कुंभकर्ण एक महान वैज्ञानिक, ईश्वर भक्त, अपनी जाति और परिवार को अपनी जान से भी ज्यादा चाहने वाला एक प्रचंड योद्धा था। परंतु रावण के प्रभामंडल में गुम तथा एक पराजित पक्ष का सदस्य होने के कारण उसे अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पाया। जबकि उसी की उपलब्धियों के कारण रावण अपना साम्राज्य चारों ओर फैला सका था। कुंभकर्ण महीनों एकांत में, अपने परिवार और जनता से दूर रह कर तरह-तरह के आविष्कारों को
मूर्तरूप देने में लगा रहता था। इसीलिए उसके बारे में यह बात प्रचलित हो गयी थी कि वह महीनों सो कर गुजारता है।
अलग-अलग भाषाओं में, अलग-अलग स्थानों में लिखी गयी रामायणों में यथा वाल्मीकि रामायण, कम्ब रामायण, आध्यात्म रामायण, गाथा राम-रावण में तथ्यों के आधार पर कुंभकर्ण की उपलब्धियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। कुंभकर्ण शुरु से ही सात्विक विचारों वाला कट्टर शिवभक्त था। शिव जी ने उसे अनेकों सिद्धियां प्रदान की हुई थीं। इसके अलावा महर्षि भारद्वाज ने उसे निद्रा पर काबू पाने का रहस्य बताया हुआ था जिससे वह दिन-रात अपने वैज्ञानिक प्रयोगों में जुटा रहता था। उसने अपने बल-बूते पर तरह-तरह के अंतरिक्ष यान, अतिशय तेज गति वाले तथ, भयंकर क्षमता वाले अस्त्र-शस्त्रों का आविष्कार कर लंका की सेना को अजेय बना दिया था। इतना ही नहीं इसके साथ-साथ सैंकड़ों विद्यार्थीयों को निपुण बनाने के लिए उसने कई प्रयोगशालाएं, अपनी देख-रेख में संचालित कर रखी थीं। एक बार दोनों भाईयों ने शिव जी को आमंत्रित कर अपने सारे संस्थान और प्रयोगशालाएं दिखलाई थीं जिससे खुश होकर उन्होंने दोनों को आशीर्वाद दिया था पर साथ ही साथ आदेश भी दिया था कि इन सारी उपलब्धियों का सदुपयोग धरती के जीवों की भलाई के लिये ही किया जाय इसी में जगत की भलाई है।
पर जैसा की हर चीज का अंत होता है। इस फलती-फूलती सभ्यता का भी सर्वनाश, रावण के अहम और उसकी बहन शूर्पणखा की चारित्रिक दुर्बलता के कारण हो गया। शूर्पणखा के तथाकथित अपमान का बदला लेने के लिए जब रावण सीता जी को उठा कर ले आया और युद्ध ने तहस-नहस मचा दी तो रावण ने कुंभकर्ण को समर में अपने आयूधों के साथ उतरने की आज्ञा दी। कुंभकर्ण ने उसे बहुत समझाया तथा सीता जी को वापस भेजने की सलाह भी दी पर रावण ने उसकी एक ना सुनी उल्टे उसे धिक्कारते हुए कायर तक कह डाला। तब मजबूर हो कर
कुंभकर्ण ने युद्ध करने का निश्चय किया और यहीं से राक्षस वंश के विनाश की नींव पड़ गयी।
युद्धक्षेत्र में कुंभकर्ण के आते ही तहलका मच गया। उसके यंत्रों का कोई तोड़ किसी के पास नहीं था। वानर सेना तिनकों की भांति बिखर कर रह गयी। तब विभीषण अपने बड़े भाई से मिलने गये। विभीषण को सामने देख कुंभकर्ण ने उन्हें अपनी विवशता बताई। उसने कहा कि रावण की गलत आज्ञा माननी पड़ी है मुझे। अब मेरा मोक्ष श्री राम के ही हाथों हो सकता है। यदि वे मेरे अस्त्रों को किसी तरह गला सकें तो मेरी मृत्यु निश्चित है। ऐसा ही किया गया। राम जी ने अपने मंत्रपूत बाणों से कुंभकर्ण और उसके यत्रों को नष्ट कर दिया। इस प्रकार एक महान वैज्ञानिक का दुखद अंत हो गया। उसके काम को आगे बढाने वाला भी कोई नहीं था क्योंकि उसका एकमात्र पुत्र सुमेतकेतु पहले से ही संन्यास धारण कर वनगमन कर चुका था।
18 टिप्पणियां:
रोचक! तुलसीकृत मानस में भी जब कुम्भकर्ण सीता हरण के लिये धिक्कारता है तो रक्ष संस्कृति से अलग व्यक्तित्व तो लगता ही है।
बाकी रावण पक्षीय होने के कारण उसे विलेन तो पेण्ट होना ही था।
कुम्भकर्ण के इस पक्ष को उजागर करने के लिए आभार. हमें तो लगता हैं कि रामायण के सभी दुशपात्रों के कुछ उज्जवल पहलू हैं जिनसे हम अवगत नहीं हैं.
कुंभकर्ण का चरित्र पूरी तरह से निष्कलंक है। लेकिन यह वैज्ञानिक होने की बात नयी और अजीब सी लगती है।
achachha lekh...
