आज के जमाने में पैसों का प्रलोभन ठुकराना बहुत जिगरे की बात है। पर कुछ लोग होते हैं जिनके लिए अभी भी पैसे से बढ़ कर नैतिकता का मोल है। सचिन ने वही किया जो उनके दिल और दिमाग ने बताया। शराब सिगरेट स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं तो नहीं हैं। बातें हम बड़ी-बड़ी करें और अनाप-शनाप पैसा दिखे तो दम दबा लें, यह तो दोगली निति ही हुई न। कहने को कहा जा सकता है कि सचिन को पैसे की अब उतनी जरूरत नहीं है पर उनके संगी साथियों ने, जिन्होंने यह आफर लपका वह भी कोई ऐरे-गैरे तो नहीं हैं।
चलिए सचिन की बात नहीं करते पर आप प्रसिद्ध बैडमिन्टन खिलाड़ी , पुलेला गोपीचंद को क्या कहेंगे जिनको "आल इंग्लैण्ड चैंपियनशिप" जीतने के बाद एक विश्वप्रसिद्ध शीतल पेय का भारी भरकम आफर मिला था पर उन्होंने उस यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि जिस चीज का मैं खुद उपयोग नहीं करता उसके बारे में जानते हुए दूसरों को कैसे उपयोग में लाने को कह सकता हूँ। उस समय वह कोई करोडपति तो थे नहीं ।
तो सारी बात यही है कि पैसों का प्रलोभन ठुकराना भी सबके बूते की बात नहीं है।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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7 टिप्पणियां:
हां भाई, तभी तो राजा का राज चल रहा है और जनता को लूट कर बेवकूफ़ बनाया जा रहा है :(
सचिन की इस बात से दूसरों को भी सीखना चाहिए।
ऎसे लोग ही उदारण बनते हे, वर्ना आज के जमाने मै मैने लोगो को अपनी इज्जत बेचते भी देखा हे इस पैसो के लिये, ओर वो भी खुब अमीर, वेसे यह नेता तो अपना ईमान भी बेच रहे हे इस माया के लिये,
ऐसे लोग ही उदहारण बनते हैं ... इत्तेफाक रखता हूँ भाटिया जे से मैं भी ..
blkul sahi kaha esilie to sachin ko bhagawan ka drja diya jata hai .
सहमत हूं आपसे !!
आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .
* किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?
हाँ ! क्यों नहीं !
कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.
सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.
इसमें भी एक अच्छी बात है.
अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?
सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.
पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.
सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.
आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.
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