रविवार, 29 मार्च 2009

एक सकून दायी ख़बर पाकिस्तान से

कभी-कभी तपती गर्मी में घने पेड़ की छाया पाकर जो सुख मिलता है, वैसे ही पड़ोसी देश से कोई ठंड़ी बयार सी खबर आ मन को सकून पहुंचा जाती है। अभी जाहिदा हिना जी, जो पाकिस्तान की जानी-मानी लेखिका हैं, का एक लेख पढने को मिला। आप भी जायजा लीजिए।
23 मार्च के दिन लाहौर में में भगत सिंह और उनके साथियों को याद किया गया। शादमान चौक पर भगत सिंह की बड़ी तस्वीर रखी गयी, इंकलाबी गाने गाये गये, शहीदों के नाम के नारे लगाए गये। यह सारा कार्यक्रम "भगत सिंह फाउंडेशन फार पीस एंड कल्चर" ने करवाया था। यह तो वह वाकया था जो इंसानियत के जिंदा होने का एहसास करवाता है। अब भाग्य के खेल को देखिए --
उस दिन वहां आने वाले लोगों को बताया गया कि जिस दिन भगत सिंह फांसी चढ रहे थे उस दिन शहर के तमाम मजिस्ट्रेटों ने इस फांसी का गवाह बनने से इंकार कर दिया था। तब एक आनरेरी मजिस्ट्रेट नवाब मोहम्मद अहमद खान ने सरकारी कागजात पर बतौर गवाह दस्तखत किए थे कि उसने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी लगते और दम तोड़ते देखा। संयोग देखिए वही नवाब मोहम्मद लाहौर के शादमान चौक पर गोली मार कर कत्ल कर दिए गये। यह वही जगह है जहां ब्रिटिश काल में फांसीघर हुआ करता था। काल का पहिया फिर घूमता है। नवाब मोहम्मद के बेटे अहमद रज़ा खान ने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ एफ आइ आर दर्ज करवाई और भुट्टो इसी कत्ल के इल्जाम में फांसी चढे।

रविवार, 22 मार्च 2009

कुंभकर्ण, जिसे अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पाया।

कुंभकर्ण एक महान वैज्ञानिक, ईश्वर भक्त, अपनी जाति और परिवार को अपनी जान से भी ज्यादा चाहने वाला एक प्रचंड योद्धा था। परंतु रावण के प्रभामंडल में गुम तथा एक पराजित पक्ष का सदस्य होने के कारण उसे अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पाया। जबकि उसी की उपलब्धियों के कारण रावण अपना साम्राज्य चारों ओर फैला सका था। कुंभकर्ण महीनों एकांत में, अपने परिवार और जनता से दूर रह कर तरह-तरह के आविष्कारों को
मूर्तरूप देने में लगा रहता था। इसीलिए उसके बारे में यह बात प्रचलित हो गयी थी कि वह महीनों सो कर गुजारता है।

अलग-अलग भाषाओं में, अलग-अलग स्थानों में लिखी गयी रामायणों में यथा वाल्मीकि रामायण, कम्ब रामायण, आध्यात्म रामायण, गाथा राम-रावण में तथ्यों के आधार पर कुंभकर्ण की उपलब्धियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। कुंभकर्ण शुरु से ही सात्विक विचारों वाला कट्टर शिवभक्त था। शिव जी ने उसे अनेकों सिद्धियां प्रदान की हुई थीं। इसके अलावा महर्षि भारद्वाज ने उसे निद्रा पर काबू पाने का रहस्य बताया हुआ था जिससे वह दिन-रात अपने वैज्ञानिक प्रयोगों में जुटा रहता था। उसने अपने बल-बूते पर तरह-तरह के अंतरिक्ष यान, अतिशय तेज गति वाले तथ, भयंकर क्षमता वाले अस्त्र-शस्त्रों का आविष्कार कर लंका की सेना को अजेय बना दिया था। इतना ही नहीं इसके साथ-साथ सैंकड़ों विद्यार्थीयों को निपुण बनाने के लिए उसने कई प्रयोगशालाएं, अपनी देख-रेख में संचालित कर रखी थीं। एक बार दोनों भाईयों ने शिव जी को आमंत्रित कर अपने सारे संस्थान और प्रयोगशालाएं दिखलाई थीं जिससे खुश होकर उन्होंने दोनों को आशीर्वाद दिया था पर साथ ही साथ आदेश भी दिया था कि इन सारी उपलब्धियों का सदुपयोग धरती के जीवों की भलाई के लिये ही किया जाय इसी में जगत की भलाई है।

