गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

भाव संप्रेषित करने की क्षमता हर प्राणी में होती है।


यदि ध्यान से पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों के कार्य-कलाप को देखा जाए तो बहुत सारे आश्चर्यजनक तथ्य सामने आते हैं। यदि इनकी आवाजों पर ध्यान दिया जाए तो साफ पता चलता है कि विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न ध्वनियों द्वारा ये आपस में संवाद स्थापित करने में सक्षम हैं। खासकर प्रजनन के समय नर अपनी ओर से तरह-तरह की ध्वनी उत्पन्न कर मादा को पास बुलाने और रिझाने का प्रयास करता है।

संसार मं इंसान को तरह-तरह की भाषाएं, बोलियां और ध्वनियां उत्पन्न करने की क्षमता प्राप्त है। पर इसका यह मतलब नहीं है कि दुनिया के और जीव आपस में अपने भावों का संप्रेषण करने में असमर्थ हैं। पर उनके इस काम के होने नहीं होने का हमें पता ही नहीं चल पाता।  मनुष्य को छोड कर शेष जीव-जंतु भी विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न कर अलग-अलग समय में अलग-अलग भाव संप्रेषित करने की क्षमता रखते हैं।  

यदि ध्यान से पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों के कार्य-कलाप को देखा जाए तो बहुत सारे आश्चर्यजनक तथ्य सामने आते हैं। यदि इनकी आवाजों पर ध्यान दिया जाए तो साफ पता चलता है कि विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न ध्वनियों द्वारा ये आपस में संवाद स्थापित करने में सक्षम हैं। खासकर प्रजनन के समय नर अपनी ओर से तरह-तरह की ध्वनी उत्पन्न कर मादा को पास बुलाने और रिझाने का प्रयास करता है। 

कहते हैं कि मोर बादलों को देख अपने पंख फैलाता है पर वहीं वह अपने पंख फैला और नृत्य कर मोरनी को आकर्षित भी करता है। वैसे ही मेढक जो जाडे भर सुप्तावस्था में मिट्टी के नीचे खुद को  दबा रख कर अपने शरीर के तापमान को बनाए रख पडा रहता है वह वर्षा ऋतु के आते ही अपनी टर्राहट से अपनी मादा को संदेश भेजना शुरु कर देता है। मेढक की विभिन्न प्रजातियों में यह ध्वनी अलग-अलग होती है। हमें भले ही यह टर्राहट कर्ण-कटु लगे पर इसे ही सुन कर अंडे देने की स्थति में मादा मेढक अनायास ही नर मेढक की ओर आकर्षित हो जाती है। ज्यादा दूर नहीं अपने घरेलू कुत्ते के व्यवहार पर ही नज़र डालें तो पाएंगे कि सिर्फ भौंकने के लिए बदनाम यह प्राणी भूख लगने, प्यार पाने, प्रेम प्रदर्शन या दुखी होने पर तरह-तरह की ध्वनियां उत्पन्न करता है। यही हाल दूसरे पालतू जानवरों जैसे गाय, बकरी या बिल्ली का भी है। घरों में आने या पाए जाने वाले पक्षियों यथा तोता, कबूतर , गौरैया या कोव्वे के क्रिया-कलाप को ध्यान से देखें तो इनके अलग-अलग भावों में अलग-अलग तरह की आवाजें सुनने को मिलेंगी। पानी के जीवों में छोटी-बडी मछलियों, सील, व्हेल, शार्क या फिर डाल्फिन द्वारा उत्पन्न ध्वनियों या उनके आपस में अपने भावों को पहुंचाने के तरीकों की बात करें तो पन्ने भर जाएंगे। और तो और मच्छर जैसा क्षुद्र कीट भी अपने पंख की फडफडाहट से ध्वनी उत्पन्न कर अपनी बात को अपने साथी तक पहुंचाने की क्षमता रखता है। और यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि हजारों तरह की ध्वनियों के बीच भी मादा मच्छर द्वारा भेजे गये संदेश को नर बखूबी ग्रहण कर उसके पास पहुंच जाता है। टीड्डे और झिंगुर जैसे कीडे भी जबान ना होने पर भी अपने पंखों को अपने पैरों से रगड कर विभिन्न तरह की ध्वनियां उत्पन्न कर अपनी मादा तक अपना संदेश पहुंचा देते हैं। इनके द्वारा उत्पन् ध्वनियां बडी विचित्र होती हैं। हमारे कान सहसा यह अंदाज नहीं लगा पाते कि किस कोने में बैठा टिड्डा अपनी मादा को संदेश भेज रहा है। पता तो हम बहुत कुछ नहीं लगा पाए हैं, पर संसार भर के वैज्ञानिक ध्वनी संप्रेषण के नये-नये पहलुओं को खोजने में लगे हुए हैं इसी उम्मीद से कि भविष्य में इन तथाकथित मूक प्राणियों की 'बात' समझ पाएंगे। 

तो यदि कभी भी किसी पशु या पक्षी की आवाज सुनें तो गौर जरूर करें कि किस तरह की परिस्थिति में वह कैसी आवाज कर रहा है। कुछ ही समय में आप फर्क जरूर महसूस करने लग जाएंगे।

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

संवाद स्थापित करना जीव का प्राथमिक कार्य है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट ... हर प्राणी संवाद स्थापित कर ही लेता है ... कुछ बोल कर तो कुछ अपनी क्रियाओं से

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