मेरे पड़ोस में रहते हैं, माधवजी। मिलनसार, हंसमुख, खुश मिजाज। अच्छा-खासा परिवार। उनके स्वभाव के कारण उनके मित्रों की कमी नहीं है ना ही उनके घर आने-जाने वालों की। उनके दो बच्चे हैं, दोनों लडके। बड़े को प्यार से सोनू तथा छोटे को छोटू कह कर बुलाया जाता है।
माधवजी अक्सर अपने घर आने वालों को सोनू की 'बुद्धिमंदता' का खेल दिखलाते रहते हैं। होता क्या है कि बातचीत के दौरान ही माधवजी सोनू को आवाज लगाते हैं। उसके आने पर उस दो सिक्के, एक दो रुपये का और दूसरा पांच रुपये का दिखला कर कोई एक उठाने को कहते हैं और सोनू झट से, दोनों सिक्कों में कुछ बड़ा दो रुपये का सिक्का ही उठाता है। सारे लोग हसने लग जाते हैं सोनू की कमअक्ली पर। सोनू पर उनके हसने या अपने मजाक बनने का कोई असर नहीं होता। वह सिक्का उठा, यह जा, वह जा। माधवजी भी मजे ले-ले कर बताते हैं कि बचपन से ही सोनू बड़ा सिक्का उठाते चला आ रहा है, बिना उसकी कीमत पहचाने। जबकि छोटू को इसकी समझ है। यह खेल वर्षों से चला आ रहा है।
सोनू की माँ को यह सब अच्छा नहीं लगता कि कोई उनके बेटे का मजाक बनाए। पर कई बार कहने पर भी माधवजी अपने इस खेल को बंद नहीं करते।
एक बार सोनू के मामाजी इनके यहाँ आए। बातों-बातों में बहन ने भाई को इस बारे में भी बताया। मामाजी को भी यह बात खली। उन्होंने अकेले में सोनू को बुलाया और कहा, बेटा तुम बड़े हो गए हो, स्कूल जाते हो, पढाई में भी ठीक हो तो तुम्हें यह नहीं पता कि दो रुपये, पांच रुपयों से कम होते हैं?
सोनू ने कहा कि पता है।
पता है ! तब तुम सदा लोगों के सामने दो रुपये ही क्यों उठाते हो? लोग तुम्हारा मजाक बनाते है? मामाजी ने आश्चर्य चकित हो पूछा।
मामाजी, जिस दिन मैंने पांच का सिक्का उठा लिया उसी दिन यह खेल बंद हो जाएगा और मेरी आमदनी भी।
मामाजी हतप्रभ से अपने चतुर भांजे का मुख देखते रह गए। कहानी का सार आप बताएं :-)
6 टिप्पणियां:
बहुत खूब महोदय ||
बधाई ||
रविकरजी,
हौसला बढाने के लिए आभार। सदा स्वागत है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
पढ़कर तो आनन्द आ गया।
सोनू और माधव जी ---- बालक बूढा एक समान:)
बहुत खूब !सार यही है चाइल्ड इज दी फादर ऑफ़ मेन.मंद बुद्धि बालक वैसे भी एक ही है वह है दिग्विजय शिष्य राहुल बाबा उर्फ़ प्रिंस ऑफ़ कोंग्रेस ,मम्मी जी का लाडला .
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