फेस-बुक की एक पोस्ट में राखी के दिन महिलाओं को मुफ्त में बसों में सफर करने की सहूलियत पर राय जानने को ले कर एक प्रश्न उठाया गया था !..... आ गए, सारे समाज सुधारक, नीतिवान, ज्ञानवान, जनता के हितैषी, और लगे जपने अपनी विरोध की माला ! ऐसे ही लोग महिलाओं की पोस्ट पर "लाइक्स और कमेंट्स" की झड़ी लगा देते हैं। लगता है महिलाओं का इनसे बड़ा पक्षधर और कोई नहीं पर वही लोग एक दिन के लिए महिलाओं को दी गयी कुछ रुपयों की छूट पर खूँटा उखाड़ रहे थे
#हिन्दी_ब्लागिंग
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आज कल फैशन हो गया है, खासकर मीडिया पर, किसी भी काम के विरोध करने का। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिन्हें "अलिफ़ के बे" का भी पता नहीं होता, नाहीं मुद्दे की पूरी जानकारी पर पूर्वाग्रहों से ग्रसित ये लोग भी विरोध करने की हिमाकत कर पिले रहते हैं। अभी एक-दो दिन पहले फेस-बुक पर एक पोस्ट में राखी के दिन महिलाओं को मुफ्त में बसों में सफर करने की सहूलियत पर राय जानने को ले कर प्रश्न था।..... आ गए, सारे समाज सुधारक, दाएं-बाएं चलने वाले, हाशिए पर बैठे, नीतिवान, ज्ञानवान, जनता के हितैषी, और लगे जपने अपनी विरोध की माला ! कोई कह रहा है कि सरकार इस तरह मुफ्तखोरी की लत डाल रही है ! किसी को इसमें राजनितिक चाल दिखाई दे रही थी ! कोई वोट बैंक बढ़ाने की तिकड़म बता रहा था !!
ऐसे ही लोग महिलाओं की पोस्ट पर "लाइक्स और कमेंट्स" की झड़ी लगा देते हैं। लगता है महिलाओं का इनसे बड़ा पक्षकार और कोई नहीं पर आज वही लोग एक दिन के लिए महिलाओं को दी गयी कुछ रुपयों की छूट पर खूँटा उखाड़ रहे हैं। यही लोग जब सरकार सब्सिडी ख़त्म करने की बात करती है तो धरने पर बैठ जाते हैं। दसियों सालों से एक तरह से मुफ्त का गेहूँ-चावल लेने से इन्हें गुरेज नहीं होता ! नालायक लोगों को तरह-तरह की सहूलियतें मिलने पर उसमें इन्हें मुफ्त-खोरी की लत लगती नहीं दिखती ! देश-विरोधी मुहिमों में जुटे लोग जब करोड़ों की संपत्ति डकार जाते हैं तब इनकी जबान पर ताला लग जाता है। पर एक दिन, सिर्फ एक दिन के लिए यदि महिलाओं को यह सहूलियत दे दी जाती है तो ऐसे लोग उसकी प्रशंसा करने की बजाय उसमें भी खामियां ढूंढ अपनी भड़ास निकलने से बाज नहीं आते। वैसे इनको यह भी पता नहीं होगा कि दो-तीन राज्यों में यह छूट वर्षों से मिल रही है और कुछ राज्यों में महिलाओं से आधा किराया लिया जाता है। पर इन लोगों को उससे मतलब नहीं है, इन्हें तो सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना है। उसके पहले ये लोग देखते या सोचते भी नहीं कि इस ज़रा सी छूट से महिलाओं को कितनी ख़ुशी मिलती होगी ! वह बहन भी घर से निकलने की हिम्मत कर लेती होगी जो ज़रा से पैसे खर्च होने की चिंता में अपने भाई या मायके जाने की सोच-सोच कर रह जाती होगी।
मेरा मानना है कि सार्वजनिक स्थान पर कटुता नहीं होनी चाहिए। ब्लागिंग में तो कतई भी नहीं ! कोशिश भी यही रही है, इतने सालों से, पर आज क्षमा चाहता हूँ यदि अति हो गयी हो तो। वैसे बोलने की इतनी आजादी तो शायद ही अपने देश में कभी मिली हो ! फिर वह चाहे आम इंसान हो, बुद्धिजीवी हो, कलाकार हो, फिल्म निर्देशक हो या फिर नेता ही क्यों ना हो ! हर जगह हद पार की जा रही है। ना शर्म है, ना लिहाज है, ना किसी पद की मर्यादा है नाहीं किसी की उम्र की