पर जैसा की हर चीज का अंत होता है। इस फलती-फूलती सभ्यता का भी सर्वनाश, रावण के अहम और उसकी बहन शूर्पणखा की चारित्रिक दुर्बलता के कारण हो गया। शूर्पणखा के तथाकथित अपमान का बदला लेने के लिए जब रावण सीता जी को उठा कर ले आया और युद्ध ने तहस-नहस मचा दी तो रावण ने कुंभकर्ण को समर में अपने आयूधों के साथ उतरने की आज्ञा दी। कुंभकर्ण ने उसे बहुत समझाया तथा सीता जी को वापस भेजने की सलाह भी दी पर रावण ने उसकी एक ना सुनी उल्टे उसे धिक्कारते हुए कायर तक कह डाला। तब मजबूर हो कर
कुंभकर्ण ने युद्ध करने का निश्चय किया और यहीं से राक्षस वंश के विनाश की नींव पड़ गयी।

युद्धक्षेत्र में कुंभकर्ण के आते ही तहलका मच गया। उसके यंत्रों का कोई तोड़ किसी के पास नहीं था। वानर सेना तिनकों की भांति बिखर कर रह गयी। तब विभीषण अपने बड़े भाई से मिलने गये। विभीषण को सामने देख कुंभकर्ण ने उन्हें अपनी विवशता बताई। उसने कहा कि रावण की गलत आज्ञा माननी पड़ी है मुझे। अब मेरा मोक्ष श्री राम के ही हाथों हो सकता है। यदि वे मेरे अस्त्रों को किसी तरह गला सकें तो मेरी मृत्यु निश्चित है। ऐसा ही किया गया। राम जी ने अपने मंत्रपूत बाणों से कुंभकर्ण और उसके यत्रों को नष्ट कर दिया। इस प्रकार एक महान वैज्ञानिक का दुखद अंत हो गया। उसके काम को आगे बढाने वाला भी कोई नहीं था क्योंकि उसका एकमात्र पुत्र सुमेतकेतु पहले से ही संन्यास धारण कर वनगमन कर चुका था।

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

मुसीबतें हमें खत्म करने नहीं बल्कि ...........

हिमालय की तराई में एक किसान अपने परिवार के साथ रहता था। वह धार्मिक प्रवृत्ति का इंसान था। अपने काम-काज को निपटा कर गीता का पाठ करना उसका नित्य का काम था। उसका छोटा बेटा उसकी देखा-देखी उसी की तरह गीता पढा करता था। एक दिन बेटे ने अपने पिता से कहा कि मैं रोज गीता पढता हूं पर पुस्तक बंद करते ही सब भूल जाता हूं। कुछ समझ में भी नहीं आता है।
किसान ने उसे कुछ जवाब देने की बजाय उसे कोने में पड़ी एक कोयला रखने की टोकरी दिखाते हुए उसमें नदी से पानी भर कर लाने को कहा। लड़के ने टोकरी उठाई और नदी की ओर चल पड़ा। वहां जा कर उसने टोकरी में पानी भरा और घर की तरफ लौट पड़ा। पर घर तक आते-आते टोकरी का सारा पानी बह गया। यह देख किसान ने बेटे से कहा कि तुमने पूरी कोशिश नहीं की इसलिए टोकरी खाली हो गयी। इस बार जल्दि आने की चेष्टा करना। लड़के ने फिर टोकरी उठाई और नदी किनारे जा उसमें पानी भरा और दौड़ते हुए घर पहुंचा, पर पानी फिर बह गया। लड़के ने पिता से कहा कि टोकरी में पानी नहीं आ सकता मैं बाल्टी में पानी ले आता हूं। यह सुन किसान ने कहा कि तुम आधे-अधुरे मन से काम करते हो इसीलिए ऐसा हो रहा है। लड़का भी पिता के सामने शर्मिंदा नहीं होना चाहता था। उसने फिर टोकरी उठाई और नदी से पानी भर जितनी तेजी से संभव था दौड़ता हुआ घर पहुंचा। पर पानी फिर भी टोकरी से बह गया और टोकरी खाली की खाली रह गयी थी। लड़के ने टोकरी एक तरफ रखी और पिता से बोला कि यह बेकार का काम है। इसमें कोई फायदा नहीं है।
किसान अपने बेटे से बोला, तुम समझते हो कि यह बेकार का काम है, क्योंकि तुमने टोकरी की तरफ ध्यान नहीं दिया है। लड़के ने टोकरी की तरफ देखा तो आश्चर्चकित रह गया। वह कोयलों के कारण काली, गंदी हुई टोकरी बार-बार अंदर बाहर धुल कर नयी के समान चमक रही थी।
किसान ने बेटे से कहा कि जब भी तुम गीता पढते हो, भले ही तुम पूरी ना समझ पाओ या याद ना रख सको पर वह तुम्हें ऐसे ही अंदर और बाहर से स्वच्छ करती रहती है, बदलती रहती है। यही हमारी जिंदगी में प्रभू करते रहते हैं। बिना हमारे जाने। मुसीबतें हमारी जिंदगी में हमे खत्म करने नहीं आतीं वे हमें अपने जीवन पथ पर और मजबूती से आगे बढने के लिए तैयार कर जाती हैं।

