जल प्रलय एक ऐसी घटना, जिसका जिक्र वेद, कुर्आन तथा बाईबिल में है। तीनों ग्रन्थों का दुनिया के अलग-अलग धर्मों और क्षेत्रों से संबंध है फिर भी तीनों ग्रन्थों में इसके ब्योरे में इतनी समानता है कि विश्वास हो जाता है कि ऐसी घटना जरूर हुई होगी।
पहले वेद की कथा को देखें तो इसमें मनु को प्रभू ने स्वप्न में निर्देश दिये कि आज से सातवें दिन सारी पृथ्वी जलमग्न हो जायेगी तुम सज्जनों के साथ नाव में बैठ जाना। मनु ने कहना मान कर तीन सौ हाथ लंबी, पचास हाथ चौड़ी और तीन सौ हाथ गहरी नौका बनाई और समस्त पशु, पक्षियों, जीव, जंतुओं के जोड़ों और अपने कुटुंब के साथ उसमें बैठ कर प्रभू के ध्यान में लीन हो गये। चालीस दिनों तक पानी बरसता रहा, सारी धरती पानी में डूब गयी सारे समुंद्र एक हो गये। पर प्रभू की कृपा से मनु और उनके साथी बच गये और धरती पर फिर से जीवन शुरु हो सका।
बाइबिलके अनुसार नोहा को ईश्वर ने कहा कि सारे मनुष्यों का अंत आ चुका है उनके अत्याचार से पृथ्वी त्रस्त है। मैं उन्हें नष्ट करने जा रहा हूं । तुम अपने लिये एक नौका तैयार करो जिसकी लंबाई तीन सौ हाथ, चोड़ाई पचास हाथ और ऊंचाई तीस हाथ हो, उसमें तीन खंड़ हों। तुम उसमें अपनी पत्नि, पुत्र और पुत्रों की पत्नियों तथा हर जीव-जंतुओं की प्रजातियों में से दो-दो को अपने साथ ले लेना। नोह ने ऐसा ही किया। उसके बाद ऐसा हुआ कि समुद्र के सारे स्रोत फूट पड़े, आकाश मानो फट पड़ा हो, चालीस दिन और चालीस रातों तक बरसात होती रही। सारी सृष्टि नष्ट हो गयी सिर्फ नोहा और उसके साथी बच पाये। उनकी नौका अरारात की पहाड़ियों पर टिक गयी। वहां से उसने एक कबूतर को छोड़ा ताकि पता लग सके कि पानी घटा कि नही। जब पृथ्वी बिल्कुल सूख गयी तब सारे जने बाहर आये और धरती पर फिर से जीवन लौट सका।
कुर्आन मे भी इसी तरह की कथा मिलती है। उसके अनुसार वाणी की गयी नूह कि ओर कि तेरी कौम में कोई ईमान नहीं लायेगा, मात्र उन्हें छोड़ जो ईमान ला चुके हैं। इसलिये जो दुर्जन हैं वे अवश्य जलमग्न कर दिये जायेंगे। तू हमारी देख-रेख में एक नौका बना। उसमें प्रत्येक प्रजाति के जानवारों के नर-मादा के जोड़े सवार कर और उन्हें भी साथ ले जो ईमान लाये। नूह ने नौका तैयार की। तभी जल उबलने लगा, पहाड़ जैसी मौजें उठने लगीं। सारी धरती डूब गयी। फिर आदेश हुआ कि हे पृथ्वी अपना जल पी जा और हे आकाश थम जा। तुरंत जल घट गया। नौका जूदी पर्वत पर टिक गयी। फिर सबको उतरने का आदेश हुआ। धरती फिर गुलजार हो गयी।
यहां उल्लेखित जूदी पहाड़ी अरारात पर्वत का ही एक हिस्सा है, जो इराक के आर्मीनिया क्षेत्र में स्थित है।
इस प्रकार देखा जाये तो हम पाते हैं कि जल-प्रलय का विवरण तीनों धर्म-ग्रन्थों मे करीब-करीब एक जैसा है जो इस तरफ इशारा करता प्रतीत होता है कि ऐसी कोई घटना जरूर हुई होगी। संसार का भी ऐसे ही नवीनीकरण होता रहता होगा।
पहले वेद की कथा को देखें तो इसमें मनु को प्रभू ने स्वप्न में निर्देश दिये कि आज से सातवें दिन सारी पृथ्वी जलमग्न हो जायेगी तुम सज्जनों के साथ नाव में बैठ जाना। मनु ने कहना मान कर तीन सौ हाथ लंबी, पचास हाथ चौड़ी और तीन सौ हाथ गहरी नौका बनाई और समस्त पशु, पक्षियों, जीव, जंतुओं के जोड़ों और अपने कुटुंब के साथ उसमें बैठ कर प्रभू के ध्यान में लीन हो गये। चालीस दिनों तक पानी बरसता रहा, सारी धरती पानी में डूब गयी सारे समुंद्र एक हो गये। पर प्रभू की कृपा से मनु और उनके साथी बच गये और धरती पर फिर से जीवन शुरु हो सका।
