रविवार, 29 मार्च 2009

एक सकून दायी ख़बर पाकिस्तान से

कभी-कभी तपती गर्मी में घने पेड़ की छाया पाकर जो सुख मिलता है, वैसे ही पड़ोसी देश से कोई ठंड़ी बयार सी खबर आ मन को सकून पहुंचा जाती है। अभी जाहिदा हिना जी, जो पाकिस्तान की जानी-मानी लेखिका हैं, का एक लेख पढने को मिला। आप भी जायजा लीजिए।
23 मार्च के दिन लाहौर में में भगत सिंह और उनके साथियों को याद किया गया। शादमान चौक पर भगत सिंह की बड़ी तस्वीर रखी गयी, इंकलाबी गाने गाये गये, शहीदों के नाम के नारे लगाए गये। यह सारा कार्यक्रम "भगत सिंह फाउंडेशन फार पीस एंड कल्चर" ने करवाया था। यह तो वह वाकया था जो इंसानियत के जिंदा होने का एहसास करवाता है। अब भाग्य के खेल को देखिए --
उस दिन वहां आने वाले लोगों को बताया गया कि जिस दिन भगत सिंह फांसी चढ रहे थे उस दिन शहर के तमाम मजिस्ट्रेटों ने इस फांसी का गवाह बनने से इंकार कर दिया था। तब एक आनरेरी मजिस्ट्रेट नवाब मोहम्मद अहमद खान ने सरकारी कागजात पर बतौर गवाह दस्तखत किए थे कि उसने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी लगते और दम तोड़ते देखा। संयोग देखिए वही नवाब मोहम्मद लाहौर के शादमान चौक पर गोली मार कर कत्ल कर दिए गये। यह वही जगह है जहां ब्रिटिश काल में फांसीघर हुआ करता था। काल का पहिया फिर घूमता है। नवाब मोहम्मद के बेटे अहमद रज़ा खान ने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ एफ आइ आर दर्ज करवाई और भुट्टो इसी कत्ल के इल्जाम में फांसी चढे।

9 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

bahut achhi jankari hai dhanyvaad

वर्षा ने कहा…

सुखद आश्चर्य हुआ। पाकिस्तान में भगत सिंह और उनके साथियों को याद किया गया। ऐसा हो पाया।

Ashok Pandey ने कहा…

सचमुच प्रसन्‍न करनेवाली खबर है। पड़ोसी देश की इस सकारात्‍मक सोच का तहेदिल से स्‍वागत किया जाना चाहिए।

Gyan Darpan ने कहा…

सुखद आश्चर्य हुआ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही हेरानगी वाली खबर है, यकीन नही होता, लेकिन भुट्टॊ को तो मरना ही था, किसी भी बहाने से उसे फ़ांसी मिलनी ही थी, चलो यही बहाना सही.
धन्यवाद

रंजू भाटिया ने कहा…

आज के माहोल में से में यह हैरान कर देने वाली खबर है अच्छा लगा जान कर शुक्रिया

♥♥♥♥♥ Jennifer™® ♥♥♥♥♥ ने कहा…

your blog is well well well......

इरशाद अली ने कहा…

aapka blog tu sach main agal sa hae

tarni kumar ने कहा…

rochak jankari sachmuch.........

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