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

गणित कठिन है या आसान, आप ही बताएं.

दुनिया में बहुत कम शूरवीर होते हैं, जिन्हें गणित से भय नहीं लगता। मुझे तो बहुत लगता था। पर इसे देख-पढ कर आप क्या कहेंगें? शायद यही कि, काश! पहले पता होता -
1, 7101449275362318840579 को 7 से भाग देना है। न न, कैलकुलेटर मत उठाईए। सिर्फ संख्या के पहले स्थान के 7 को उठा कर अंतिम स्थान पर रख दें।
2, 105263157894736842 को 2 से गुणा करना है, वैसे तो यह आसन है, फिर भी 2 को अंतिम स्थान से उठा कर सबसे पहले रख दें तो समय बचेगा।
3, 1034482758620689655172413793 को 3 से गुणा करना हो तो सिर्फ सबसे पीछे बैठे 3 को ला कर समने रख दें आपकी प्रोब्लम खत्म।
4, 2 का स्क्वायर रूट ? हां यह थोड़ा मुश्किल है। पचास स्थानों तक का मुल्य ही थका देता है -
1.41421356237309504880168872420969807856967187537694 और यह अंत नहीं है। आप चाहें तो 110 स्थानों तक खात्मा ना हो।
5, क्या आप जानते हैं कि कितना होता है "कुछ" (A FEW) का मुल्य ?
बाईबिल में इसका मुल्य "आठ" बताया गया है।

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संता और बंता शतरंज खेल रहे हैं !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

गुरुवार, 12 मार्च 2009

कहलाते कुछ हैं, होते कुछ और हैं.

