गुरुवार, 17 मार्च 2011

जापानियों, तुम्हें सलाम है.

दूसरा विश्वयुद्ध लाया था जापान के लिए तबाही और सिर्फ़ तबाही। हिरोशिमा तथा नागासाकी जैसे शहर तबाह हो गये थे। सारे देश की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो चुकी थी। किसी भी संस्था के पास अपने कर्मचारियों के लिये पूरा काम न था। इसलिए एक निर्णय के तहत काम के घंटे 8 से घटा कर 6 कर दिए गये तथा साप्ताहिक अवकाश भी एक की जगह दो दिनों का कर दिया गया। नतीजा क्या हुआ: अगले दिन ही सारे कर्मचारी अपनी बांहों पर काली पट्टी लगा काम पर हाजिर हो गये। ऐसा विरोध ना देखा गया ना सुना गया। उनकी मांगें थीं कि देश पर विप्पतियों का पहाड टूट पडा है तो हम घर मे कैसे बैठ सकते हैं। इस दुर्दशा को दूर करने के लिए काम के घंटे घटाने की बजाय बढा कर दस घंटे तथा छुट्टीयां पूरी तरह समाप्त कर दी जाएं। सब की एक ही हार्दिक इच्छा थी कि हम सब को मिल कर अपने देश को फिर सर्वोच्च बनाना है। यही भावना थी, जिससे जापान गर्व से सिर उठा कर फिर खड़ा हो सका था।
आज फिर वैसी ही आपदा का सामना कर रहा है जापान। फर्क यह है कि इस बार प्रकृति विनाश पर उतारू है। आग, हवा, पानी, जैसे सारी दैवीय शक्तियाँ परीक्षा लेने पर आमादा हैं। पर सारी दुनिया को विश्वास है कि यह जुझारू देश फिर उठ खडा होगा सारी परेशानियों, मुसीबतों की धूल झाड कर। जापानी कभी हार नहीं मानते, इसका प्रमाण उन्होंने बार-बार दिया है। फिर इस बार तो सारा विश्व उनके साथ है।

9 टिप्‍पणियां:

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

सारा विश्व साथ है।
जापान इस त्रासदी को पीछे छोडकर फिर से आगे बढ चलेगा।
जापान को और वहां की जनता को मेरी रामराम।

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

सही है, वरना इतनी मुसीबतें झेलने के बाद कोई भी देश कैसे इतनी तरक्की कर सकता है ?

padm singh ने कहा…

इसी जज्बे का नतीजा है कि बर्बाद होने के बाद भी जापान दुगनी तेज़ी से तरक्की करता रहा है... एक हमारे यहाँ हैं... दस दिन से रेल रोक कर बैठे हैं... देश और आम जनता जाए भाड़ में .... आरक्षण मिलना चाहिए बस

Roshi ने कहा…

japani jajbe ko salam

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

गगन जी,
नाम का प्रभाव है.
जापान का संस्कृत नाम जयपाणि है. जिसका अर्थ है - जीत जिसके हाथ में बसे.
वह बार-बार अपने नाम को सार्थक करता रहा है.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

जापान जिन्दाबाद..

राज भाटिय़ा ने कहा…

काश मेरे देश भारत के लोग भी इन जापानियो से कुछ शिक्षा लेते.... वैसे हम भी देर नही करते दुसरे के माल को हडपने मे, इस मे भी तो मेहनत लगती हे.... गटर का ढक्कन तक हम हज्म कर जाते हे, हमारे ईमान दार प्रधान मत्री जी १० रु मे करोड मे सांसदो को खरीद लेते हे, इस लिये हमारे लोगो की मेहनत कम नही....

Udan Tashtari ने कहा…

सब साथ हैं..

अन्तर सोहिल ने कहा…

और यहां इसका उल्टा होता है।

प्रणाम

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