अच्छी पोस्ट लिखी है आपने। कुंभकरण का एक और चेहरा दिखाया आपने। आभार।
दिनेश जी,
महर्षि श्रृंगी जो श्री राम के समकालीन थे उनके ग्रंथों तथा ऊपर वर्णित रामायणों में कुंभकरण के आविष्कारों का विवरण मिलता है।
ये तो वास्तव में सही है कि कुंभकरण का चरित्र पूर्णत: निष्कलंक है.....किन्तु एक तो उसके इस पक्ष के बारे में कहीं भी नहीं पढा,दूसरा उसके पुत्र के बारे में भी बहुत सारी भिन्नताएं हैं......शिवपुराण में उसके पुत्र का नाम "भीम" बताया गया है,जो कि महाअत्याचारी प्रकृ्ति का था,भगवान शिव द्वारा जिस स्थान पर उसका वध किया गया,वो स्थान श्री भीमेश्वर(गुआहाटी में)के नाम से विख्यात है.....किन्तु आनन्द रामायण,(राज्यकाण्ड,पूर्वार्द्ध,अध्याय 5-6) में विस्तार पूर्वक लिखा गया है कि कुंभकरण के मूल नक्षत्र में उत्पन्न पुत्र "मूलकासुर" ने श्री राम के राज्याभिषेक पश्चात अयोध्या पर आक्रमण किया और श्रीराम को युद्ध में परास्त करने के पश्चात देवी सीता नें चंडिकास्त्र द्वारा उस राक्षस का वध किया.
इस प्रकार के विरोधाभासों को देखते हुए ही बहुत से लोगों के मन में शास्त्रों की सत्यता पर शंका उत्पन हो जाती है.
कुम्भकर्ण निश्चित ही वीर था जो भाई और राज्य की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी लेकिन उसका pablic releation ठीक नहीं था . यही काम भीष्म पितामाह ,द्रोणाचार्य ने किया लेकिन उनका पी आर ठीक था इसलिए वह महान हो गए
कुम्भकर्ण ने जो कुछ किया अपने देश व अपने राजा के आदेशों का पालन करने के लिए किया जो एक देश भक्त नागरिक को करना चाहिए |
विभीषण ने बेशक सच्चाई और धर्म का साथ दिया हो फिर भी उसका नाम आज भी देश के गद्दारों को इंगित करते हुए ही लिया जाता है कि घर का भेदी लंका ढाए |
कुंभकर्ण का चरित्र जो अप ने बताया बिलकुल सही लगता है, क्योकि हमारे भारत मै यह सांईस तो बहुत पहले ही आ चुकी है जिसे हम इन गोरो की देन कहते है यह बात गलत है, अब भी सारी साईंस हमारे वेडो मे लिखि है, लेकिन हमे तो पकी पकाई चाहिये , हमारे विग्यानिक आज भी अमेरिका मै इन अमेरिकिनो से दस कदम आगे है.
जब भी कभी मेने रामायण ओर महा भारत मे युध्द का वर्णान पढा हर बार यही लगा कि जरुर यह यह राकेट वगेरा ही होगे,
आप का बहुत बहुत धन्यवाद इस अति सुंदर जानकारी देने के लिये
उत्तम ज्ञानवर्धी लेख। साधू
बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है आपने।
Hi, it is nice to go through ur blog...well written..by the way which typing tool are you suing for typing in Hindi..?
i understand that, now a days typing in an Indian language is not a big task... recently, i was searching for the user friendly Indian language typing tool and found.. " quillpad". do u use the same..?
Heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration...!?
expressing our views in our own mother tongue is a great feeling...and it is our duty too...so, save,protect,popularize and communicate in our own mother tongue...
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Jai..Ho...
भाई सहब,
नमस्कार।
यदि आप अपना परिचय देते तो बहुत खुशी होती। खैर, मैं hindikalam.com पर लिखकर कापी-पेस्ट विधी अपना रहा हूं। यह इसलिए अच्छा लगता है, क्योंकि इसमें हिंदी के जटिल शब्द भी लिखे जा सकते हैं।
आप पोस्ट पर आये इसके लिए आभारी हूं। आशा है संपर्क बना रहेगा।
Gagan ji, kumbhakaran ko hum villain ke roop mein kam aur jyada sone wale aur khane wale ke roop mein jyada jante hain. Yeh bhi samman ki baat hai ki Ravan ka sath dene bavjood use vibhisan jitna upyash nahi mila jisne dharm ka sath diya tha. Aaj bhi vibhisan naam ka sambhodhan dil ko lagta lekin kumbhakaran naam se sirf chehre pe smile ya banavati gussa aata hai.
प्रभावशाली अभिव्यक्ति, गंभीर शोध का विषय है, सुक्ष्म विश्लेषण आवश्यक है।
apne pahle bhee rawan ke baare me alag soch dii thii. ab kumbhkarn ko naye najariye se dikhaaya.
abhar.
आपनेँ बहुत अच्छा लिखा है
कुम्भकर्ण एक महान वैग्यानिक
था और भले ही यह बात अटपटु
लगे लेकिन बिलकुल ही सत्य
है। इस बात के प्रमाण हमारे
धर्मग्रन्थोँ मेँ उपलब्ध हैँ।
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