दुनिया में बहुत सारी ऐसी चीजें हैं, जिनके नाम से उनका अंदाज नहीं लगाया जा सकता। इसी बात पर हास्य कवि काका हाथरसी ने 108 नामों की एक कविता लिख डाली थी जिसमें शख़्सियत अपने नाम के बिल्कुल विपरीत थी। यहां कुछ ऐसी वस्तुओं के नाम हैं जिनसे उन वस्तुओं का दूर तक कोई रिश्ता नहीं है :-
1, फनी बोन - यह हड़्ड़ी नहीं नर्व होती है।
2, ब्लैक बाक्स - हवाई जहाज का यह बाक्स नारंगी रंग का होता है।
3, बनाना आयल - इसका केले से कोई संबंध नहीं होता। यह कोयले के डिस्टिलेशन से प्राप्त होता है।
4, पाईन एप्पल - ना तो यह पाईन है नही एप्पल यह berry की जाति का फल है।
5, ड्राई होल - नाम में सूखा जुड़ा है। पर यह जमीन से तेल निकालते समय किया गया छिद्र होता है जिसमें पानी भरा रहता है।
6, कार्बोलिक एसिड़ - रासायनिक दृष्टि से यह क्षार है, तेजाब नहीं।
7, बटर मिल्क - इसमें बटर होता ही नहीं है। यह वह दूध है जिसमें से सारा बटर निकाल लिया हो।
8, ब्लैक गम - यह नाम दुनिया की बेहतरीन सफेद लकड़ी का है।
इस तरह के सैंकड़ों नाम हमें अपने आस-पास मिल जाएंगें जो इतने कामन हैं कि उनके अर्थों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता, कभी जाता भी है तो वे हमें एक बार मुस्कुराने का मौका दे जाते हैं।
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अभी होली का खुमार बाकि है उसी के लिए -
होली की रात संता के घर चोर आ गया। दिन भर के हुड़दंग से पस्त संता तो कुछ कर नहीं पाया पर भारी-भरकम संतानी ने मरियल से चोर को धर दबोचा और उस की पीठ पर चढ बैठी और चिल्लाई, जाओ पुलिस को बुला कर लाओ। कुछ देर बाद खटर-पटर की आवाज सुन वह फिर बोली, अरे क्या कर रहे हो ? जाओ ना पुलिस को बुला कर लाओ। संता बोला, अरी भागवान चप्पल नहीं मिल रही है।
यह सुन चोर बिलबिलाया, भाई साहब मेरी चप्पल पहन जाओ पर जितनी जल्दि हो पुलिस को ले आओ।

मंगलवार, 10 मार्च 2009

होली पर विशेष, "क्या होलिका किसी षड़यंत्र का शिकार हुई थी"?

वर्षों से यह धारणा चली आ रही है कि, होलिका ने अपने भतीजे प्रह्लाद को मारने की नाकाम चेष्टा की थी। ऐसा उसने क्यूं किया? क्या मजबूरी थी जो एक निर्दोष बालक के अहित में उसने साथ दिया? क्या वह किसी षड़यंत्र की शिकार थी ?

असुर राज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और पडोसी राज्य के राजकुमार इलोजी एक दूसरे को दिलोजान से चाहते थे। इलोजी के रूप-रंग के सामने देवता भी शर्माते थे। सुंदर, स्वस्थ, सर्वगुण संपन्न साक्षात कामदेव का प्रतिरूप थे वे। इधर होलिका भी अत्यंत सुंदर रूपवती युवती थी। लोग इनकी जोडी की बलाएं लिया करते थे। । उभय पक्ष की सहमति से दोनों का विवाह होना भी तय हो चुका था। परन्तु विधाता को कुछ और ही मंजूर था। हिरण्यकश्यप अपने पुत्र के प्रभू प्रेम से व्यथित रहा करता था। उसके लाख समझाने-मनाने पर भी प्रह्लाद की भक्ती मे कोई कमी नहीं आ पा रही थी। धीरे-धीरे हिरण्यकश्यप की नाराजगी क्रोध मे बदलती चली गयी और फिर एक समय ऐसा भी आ गया कि उसने अपने पुत्र को सदा के लिये अपने रास्ते से हटाने का दृढसंकल्प कर लिया। परन्तु लाख कोशिशों के बावजूद वह प्रह्लाद का बाल भी बांका नही कर पा रहा था। राजकुमार का प्रभाव जनमानस पर बहुत गहरा था। राज्य की जनता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से तंग आ चुकी थी।  प्रह्लाद के साधू स्वभाव  के कारण सारे लोगों की आशाएं उससे जुडी हुई थीं।

