बुधवार, 2 अगस्त 2017

"महामृत्युंजय मंत्र" में खरबूजे का उल्लेख !

दो दिन पहले यहीं भगवान् शिव के अति शक्तिशाली  "महामृत्युंजय मंत्र" का उल्लेख करने का साहस किया था। इस मंत्र में खरबूजे के फल को विशेष स्थान प्रदान किया गया है। जहां से इस पवित्र मंत्र के भावार्थ का ज्ञान हुआ, वहाँ इतने सारे फलों के होते खरबूजा ही क्यों, इस प्रश्न का समाधान नहीं हो पाया ! एक बार हिमाचल प्रवास के दौरान एक विद्वान पंडित जी से बात हुई तो उन्होंने इसका समाधान किया था .....

हमारे ग्रंथों में उल्लेखित मंत्रों में सबसे शक्तिशाली मंत्र शिवजी का "महामृत्युंजय मंत्र" है। आस्था है कि इसका जाप करने से अकाल मृत्यु टल जाती है।    

"ओ3म् त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।     
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माsमृतात् ।।"

भावार्थ :- हम लोग, जो शुद्ध गंधयुक्त शरीर, आत्मा, बल को बढाने वाला रुद्र्रूप जगदीश्वर है, उसी की स्तुति करें। उसकी कृपा से जैसे खरबूजा पकने के बाद लता बंधन से छूटकर अमृत तुल्य होता है, वैसे ही हम लोग भी प्राण और शरीर के वियोग से छूट जाएं। लेकिन अमृतरूपी मोक्ष सुख से कभी भी अलग ना होवें। हे प्रभो! उत्तम गंधयुक्त, रक्षक स्वामी, सबके अध्यक्ष हम आपका निरंतर ध्यान करें, ताकि लता के बंधन से छूटे पके अमृतस्वरूप खरबूजे के तुल्य इस शरीर से तो छूट जाएं, परंतु मोक्ष सुख, सत्य धर्म के फल से कभी ना छूटें।

सोचने की बात यह है कि इतने प्रकार के फलों के होने के बावजूद मंत्र में खरबूजे का ही चयन क्यों किया गया। इसके बारे में यजुर्वेद  में विस्तार से बताया गया है कि खरबूजे के विशिष्ट गुणों के कारण उसे यह सम्मान खरबूजा जब तक कच्चा रहता है तब तक बेल से अलग नहीं होता। जब वह पक जाता है तो उसकी सुगंध दूर-दूर तक फैल जाती है। उसकी मधुरता का जवाब नहीं होता। इसका चौथा गुण यह है कि वह दूसरे खरबूजे को देख रंग बदल लेता है। पक जाने पर जब वह बेल से अलग होता है तो बेल का कोई भी रेशा उसके साथ नहीं रहता। पक जाने पर वह अपने अंदर के बीजों को भी खुद से अलग कर देता है।
प्राप्त हुआ है।

ठीक उसी तरह भक्त परमात्मा से प्रार्थना करता है कि हे देव, मुझे अकाल मृत्यु से दूर रखना, मेरे गुणों की सुगंध भी दूर-दूर तक फैले, मुझमें भी सदा औरों के लिए मधुरता यानि प्रेम बना रहे, मेरे गुणों से और लोग भी गुणी बनें, मेरे अंदर कभी दुर्गुण घर ना करें और जब मैं इस संसार को छोड़ कर जाऊं तो इसका मोह मुझे ना व्यापे और हे प्रभू आप से विनती है कि अपने से मुझे कभी दूर ना करें या रखें।

संकलन में या लिखने में कोई त्रुटि रह गयी हो तो क्षमा चाहूंगा।
#हिन्दी_ब्लागिंग 

2 टिप्‍पणियां:

Digvijay Agrawal ने कहा…

वाह...
नवीन व्याख्या
सोचा न था
ऐसा भी कुछ अर्थ भी हो सकता है
आभार....

Digvijay Agrawal ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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