हमारा देश विचित्रताओं से भरा पड़ा है। तरह-तरह के धार्मिक स्थान, तरह-ी तरह के लोग, तरह-तरह के मौसम। यदि अपनी सारी जिंदगी भी कोई इसे समझने, घूमने में लगा दे तो भी शायद पूरे भारत को देख समझ ना पाये। यहां ऐसे स्थानों की भरमार है कि उस जगह की खासियत देख इंसान दांतों तले उंगली दबा लेता है। ऐसा ही एक अद्भुत स्थल है, हिमाचल के कुल्लू क्षेत्र में स्थित बिजलेश्वर महादेव, जिनके दर्शन करते ही आँखें नम हो जाती हैं, मन भाव-विभोर और जिह्वा एक ही वाक्य उच्चारण कराती है, "त्वं-शरणम्" ..........................सावन के पावन माह पर शिव जी से संबंधित एक लेख का पुन: प्रकाशन
#हिन्दी_ब्लागिंग
हिमाचल, देवभूमि, जहां के कण-कण में देवताओं का निवास है। प्रकृति ने दोनों हाथों से बिखेरी है यहाँ सुंदरता। भले ही कश्मीर को देश-विदेश में ज्यादा जाना जाता हो,पर हिमाचल उससे किसी भी दृष्टिकोण से कम नहीं है। जितना यह प्रदेश खुद सुंदर है उतने ही यहां के लोग सरल, सीधे, निष्कपट, मिलनसार और सहयोगी स्वभाव वाले हैं। शायद इसी लिए पृथ्वी का यह हिस्सा देवताओं को भी प्रिय रहा है। उनसे संबंधित गाथाएं और एक से बढ़ कर एक स्थान यहां देखने को मिलते हैं। कुछ तो इतने हैरतंगेज हैं कि बिना वहाँ जाए-देखे विश्वास ही नहीं होता !
श्री मक्खन महादेव |
शिवलिंग व पुजारी जी |
मणिकर्ण |
मथान के एक तरफ़ व्यास नदी की घाटी है, जिस पर कुल्लु-मनाली इत्यादि शहर हैं तथा दूसरी ओर पार्वती नदी की घाटी है जिस पर मणीकर्ण नामक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी है। उंचाई पर पहुंचने में थकान और कठिनाई जरूर होती है पर जैसे ही यात्री चोटी पर स्थित वुग्याल मे पहुंचता है उसे एक दिव्य लोक के दर्शन होते हैं। एक अलौकिक शांति, शुभ्र नीला आकाश, दूर दोनों तरफ़ बहती नदियां, गिरते झरने, आकाश छूती पर्वत श्रृंखलाएं किसी और ही लोक का आभास कराती हैं। जहां आंखें नम हो जाती हैं, हाथ जुड जाते हैं, मन भावविभोर हो जाता है तथा जिव्हा एक ही वाक्य का उच्चारण करती है - त्वं शरणं।
मंदिर |
कण-कण मे प्राचीनता दर्शाता मंदिर, पूर्ण रूप से लकडी का बना हुआ है। चार सीढियां चढ़, जहां परिक्रमा करने के लिए करीब तीन फुट का गलियारा भी है, दरवाजे से एक बडे कमरे मे प्रवेश मिलता है, जिसके बाद गर्भ गृह है, जहां मक्खन मे लिपटे शिवलिंग के दर्शन होते हैं। जिसका व्यास करीब 4 फ़िट तथा उंचाई 2.5 फ़िट के लगभग है।
वहां ऊपर पहाड़ की चोटी पर रोशनी तथा पानी का इंतजाम है। आपात स्थिति मे रहने के लिये कमरे भी बने हुए हैं। परन्तु बहुत ज्यादा ठंड हो जाने के कारण रात मे यहां कोई नहीं रुकता है। सावन के महीने मे यहां हर साल मेला लगता है। दूर-दूर से ग्रामवासी अपने गावों से अपने देवताओं को लेकर शिवजी के दरबार मे हाजिरी लगाने आते हैं। वे भोले-भाले ग्रामवासी ज्यादातर अपना सामान अपने कंधों पर लाद कर ही यहां पहुंचते हैं। उनकी अटूट श्रद्धा तथा अटल विश्वास का प्रतीक है यह मंदिर जो सैकडों सालों से इन ग्रामिणों को कठिनतम परिस्थितियों मे भी उल्लासमय जीवन जीने को प्रोत्सहित करता है। कभी भी कुल्लु-मनाली जाना हो तो शिवजी के इस रूप के दर्शन जरूर करें।
घाटी |
पर एक बात जो सालती है मन को कि जैसे-जैसे यहां पहुंचने की सहूलियतें बढने लगी हैं वैसे-वैसे कुछ अवांछनीयता भी वहां स्थान पाने लगी है। कुछ सालों पहले तक चंसारी गांव के बाद मंदिर तक कोई दुकान नहीं होती थी। पर अब जैसे-जैसे इस जगह का नाम लोग जानने लगे हैं तो पर्यटकों की आवा-जाही भी बढ गयी है। उसी के फलस्वरूप अब रास्ते में दसियों दुकानें उग आयीं हैं। धार्मिक यात्रा के दौरान चायनीज और इटैलियन व्यंजनों की दुकानें कुछ अजीब सा भाव मन में उत्पन्न कर देती हैं।
5 टिप्पणियां:
आभार, शास्त्री जी
बहुत ही मनमोहक चित्रण। सुंदर लेखन।
बहुत-बहुत धन्यवाद, श्वेता जी
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : किशोर कुमार और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
हर्षवर्धन जी
आप बुलाएँ मैं ना आउ ऐसा कैसे हो सकता है
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