हिरणयकश्यप ये बात जानता था। इसीलिये वह प्रह्लाद के वध को एक दुर्घटना का रूप देना चाहता था और यही हो नहीं पा रहा था। इसी बीच उसे अपनी बहन होलिका को मिले वरदान की याद हो आई। जिसके अनुसार होलिका पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पडता था। उसने होलिका को अपनी योजना बताई कि उसे प्रह्लाद को अपनी गोद मे लेकर अग्नि प्रवेश करना होगा। यह सुन होलिका पर तो मानो वज्रपात हो गया। वह अपने भतीजे को अपने प्राणों से भी ज्यादा चाहती थी। बचपन से ही प्रह्लाद अपनी बुआ के करीब रहा था। बुआ ने ही उसे पाल-पोस कर बडा किया था। जिसकी जरा सी चोट से होलिका परेशान हो जाती थी, उसीकी हत्या की तो वह कल्पना भी नही कर सकती थी। उसने भाई के षडयन्त्र मे भागीदार होने से साफ़ मना कर दिया। पर हिरण्यकश्यप भी होलिका की कमजोरी जानता था। उसने भी होलिका को धमकी दी कि यदि उसने उसका कहा नही माना तो वह भी उसका विवाह इलोजी से नहीं होने देगा। होलिका गंभीर धर्मसंकट मे पड गयी थी वह अपना खाना-पीना-सोना सब भूल गयी। एक तरफ़ दिल का टुकडा, मासूम भतीजा था तो दूसरी तरफ प्यार, जिसके बिना जिंदा रहने की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी। आखिरकार उसने एक अत्यन्त कठिन फ़ैसला कर लिया और भाई की बात मान ली, क्योंकि उसे डर था कि कहीं हिरण्यकश्यप इलोजी को कोई नुक्सान ना पहुंचा दे। निश्चित दिन, उसने अपने वरदान का सहारा प्रह्लाद को दे, उसे अपनी गोद मे लेकर, अग्नि प्रवेश कर अपना बलिदान कर दिया, पर उसके इस त्याग का किसी को भी पता नहीं चल पाया।

यही दिन होलिका और इलोजी के विवाह के लिए भी तय किया गया था। इलोजी इन सब बातों से अंजान अपनी बारात ले नियत समय पर राजमहल आ पहुंचे। वहां आने पर जब उन्हें सारी बातें पता चलीं तो उन पर तो मानो पहाड टूट पडा, दिमाग कुछ सोचने समझने के काबिल न रहा। पागलपन का एक तूफ़ान उठ खडा हुआ और इसी झंझावात मे उन्होंने अपने कपडे फाड डाले और होलिका-होलिका की मर्म भेदी पुकार से धरती-आकाश को गुंजायमान करते हुए होलिका की चिता पर लोटने लगे। गर्म चिता पर निढाल पडे अपने आंसुओं से ही जैसे चिता को ठंडा कर अपनी प्रेयसी को ढूंढ रहे हों। उसके बाद उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया। वन-प्रातों मे भटकते-भटकते सारी जिंदगी गुजार दी।

पर इतिहास ने दोनों को भुला दिया। इलोजी की बात करें तो उनका नाम सिर्फ राजस्थान तक सिमट कर रह गया और रही होलिका, तो उसके साथ तो घोर अन्याय हुआ, उसके बलिदान को भुला कर उसे प्रह्लाद की हत्या के षड़यंत्र में शामिल एक अपराधी मान कर बदनाम कर दिया गया।

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* सारे बिन देखे अपनों को, ब्लोगर परिवार को, आप सब को होली की ढेरों बधाईयां।

सोमवार, 9 मार्च 2009

क्या लालू जी की यादाश्त कमजोर है ?

राजनीति की खबर रखने वाले भूले नहीं होंगें बिहार में कुछ वर्षों पहले दिनदहाड़े हुए एक हत्याकांड़ को। जिसमें एक ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ जिलाधिकारी जी. कृष्णैया को मौत के घाट उतार दिया गया था। इसमें बाहूबली नेता आनंद मोहन को कसूरवार पाया गया था और उसे फांसी की सजा दी गयी थी। जो बाद में आजीवन कारावास में बदल दी गयी। उस समय वहां लालू जी का राज था।
उसी आनंद मोहन की पत्नी और पार्टीनेत्री, लवली आनंद को भी उसी मामले में सजा हुई थी पर वह हाईकोर्ट से बरी हो गयी थी। तब लालू यादव ने इन दोनों पति-पत्नी को, एक दलित समाज से आए ईमानदार अफसर की हत्या करने के अपराध में फांसी दिलाने की कसम खाई थी। आज विडंबना देखिए, उसी लवली आनंद को लालू यादव की पार्टी, राजद, ने मधेपुरा या सुपौल से आगामी चुनावों लोकसभा के लिए अपना उम्मीदवार बनाने का निश्चय किया है।
क्या जनता इतनी भुलक्कड़ है या स्वच्छ राजनीति की बात करने वाले ये नेता ?