बाइबिलके अनुसार नोहा को ईश्वर ने कहा कि सारे मनुष्यों का अंत आ चुका है उनके अत्याचार से पृथ्वी त्रस्त है। मैं उन्हें नष्ट करने जा रहा हूं । तुम अपने लिये एक नौका तैयार करो जिसकी लंबाई तीन सौ हाथ, चोड़ाई पचास हाथ और ऊंचाई तीस हाथ हो, उसमें तीन खंड़ हों। तुम उसमें अपनी पत्नि, पुत्र और पुत्रों की पत्नियों तथा हर जीव-जंतुओं की प्रजातियों में से दो-दो को अपने साथ ले लेना। नोह ने ऐसा ही किया। उसके बाद ऐसा हुआ कि समुद्र के सारे स्रोत फूट पड़े, आकाश मानो फट पड़ा हो, चालीस दिन और चालीस रातों तक बरसात होती रही। सारी सृष्टि नष्ट हो गयी सिर्फ नोहा और उसके साथी बच पाये। उनकी नौका अरारात की पहाड़ियों पर टिक गयी। वहां से उसने एक कबूतर को छोड़ा ताकि पता लग सके कि पानी घटा कि नही। जब पृथ्वी बिल्कुल सूख गयी तब सारे जने बाहर आये और धरती पर फिर से जीवन लौट सका।
कुर्आन मे भी इसी तरह की कथा मिलती है। उसके अनुसार वाणी की गयी नूह कि ओर कि तेरी कौम में कोई ईमान नहीं लायेगा, मात्र उन्हें छोड़ जो ईमान ला चुके हैं। इसलिये जो दुर्जन हैं वे अवश्य जलमग्न कर दिये जायेंगे। तू हमारी देख-रेख में एक नौका बना। उसमें प्रत्येक प्रजाति के जानवारों के नर-मादा के जोड़े सवार कर और उन्हें भी साथ ले जो ईमान लाये। नूह ने नौका तैयार की। तभी जल उबलने लगा, पहाड़ जैसी मौजें उठने लगीं। सारी धरती डूब गयी। फिर आदेश हुआ कि हे पृथ्वी अपना जल पी जा और हे आकाश थम जा। तुरंत जल घट गया। नौका जूदी पर्वत पर टिक गयी। फिर सबको उतरने का आदेश हुआ। धरती फिर गुलजार हो गयी।
यहां उल्लेखित जूदी पहाड़ी अरारात पर्वत का ही एक हिस्सा है, जो इराक के आर्मीनिया क्षेत्र में स्थित है।
इस प्रकार देखा जाये तो हम पाते हैं कि जल-प्रलय का विवरण तीनों धर्म-ग्रन्थों मे करीब-करीब एक जैसा है जो इस तरफ इशारा करता प्रतीत होता है कि ऐसी कोई घटना जरूर हुई होगी। संसार का भी ऐसे ही नवीनीकरण होता रहता होगा।
9 टिप्पणियां:
अपुन नही थे पर रोचक कहानी लगी जी . धन्यवाद.
चलिए एक कथा तो है सर्व धर्म समभाव कथा .
बहुत जानकारी परक कहानी सुनाई आपने.
रामराम.
अरे वाह, फ़िर से ऎसा होने के आसार दिख रहे है, बहुत ही सुंदर कथा कही आप ने.
धन्यवाद
आपने यह अलग सी कथा सुनायी -अब कथा के पीछे की कथा सुने -यह प्रलय की घटना इराक़ के आस पास ही घटी थी -कैस्पियन सागर के पास और बचे खुंचे लोगों का विस्थापन और प्रवास सुदूर भौगोलिक खंडों में समयांतराल से होता गया -किंतु ये लोकाख्यान बने रहे और यूरोपीय टोली ने कालांतर के अपने धर्म बाईबिल में इसे जोड़ा ,जर्मनी की और गयी टोली ने इसे गिल्गामेश की कथा के रूप में जाना और भारत की और मुडी टोली ने इसे अपने पुराख्यानों में सम्मिलित किया ,इसी टोली के एक दूसरे कुनबे ने जो अरब देशों के आस पास रह गया ने इसे बहुत बाद के धर्म -इस्लाम में भी प्रविष्ट कर लिया ! यह कहानी यह भी बताती है कि भले ही हम ईसाईयों ,मुसलामानों और हिन्दुओं में बटे हों हमारे पुरखे कभी एक ही थे और उन्होंने उस जल प्रलय का दंश एक साथ भोगा था ! घटना एक ही है मगर दिक् काल के भेदों ने इसमें थोड़ी विभिन्नताएं भी उत्पन्न कर दीं जैसे हम आज अलग अलग कौमों में बट गये हैं !
हमने सुना है कि आजकल जहाँ भूमध्य सागर है वहाँ कभी धरती थी और उसके समुद्र तल से नीचा होने के कारण वर्तमान जिब्राल्टर जलसन्धि की जगह से समुद्र का पानी फूट पडा था . वहीं से मानव सभ्यता सारी पृथ्वी पर फैली इसीलिए उसे शायद भूमध्य कहा गया है .
रोचक जानकारी है यह
सच बहुत ही मह्त्वपूर्ण बात बतायी आपने!
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चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com
सच मै यह अनोखा बदला ही तो है सुबह के दस बार आ गये इस लेख को पढने के वास्ते, ओर आप ने कल की जल-प्रलय ही मचाई है, भाईया अब ज्यादा न डराओ, मुझे लगता है आप से गलती से बटन दब गया.
धन्यवाद...:)
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