बुधवार, 23 मई 2012

क्रिकेट का तमाशा या तमाशे का क्रिकेट


एक पुराना गाना है, शोखियों में घोला जाए थोडा सा शबाब , फिर उसमे मिलाई जाए थोडी सी शराब होगा यूं नशा जो तैयार वो प्यार है।  वैसे ही  इस  खेल के रोमांच को बढाने के लिए इसके  नियमों में बदलाव किए गये, पैसों की बरसात कर दी गयी,  ग्लैमर की चाशनी और वैभव की चकाचौंध  मिला एक नशीला वातावरण बना लोगों को आकर्षित किया गया. पर जल्द ही इसका एक और रूप सामने आ गया।    


आखिर एक लम्बे तमाशे का अंत आ ही गया। अगले हफ्ते सबसे विवादास्पद IPL के संस्करण का समापन हो जाएगा। पर यह समापन पिछले चार समापनों से थोडा अलग होगा। जहां पिछले समापन अगले संस्करण का दावा करके जाते थे, इस बार का समापन अपने भविष्य के प्रति सशंकित है। जिसका जिम्मेदार भी यह खुद ही है।

“एक पुराना गाना है, शोखियों में घोला जाए थोडा सा शबाब , फिर उसमे मिलाई जाए थोडी सी शराब होगा यूं नशा जो तैयार वो प्यार है।”
अब वो जैसा प्यार था, था। पर पिछले पांच सालों से भारत के क्रिकेट प्रेमियों के इस खेल के प्रति प्यार का फायदा उठा, IPL के नाम से जो उल्लू सीधा किया जा रहा था उसका शायद चर्मोत्कर्ष आ गया है। वैसे तो इस "फार्मेट" के साथ विवादों का साथ चोली-दामन की तरह इसके जन्म के साथ से ही लगा रहा था। पर अब तो अति हो चुकी है। खेल का कट्टर से कट्टर हिमायती भी अब इस पर उंगली उठाने लगा है क्योंकि अब वह अपने आप को कहीं ना कहीं ठगा जा रहा महसूस करने लगा है।

Indian Premium League, जो अब Indian Prattle League यानि इंडियन बकवास लीग, का रूप ले चुकी है, की शुरुआत इस खेल को और भी लोकप्रिय बनाने के लिए की गयी थी। उसी पुराने गाने की तरह खेल के रोमांच को बढाने के लिए उसके नियमों में कुछ बदलाव किए गये, पैसों की चकाचौंध में ग्लैमर की चाशनी मिला इसे दर्शकों के सामने परोसा गया तो उन्हें भी बहुत आनंद आया। देखते-देखते इसकी लोकप्रियता आसमान छूने लगी। पर इसके साथ ही साथ इसका दूसरा रूप भी सामने आ गया। जिसने खिलाडियों की आपसी रंजिश, पैसों की अनाप-शनाप बरसात से उनके बिगडते दिलो-दिमागी संतुलन, अचानक मिली प्रसिद्धी को संभाल ना पा कर की गयी मर्यादाहीन कारस्तानियां, पैसों के लालच से गैर कानूनी हरकतों को सबके सामने ला खडा किया।

भद्र-जनों के खेल के नाम से  जाने जाने वाले इस खेल की मर्यादा, नैतिकता सब कुछ व्यापारियों और बाज़ार की दखल से गुजरे जमाने की बातें हो कर रह गयीं। पैसे ने हर चीज का माप-दंड बदल कर रख दिया। डेढ-दो महीनों  में ही करोडों के वारे-न्यारे करने वाले खिलाडी अपने आप को किसी और ही ग्रह का वासी मानने लग गये। इसी कारण वे किसी बेजा हरकत को करने से नहीं डरते। यहां तक की बाहर से आने वाले खिलाडियों, जिनसे शालीन व्यवहार की आशा की जाती है, वे भी अभद्रता की सीमा लांघते नहीं हिचकिचाते।

खेल मनोरंजन के साथ साथ स्वस्थ प्रतिस्प्रद्धा का भी स्वाद देते हैं। पर यह जो हो रहा है वह क्या है?  सिर्फ मनोरंजन, वह भी स्तर हीन। पैसे और ग्लैमर का भौंडा प्रदर्शन मात्र। एक बात जो सबसे ज्यादा अखरने वाली या संदेह पैदा करने वाली है वह है, बी.सी.सी.आई. के सदस्य का ही किसी टीम का मालिक होना। जब की आयोजन भी यही संस्था करवा रही है।

यदि सही, कठोर और सकारात्मक कदम जल्दी ना उठाए गये तो IPL की साख पर तो बट्टा लगना ही है क्रिकेट की लोक-प्रियता पर भी आंच आनी निश्चित है। 

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

चिन्ता सबको है, परन्तु कोई ठोस कदम उठाया जाएगा, इसकी उम्मीद नहीं दिख

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट 24/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा - 889:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

#vpsinghrajput ने कहा…

ब्लाग पर आना सार्थक हुआ । काबिलेतारीफ़ है प्रस्तुति । बहुत सुन्दर बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्‍तुति
हम आपका स्वागत करते है..vpsrajput.in..
क्रांतिवीर क्यों पथ में सोया?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मजा को मजाक बनते समय नहीं लगता है।

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