रविवार, 8 मार्च 2009

क्या कभी स्वर्ग में महिला का राज सुना है ?

आठ मार्च, महिला दिवस। सभी खुश हैं जैसे किसी लुप्तप्राय प्रजाति को बचाने के लिए प्रयास किया जा रहा हो। वे और भी आह्लादित हैं जिनके नाम पर आज का दिन मनाया जा रहा है।
आश्चर्य होता है, दुनिया के आधे हिस्से के हिस्सेदारों के लिए, उन्हें बचाने के लिए, उन्हें पहचान देने के लिए, उनके हक की याद दिलाने के लिए, उन्हें जागरूक बनाने के लिए, उन्हें उन्हींका अस्तित्व बोध कराने के लिए एक दिन, 365 दिनों में सिर्फ एक दिन निश्चित किया गया है। इस दिन वे तथाकथित समाज सेविकाएं भी कुछ ज्यादा मुखर हो जाती हैं, मीडिया में कवरेज इत्यादि पाने के लिए, जो खुद किसी महिला का सरेआम हक मार कर बैठी होती हैं। पर समाज ने, समाज में उन्हें इतना चौंधिया दिया होता है कि वे अपने कर्मों के अंधेरे को न कभी देख पाती हैं और न कभी महसूस ही कर पाती हैं। दोष उनका भी नहीं होता, आबादी का दूसरा हिस्सा इतना कुटिल है कि वह सब अपनी इच्छानुसार करता और करवाता है। फिर उपर से विडंबना यह कि वह एहसास भी नहीं होने देता कि तुम चाहे कितना भी चीख-चिल्ला लो, हम तुम्हें उतना ही देगें जितना हम चाहेंगं।
ऐसा भी नहीं है कि महिलाएं उद्यमी नहीं हैं, लायक नहीं हैं, मेहनती नहीं हैं। उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। पर पुरुष वर्ग ने बार-बार, हर बार उन्हें दोयम होने का एहसास करवाया है। आज सिर्फ माडलिंग को छोड दें, हालांकि वहां और बहुत से तरीके हैं शोषण के, तो हर जगह महिलाओं का वेतन पुरुषों से कम है। हो सकता है इक्की दुक्की जगह इसका अपवाद हो।
इतिहास को छोड़ पौराणिक ग्रंथ इसके गवाह हैं कि जब-जब पुरुष को महिला की सहायता की जरूरत पड़ी है उसने उसे सिर-आंखों पर बैठाया है, मतलब निकलते ही तू कौन तो मैं कौन?
देवता, चाहे कल्पना हो चाहे हकीकत, जो अपने आप को बहुत दयालू, न्यायप्रिय, सबका हित करने वालों की तरह पेश करती आये हैं, उन पर जब-जब मुसीबतें पड़ीं उन्होंने एकजुट हो कर शक्ति रूपी नारी का आवाहन किया पर मुसीबत टलते ही उसे पूज्य बना कर एक कोने में स्थापित कर दिया। कभी सुना है कि स्वर्ग में किसी महिला का राज रहा हो। इस धरा पर माँ जैसा जन्मदाता, पालनहार, ममतायुक्त, गुरू जैसा कोई नहीं है फिर भी अधिकांश माओं की हालत किसी से छिपी नहीं है।
आज के दिन का नामकरण अमेरिका में घटी एक घटना से हुआ। जो तथाकथित रूप से दुनिया का सबसे ज्यादा सम्पन्न, शिक्षित, न्यायप्रिय और सर्व साधन सम्पन्न देश है। वहां महिलाओं को अपने हितों के लिए लड़ना पड़ा। तो बाकि जगहों की क्या कहें।
होना तो यह चाहिए कि महिलाएं खुद इस दिन का बहिष्कार कर यह जतातीं कि जब पुरुषों ने अपने लिए कोई दिन निश्चित नहीं किया तो हमें क्यों एक दिन समर्पित कर एहसान जता रहे हो। पर ऐसा कैसे हो। इस एक दिन के बहाने, एक और दिन मिल जाता है, पांच सितारा होटलों में, लज़ीज़ व्यंजनों की महक लेते हुए घड़ियाली आंसू बहाने का। यहां इकठ्ठा बहूरूपिए कभी खोज-खबर लेते हैं, सिर पर ईंटों का बोझा उठा मंजिल दर मंजिल चढती रामकली की। अपने घरों में काम करतीं, सुमित्रा, रानी, कौशल्या, सुखिया की। कभी सोचा है तपती दुपहरी में खेतों में काम करती रामरखिया के बारे में। कभी ध्यान दिया है दिन भर सर पर सब्जी का बोझा उठाए घर-घर घूमती आसमती पर।
नहीं ! क्योंकि उससे अखबारों में सुर्खियां नहीं बनतीं, टी.वी. पर चेहरा नज़र नहीं आता। ऐसा यदि करना पड़ जाता है तो पहले कैमरे और माईक का इंतजाम होना जरूरी होता है। ऐसे दिखावे जब तक खत्म नहीं होंगें, महिला जब तक महिला का आदर करना नहीं शुरु करेगी तब तक चाहे एक दिन इनके नाम करें चाहे पूरा साल, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

