गर्मियों का मौसम आते ही अधिकाँश लोग पहाड़ों का रुख करते हैं। स्वाभाविक भी है कहाँ मैदानों की चिलचिलाती गरमी और कहाँ बर्फ से ढके पर्वतों की शीतल वादियाँ। लोग जाते हैं और सैर-गाहों का लुत्फ ले लौट आते हैं। कुछ ही लोग होंगे जो वहाँ के रहन-सहन, रीति-रिवाजों, वहाँ के रहवासियों की कठिन जिन्दगी को जानने की रूचि रखते होंगे। पहाड़ों का एक-एक गाँव तथा उसके वाशिंदे अपने आप में ऐसा इतिहास समेटे बैठे हैं, जिसकी कल्पना भी देश का आम इंसान नहीं कर सकता।
ऐसा ही एक गाँव है मलाणा. हिमाचल के सुरम्य पर दुर्गम पहाड़ों की उचाईयों पर बसा वह गांव जिसके
ऊपर और कोई आबादी नहीं है। यहाँ जाना कोइ आसान काम नहीं है। कुल्लू-मनीकर्ण के रास्ते पर एक छोटा सा गाँव है, जरी, जहां तक वाहन के द्वारा जाया जा सकता है। यहाँ से 9 कीमी की दुर्गम चढ़ाई और करीब 12000 फिट की ऊंचाई पर 500-550 परिवारों से बसा है मलाणा.
आत्म केन्द्रित से यहां के लोगों के अपने रीति रिवाज हैं, जिनका पूरी निष्ठा तथा कड़ाई से पालन किया जाता है, और इसका श्रेय जाता है इनके ग्राम देवता जमलू को जिसके प्रति इनकी श्रद्धा, खौफ़ की हद छूती सी लगती है। अपने देवता के सिवा ये लोग और किसी देवी-देवता को नहीं मानते। यहां का सबसे बडा त्योहार फागली है जो सावन के महिने मे चार दिनों के लिये मनाया जाता है। इन्ही दिनों इनके देवता की सवारी भी निकलती है, तथा साथ मे साल मे एक बार बादशाह अकबर की स्वर्ण प्रतिमा की पूजा भी की जाती है। कहते हैं एक बार अकबर ने अपनी सत्ता मनवाने के लिये जमलू देवता की परीक्षा लेनी चाही थी तो उसने अनहोनी करते हुए दिल्ली मे बर्फ़ गिरवा दी थी तो बादशाह ने कर माफी के साथ-साथ अपनी सोने की मूर्ती भिजवाई थी। इस मे चाहे कुछ भी अतिश्योक्ति हो पर लगता है उस समय गांव का मुखिया जमलू रहा होगा जिसने समय के साथ-साथ देवता का स्थान व सम्मान पा लिया होगा। सारे कार्य उसी को साक्षी मान कर होते हैं। शादी-ब्याह भी यहां, मामा व चाचा के रिश्तों को छोड, आपस मे ही किए जाते हैं।
वैसे तो यहां आठवीं तक स्कूल,डाक खाना तथा डिस्पेंसरी भी है पर साक्षरता की दर नहीं के बराबर होने के कारण इलाज वगैरह मे झाड-फ़ूंक का ही सहारा लिया जाता है।भेड पालन यहां का मुख्य कार्य है, वैसे नाम मात्र को चावल,गेहूं, मक्का इत्यादि की फसलें भी उगाई जाती हैं पर आमदनी का मुख्य जरिया है भांग की खेती। यहां की भांग जिसको मलाणा- क्रीम के नाम से दुनिया भर मे जाना जाता है, उससे बहुत परिष्कृत तथा उम्दा दरजे की हिरोइन बनाई जाती है तथा विदेश मे इसकी मांग हद से ज्यादा होने के कारण तमाम निषेद्धों व रुकावटों के बावजूद यह बदस्तूर देश के बाहर कैसे जाती है वह अलग विषय है।
आत्म केन्द्रित से यहां के लोगों के अपने रीति रिवाज हैं, जिनका पूरी निष्ठा तथा कड़ाई से पालन किया जाता है, और इसका श्रेय जाता है इनके ग्राम देवता जमलू को जिसके प्रति इनकी श्रद्धा, खौफ़ की हद छूती सी लगती है। अपने देवता के सिवा ये लोग और किसी देवी-देवता को नहीं मानते। यहां का सबसे बडा त्योहार फागली है जो सावन के महिने मे चार दिनों के लिये मनाया जाता है। इन्ही दिनों इनके देवता की सवारी भी निकलती है, तथा साथ मे साल मे एक बार बादशाह अकबर की स्वर्ण प्रतिमा की पूजा भी की जाती है। कहते हैं एक बार अकबर ने अपनी सत्ता मनवाने के लिये जमलू देवता की परीक्षा लेनी चाही थी तो उसने अनहोनी करते हुए दिल्ली मे बर्फ़ गिरवा दी थी तो बादशाह ने कर माफी के साथ-साथ अपनी सोने की मूर्ती भिजवाई थी। इस मे चाहे कुछ भी अतिश्योक्ति हो पर लगता है उस समय गांव का मुखिया जमलू रहा होगा जिसने समय के साथ-साथ देवता का स्थान व सम्मान पा लिया होगा। सारे कार्य उसी को साक्षी मान कर होते हैं। शादी-ब्याह भी यहां, मामा व चाचा के रिश्तों को छोड, आपस मे ही किए जाते हैं।
वैसे तो यहां आठवीं तक स्कूल,डाक खाना तथा डिस्पेंसरी भी है पर साक्षरता की दर नहीं के बराबर होने के कारण इलाज वगैरह मे झाड-फ़ूंक का ही सहारा लिया जाता है।भेड पालन यहां का मुख्य कार्य है, वैसे नाम मात्र को चावल,गेहूं, मक्का इत्यादि की फसलें भी उगाई जाती हैं पर आमदनी का मुख्य जरिया है भांग की खेती। यहां की भांग जिसको मलाणा- क्रीम के नाम से दुनिया भर मे जाना जाता है, उससे बहुत परिष्कृत तथा उम्दा दरजे की हिरोइन बनाई जाती है तथा विदेश मे इसकी मांग हद से ज्यादा होने के कारण तमाम निषेद्धों व रुकावटों के बावजूद यह बदस्तूर देश के बाहर कैसे जाती है वह अलग विषय है।
1 टिप्पणी:
रोचक जानकारी...
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