जब पढे-लिखे लोग ही ऐसे बाबाओं के मकडजाल में उलझ जाते हैं तो सोचिए निरक्षर, अनपढ सीधे-सरल लोगों पर इनकी धार्मिक अफीम का कितना और कैसा घातक असर होता होगा। पर साथ ही साथ यह भी सच है कि जब तक हम किसी चमत्कार के तहत अपने भविष्य को सवारने, खुशहाल होने के सपने देखते रहेंगे तब तक ऐसे बाबाओं की जमात मे वृद्धि होती रहेगी।
हमारे पवित्र ग्रन्थ गीता में खुद भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान देते हुए कहा था कि "कर्म किए जा, फल की इच्छा मत कर"। यानि हम यथाशक्ति अपनी सामर्थानुसार कर्म करें, बाकी उसके अच्छे या बुरे परिमाण की चिंता प्रभू पर छोड दें।
हमारे पवित्र ग्रन्थ गीता में खुद भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान देते हुए कहा था कि "कर्म किए जा, फल की इच्छा मत कर"। यानि हम यथाशक्ति अपनी सामर्थानुसार कर्म करें, बाकी उसके अच्छे या बुरे परिमाण की चिंता प्रभू पर छोड दें।
किसके जीवन में सुख-दुःख नहीं आते। यह तो जीवन चक्र है। स्थाई कुछ भी नहीं है। पर सुख में हम सारी बातें तिरोहित कर जश्न मनाने में जुटे रहते हैं और विपरीत परिस्थितियों में दुख से जल्द से जल्द छुटकारा पाने के लिए इसका-उसका दरवाजा खटखटाने लगते हैं। भूल जाते हैं कि जिसने कष्ट दिया है वही दूर करेगा, छोड देते हैं अपनी आस्था को पीछे, डगमगा जाने देते हैं अपने विश्वास को उस सर्वोच्च सत्ता के प्रति और बन जाते हैं ठगों के हाथ की कठपुतली।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि दुःख हमारे जीवन में आते हैं तो क्या इन तथाकथित बाबाओं को इनसे मुक्ति मिल पाती होगी? कदापि नहीं। ये भी हमारी तरह पांच तत्वों के जीव हैं, इन्हें भी आदि-व्याधी सताती है। इन्हें भी देह धारण करने का दंड भोगना पडता है। ऐसा शायद ही कोई संत-महात्मा-बाबा या चमत्कारी पुरुष हुआ होगा जिसने अपने जीवन में रोग या हारी-बिमारी का सामना ना किया हो, जिसके जीवन में कभी विपरीत परिस्थितियां ना आईं हों, जिसने कभी कोई कष्ट ना भुगता हो। किन्तु ये आजकल के मजमेबाज येन-केन-प्रकारेण अपने चारों ओर ऐसा आभा-मंडल रच लेते हैं जिससे आम इंसान की आंखें चौंधिया कर सच देखना बंद कर देती हैं और हम एक अलौकिक पद प्रदान कर इन्हें पूजकर भगवान का दर्ज़ा दे देते हैं। बिना यह सोचे-समझे कि एक आम मनुष्य भगवान कभी नहीं बन सकता है। इन तथाकथित बाबाओं को लेकर पूर्व के अनुभव तो यही कहते हैं कि हमारी अंध श्रद्धा का फायदा उठाकर इनका कद इतना बड़ा हो जाता है जिसकी आड़ में ये गलत काम करने से भी गुरेज नहीं करते। तब शासन से लेकर प्रशासन तक इनके समक्ष निरीह नज़र आता है।
जब पढे-लिखे लोग ही ऐसे बाबाओं के मकडजाल में उलझ जाते हैं तो सोचिए निरक्षर, अनपढ सीधे-सरल लोगों पर इनकी धार्मिक अफीम का कितना और कैसा घातक असर होता होगा। पता नहीं देश की जनता कब समझ पाएगी भगवान और आदमी का फर्क, कब समझेगी कि बाबाओं से उसका भला नहीं होने वाला नहीं है? पर साथ ही साथ यह भी सच है कि जब तक हम किसी चमत्कार के तहत अपने भविष्य को सवारने, खुशहाल होने के सपने देखते रहेंगे तब तक ऐसे बाबाओं की जमात मे वृद्धि होती रहेगी।
3 टिप्पणियां:
जिसे जैसा गुरु चाहिये, मिलता रहे।
गुरु या गुरुघंटाल :-)
आज कल की आपाधापी भरी जिन्दगी में इंसान हारने लगा है तो उसे ये तथाकथित बाबा उम्मीद की किरण नज़र आते हैं और वो उनकी तरफ मुड़ जाते है और धर्म भीरुता के आगे शिक्षा मायने नहीं रखती
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