बुधवार, 4 मार्च 2009

तोप का लायसेंस

संता ने हथियारों के लायसेंस देने वाले दफ्तर में तोप के लिये अर्जी लगाई। वहां से उसे तुरंत बुलावा आया। जैसे ही संता वहां पहुंचा, वहां के सबसे बड़े अधिकारी ने उससे पूछा, कि क्या तुमने तोप लेने के लिए अर्जी दी है? क्या करोगे तोप का? तुम्हें मालुम नहीं नागरिकों को ऐसे हथियार नहीं दिए जाते?
मालुम है सरकार। पर पिछले साल अपनी लड़की की शादी में पांच बोरे चीनी के लिए अर्जी दी थी तो मुश्किल से एक बोरी मिली थी। अब मुझे बंदूक की जरूरत है तो मैने सोचा तोप की अर्जी दुंगा तब बंदूक तो मिल ही जाएगी।
संता ने मासुमियत से जवाब दिया।
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संता की पत्नी ने विज्ञापन पढा "विज्ञान का चमत्कार आप सबको देखें पर आप को कोई ना पहचान पाए, तुरंत मंगाएं, सीमित स्टाक। पैसे अग्रिम भिजवाएं।"
इसके पहले कि पड़ोसन को पता चले उसने तुरंत पैसे भिजवा दिये। चार दिन बाद एक पार्सल भी आ गया, खोल कर देखा तो बुरका निकला।

मंगलवार, 3 मार्च 2009

जानवरों की कुछ विस्मित करती जानकारियाँ

हम मनुष्य अपने संसार में अपने में ही खोए रहते हैं। पर जब हमें अन्य जीव-जन्तुओं और उनकी क्षमताओं के बारे में जानकारियां मिलती हैं तो दांतो तले उंगली दबाने के सिवा और कुछ नहीं सूझता। ऐसे ही कुछ तथ्य दे रहा हूं। देखिए दांतों तले उंगली जाती है कि नहीं : -
1, एक छोटी सी चींटी अपने वजन का 30गुना भार उठा लेती है और अपने वजन का 50गुना भार खींच कर अपने बिल तक ले जा सकती है। क्या हम आप अपने द्वारा इसकी कल्पना भी कर सकते हैं ?
2, नीली व्हेल की सीटी की आवाज पानी में मिलों तक सुनाई पड़ती है। यह किसी भी जानवर के द्वारा उत्पन्न ध्वनी से तेज और तीखी होती है।
3, मगरमच्छ कुछ चबा नहीं सकता पर उसका पाचन रस इतना तेज होता है कि वह लोहे की कील को भी हजम कर सकता है।
4, कुत्तों में हम मनुष्यों से 40गुना ज्यादा सूंघने की क्षमता होती है।
5, जिराफ की जीभ एक से ड़ेढ फुट लम्बी होती है।
6, शेर जैसा ताकतवर और तेज जानवर 24 में 20घंटे आराम ही करता रहता है। ज्यादातर शिकार शेरनी के द्वारा किया जाता है पर खाने में अपने बच्चों से भी आगे सिंहराज रहते हैं।

