहा था कि आज बापू की सीख काम आई कि मनुष्यों की नकल कर कभी बेवकूफ़ मत बनना।
बहुत समय पहले की बात है एक व्यापारी तरह-तरह का सामान दूर-दराज के क्षेत्रों में ले जा कर बेचा करता था और इसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण किया करता था। उस समय गाडी-घोडे का उतना चलन नहीं था, वैसे भी वह पैदल ही अपना काम करते चलता था।
एक बार वह तरह-तरह की रंगबिरंगी टोपियां ले दूसरे शहर बेचने निकला। चलते-चलते दोपहर होने पर वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए रुक गया। भूख भी लग आई थी, सो उसने अपनी पोटली से खाना निकाल कर खाया और थकान दूर करने के लिए वहीं लेट गया। थका होने की वजह से उसकी आंख लग गयी। कुछ देर बाद नींद खुलने पर वह यह देख भौंचक्का रह गया कि उसकी सारी टोपियां अपने सिरों पर उल्टी-सीधी लगा कर बंदरों का एक झुंड़ पेड़ों पर टंगा हुआ है। व्यापारी ने सुन रखा था कि बंदर नकल करने मे माहिर होते हैं। भाग्यवश उसकी अपनी टोपी उसके सर पर सलामत थी। उसने अपनी टोपी सर से उतार कर जमीन पर पटक दी। देखा-देखी सारे बंदरों ने भी वही किया। व्यापारी ने सारी टोपियां समेटीं और अपनी राह चल पड़ा।
समय गुजरता गया। व्यापारी बूढ़ा हो गया उसका सारा काम उसके बेटे ने संभाल लिया। वह भी अपने बाप की तरह दूसरे शहरों मे व्यापार के लिए जाने लगा। दैवयोग से एक बार वह भी उसी राह से गुजरा जिस पर वर्षों पहले उसके पिता का सामना बंदरों से हुआ था। भाग्यवश व्यापारी का बेटा भी उसी पेड़ के नीचे सुस्ताने बैठा। उसने कलेवा कर थोड़ा आराम करने के लिए आंखें बंद कर लीं। कुछ देर बाद हल्के से कोलाहल से उसकी तंद्रा टूटी तो उसने पाया कि उसकी गठरी खुली पड़ी है और टोपियां बंदरों के सर की शोभा बढ़ा रही हैं। पर वह जरा भी विचलित नहीं हुआ और पिता की सीख के अनुसार उसने अपने सर की एक मात्र टोपी को जमीन पर पटक दिया।
पर यह क्या!!! एक मोटा सा बंदर झपट कर आया और उस टोपी को भी उठा कर पेड़ पर चढ़ गया।
पर यह क्या!!! एक मोटा सा बंदर झपट कर आया और उस टोपी को भी उठा कर पेड़ पर चढ़ गया।
व्यापारी का लड़का सोच मे पड़ गया कि क्या बापू ने झूठ कहा था कि बंदर नकल करते हैं। उधर बंदर सोच रहा था कि आज बापू की सीख काम आई कि मनुष्यों की नकल कर कभी बेवकूफ़ मत बनना।
7 टिप्पणियां:
बंदर सयाने हो चुके हैं।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी ,आपका स्वागत है |
व्यापारी का जब नाती होगा उसके जींस यह अनुभव लिए रहेंगे.
प्रवीण जी बंदर तक सयाने हो चुके हैं। हमें कब तक लोग "टोपियां पहनाते" रहेंगे। अब तो बेचारे विकलांग तक भी नहीं बच पा रहे।
राजेश कुमारी जी आभार।
सुब्रमनियन जी, तब तक टोपीबाज और सयाने हो जाएंगे।
चलिए अच्छा है बंदरों ने बदला लेना सीख लिया है । आखिर पूर्वजों ने कहीं न कहीं तो पटखनी देनी ही थी।
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