गरिमा की फ़िक्र ! पक्ष-विपक्ष में पहले भी नोक-झोंक होती थी। वाद-विवाद होता था। झड़पें होती थीं। पर आपस में आदर-सम्मान भी था। नैतिकता थी। नेहरू जी के क्या कम विरोधी थे पर तब किसी ने हल्की भाषा का प्रयोग नहीं किया। कठिन समय में सारा देश उनके साथ था। इंदिरा जी के तो शायद सर्वाधिक विरोधी होंगे पर उनके साहस, निडरता तथा देश हित में उठाए गए कदमों की सबने एक स्वर में सराहना की। विरोधी पक्ष के श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने तो उन्हें दुर्गा तक कह डाला था । जहां देश की बात आती थी तो पक्ष-विपक्ष नहीं देखा जाता था लायक आदमी को ही जिम्मेदारी सौंपी जाती थी जैसा इंदिरा जी ने बाजपेयी जी को नेता बना बाहर भेजा था। अच्छे काम की सभी तरफदारी करते थे आज की तरह नहीं कि देश हित में कुछ हो रहा हो तो भी धरना दे कर बैठ जाएं या फिर उसका श्रेय लेने के लिए जनता को बर्गलाएँ।
उस समय, एक-दो दलों को छोड़ दें, तो हर राजनैतिक दल का काम-विचार देश हित के लिए होता था। पर आज पहले मैं, फिर परिवार, फिर जाति, फिर धर्म और फिर यदि कुछ बचे तो देश की तरफ ध्यान जाता है। आज तो कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी से भी हाथ मिलाने से नहीं हिचकते, कीचड़ में लौटने से भी गुरेज नहीं करते ! कई बार तो सोच कर भी डर लगता है कि यदि सेना और न्यायालय ना होता तो....................
वैसे कोशिशें जारी हैं इन पर भी तोहमत लगाने और नीचा दिखाने की ! अब तो जनता जनार्दन पर ही आशा है कि वह अपनी नींद त्यागे, अपने तथाकथित आकाओं की असलियत पहचाने, आँख मूँद कर उसकी बातों में ना आएं, नापे-तौलें फिर विश्वास करें ! जाति-धर्म के साथ-साथ देश की भी सुध ले ! क्योंकि देश है तभी हमारा भी अस्तित्व है !
15 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारतीय छात्र और पूर्ण-अंक “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक धन्यवाद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (07-08-2017) को "निश्छल पावन प्यार" (चर्चा अंक 2698 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
बाई-बहन के पावन प्रेम के प्रतीक रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (07-08-2017) को "निश्छल पावन प्यार" (चर्चा अंक 2698 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
बाई-बहन के पावन प्रेम के प्रतीक रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी
धन्यवाद
sundar post sarthak charcha
शशि जी,
सदा स्वागत है।
bahut sundar..
पधारने के लिए आभार, उपासना जी
नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति गुरूवार 17 अगस्त 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद "http://halchalwith5links.blogspot.in के 762 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।
खेद है आपकी प्रस्तुति आज के अंक में तकनीकी कारणों से प्रकाशित नहीं हो सकी। आगामी किसी अंक में आपकी प्रस्तुति अवश्य समाहित जाएगी। धन्यवाद। सादर।
रविंद्र जी,
कोई बात नहीं, बस स्नेह बना रहे
आसान काम नहीं किसी की मानसिकता बदलना ... बिन पेंदी के लोटे कुछ ज्यादा ही हो गए आजकल
सटीक विचारशील प्रस्तुति
रवीन्द्र जी, धन्यवाद
कविता जी, पता नहीं कैसी कैसी सोच है लोगों की !
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