रविवार, 1 मार्च 2009

महाबलीपुरम में क्यूं नहीं हैं गणेश जी की प्रतिमाएँ

जैसा कि सुब्रमणियन जी ने बताया कि महाबलीपुरम के शिव मंदिरों में गणेश जी की प्रतिमा नहीं मिलती तो मेरे ख्याल से इसके लिये शायद वह पौराणिक घटना जिम्मेवार हो सकती है जिससे कार्तिकेय जी नाराज हो गये थे। कथा तो बहुत से लोगों को मालुम होगी फिर भी प्रसंगवश दिये दे रहा हूं :-
पुराणों के अनुसार एक बार कार्तिकेय और गणेश जी में इस बात पर बहस हो गयी कि उन दोनों में कौन श्रेष्ठ तथा माता-पिता को ज्यादा प्रिय है। फैसला करवाने दोनों भाई शिव जी तथा माता पार्वती जी के पास पहुंचे और इस गुत्थी को सुलझाने के लिये कहा। शिव जी तथा मां पार्वती दोनों पेशोपेश में पड़ गये फिर भी उन्होंने एक रास्ता निकाला और कहा कि जो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा पहले आएगा वही श्रेष्ठ कहलायेगा। इतना सुनते ही कार्तिकेय जी अपने वाहन मयूर पर सवार हो निकल पड़े। इधर गणेश जी कभी अपने भारी भरकम शरीर को देखें और कभी अपने वाहन छोटे से चूहे को, जिस पर सवार हो पूरी यात्रा करने में उन्हें महिनों लग जाने थे। तभी उनकी तीव्र बुद्धी ने उन्हें एक मार्ग सुझाया कि सारे ब्रह्मांड़ से बड़ा और श्रेष्ठ मां-बाप का पद होता है। फिर क्या था उन्होंने झट अपने माता-पिता की सात प्रदक्षिणाएं कीं और हाथ जोड़ दोनों की स्तुति कर उनके चरणों में बैठ गये। उनकी इस चतुराई से दोनों जने बहुत खुश हुए और उन्हें श्रेष्ठ होने का पुरस्कार प्रदान कर दिया।
उधर जब पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा कार्तिकेय लौटे तो उन्हें इस बात की जानकारी से बहुत दुख हुआ और वे नाराज हो विंध्य पर्वत के पार कभी भी लौट कर ना आने की कसम ले चले गये। उनके इस तरह नाराज हो चले जाने से अब तक दोनों भाईयों की बहस को बच्चों की झड़प मानने वाले शिव तथा पार्वती जी ने बात की गंभीरता को समझा और वे तुरंत अपने बड़े बेटे को मनाने निकल पड़े, पर तब तक बात बहुत बिगड़ चुकी थी। कार्तिकेय को न मानना था और न वह माने। हां उन्होंने अपने माता-पिता की बात रखते हुए अपनी नाराजगी तो दूर कर ली और पर साथ ही यह भी कहा कि मैं तो कैलाश नहीं आउंगा पर आप मुझसे मिलने इधर विंध्य पार जरूर आते रहें। तब से ही दक्षिण में कार्तिकेय जी, जिन्हें वहां मुरुगन जी के नाम से भी जाना जाता है, के मंदिरों की बहुतायद है।
हो सकता है कि यही कारण हो जो यहां के मंदिरों में गणेश जी की प्रतिमाएं नहीं पायी जातीं।
* एक छोटी सी जिज्ञासा, यदि ऐसा हुआ था तो क्या यह कार्तिकेय जी, जिन्होंने माता-पिता की आज्ञा को शिरोधार्य कर उनके आदेश को सर्वोपरि माना, उनका रूठना क्या जायज नहीं था ?
पर ऐसा भी हो सकता है कि अपने-अपने देवों को प्रमुखता देने के लिये भक्तों ने अपनी-अपनी तरफ से कथाएं गढ ली हों। ऐसा पाया भी गया है और इसकी संभावना भी बहुत है।

विशिष्ट पोस्ट

"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...