मंगलवार, 9 जून 2015

सिर्फ विरोध के लिए अच्छी बात को नकारना ......?

छोटे भाई को सुबह-सबेरे सघन नीम के पेड़ों के बीच से गुजरते हुए वहां के शांत और स्वच्छ वातावरण की वायु को फेफड़ों में भरते हुए घर के सामने की पहाड़ी पर सूर्योदय के पहले चढ़ कर वहां प्रकृति के सौंदर्य को आत्मसात करते हुए कुछ समय व्यतीत करना था। पर उसे यह बात नागवार गुजरी। क्योंकि उसे मालुम था कि इस दिनचर्या को उसके बड़े भाई ने वर्षों से अपना रखा है।  उसे लगा ऐसा करने पर तो बड़े भाई को और भी यश मिल जाएगा और लोग उसकी हंसी उड़ाएंगे !       

कुछ सालों पहले जगत के सुंदरतम हिस्से में भारत लाल नाम के एक सज्जन पुरुष सपरिवार रहा करते थे। भरा-पुरा परिवार था। धन-धान्य, ऐशो-आराम, रूपये-पैसे की कोई कमी नहीं थी। ईश्वर की उनपर अटूट कृपा थी।  अपने इलाके के सबसे समृद्ध परिवारों में से उनका परिवार था। उनके व्यवसाय की साख दूर-दूर तक फैली हुई थी। बस एक ही कमजोरी थी उनमें कि वे किसी पर भी तुरंत विश्वास कर लेते थे। इसी  कारण बार-बार ठगे, लुटे जाते रहे थे। पर आदत नहीं बदलनी थी सो नहीं बदली। उसी का परिणाम था कि उनके भोलेपन का फायदा उठा बाहर से आए एक परिवार ने तो उनकी सारी संपत्ति पर ऐसा हक़ जताया कि वह ही मालिक कहलाने लगा। पर आपसी कलह में उनका तो सत्यानाश हो गया पर भारत जी को भी कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि एक और चतुर और कपटी इंसान ने उस कलह का फायदा उठा सारी जायदाद पर अपना मालिकाना हक़ जमा लिया था । 

भारत जी के दो बेटे थे, जो जवान हो चुके थे और अपने खिलाफ हुए षड्यंत्र को देखते-समझते अंदर ही अंदर आक्रोशित रहा करते थे। आखिर उनका विद्रोह रंग लाया और उन्होंने घुसपैठिए को अपने घर से मार भगाया। पर दुश्मन जाते-जाते ऐसी चाल चल गया कि वर्षों से एकजुट परिवार दो हिस्सों में बंट गया। दिलों में ऐसी दरार पड गयी कि एक दूसरे को देखना भी गवारा नहीं रहा। इसी गम में भारत जी चल बसे।  उनके जाने के बाद सदा से ईर्ष्या में डूबे एक पडोसी ने छोटे भाई पर डोरे डाल उसे अपने परिवार से ऐसा विमुख कर दिया कि उसे बड़े भाई की अच्छी बातें भी अपने विरुद्ध लगने लगीं। संपत्ति के एक साथ जुड़े होने की वजह से कहीं और न जा सकने की मजबूरी थी । सो वहीँ रह कर अपनी पहचान बनाने की हवस में वह हर उस बात का उलट करने लगा जिसे बडा भाई अपनाता या करता था। दोनों जानते थे कि उनकी आपसी रंजिश का फायदा दूसरे लोग उठा रहे हैं, पर कुछ गलतफहमियां, कुछ अहम, कुछ स्वार्थ, कुछ अपनी मतलब-परस्ती सदा आड़े आ जाते थे उनके आपसी मेल-जोल को स्थाई जामा पहनाने के।

समय ऐसे ही गुजरता गया। बड़े के लाख समझाने और कोशिशों के बावजूद छोटे ने कभी भी आपसी रंजिशों को ख़त्म करने की सलाह नहीं मानी और इसी कारण उत्पन्न तनाव के चलते अस्वस्थ रहने लगा। पहले तो घरेलु दवा-दारु अपनाए गए पर कुछ लाभ न होता देख विशेषज्ञों की राय ली गयी। उन्होंने परिक्षण पश्चात उसे अपनी सलाह पर सख्ती से अमल करने की सलाह दी। उपचार के चलते छोटे को सुबह-सबेरे सघन नीम के पेड़ों के बीच से गुजरते हुए वहां के शांत और स्वच्छ वातावरण की वायु को फेफड़ों में भरते हुए घर के सामने की पहाड़ी पर सूर्योदय के पहले चढ़ कर वहां प्रकृति के सौंदर्य को आत्मसात करते हुए कुछ समय व्यतीत करना था। जिससे तनाव को कम करने में सहायता मिलती। पर उसे यह बात नागवार गुजरी। क्योंकि उसे मालुम था कि इस दिनचर्या को उसके बड़े भाई ने वर्षों से अपना रखा है।  उसे लगा ऐसा करने पर तो बड़े भाई को और भी यश मिल जाएगा। लोग उसकी हंसी उड़ाएंगे। बात उसके भले की ही थी पर उसका अहम उसे बड़े भाई का अनुसरण करने से रोक रहा था। ऐसा करना उसे अपनी हेठी करवाना लग रहा था।

बड़े भाई को पता चला तो उसने फिर एक बार समझाया कि सेहत सब चीजों से सर्वोपरि है। तन-मन ठीक रहेगा तभी बाकी चीजें भी चल पाएंगी पर छोटे के कानों पर कोई जूं नहीं रेंगी, और तो और सुनने में आया है कि उसने उस तरफ खुलने वाले खिड़की-दरवाजे भी बंद करवा दिए हैं और घर में सख्त हिदायत दे दी है कि उस तरफ कोई झांके भी नहीं।
अब कोई ऐसे आदमी के लिए क्या कर सकता है ! सिर्फ दुआ के अलावा !!         

3 टिप्‍पणियां:

अन्तर सोहिल ने कहा…

प्रतीकात्मक पोस्ट, अच्छी लगी
धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सोहिल जी,
ऐसे ही स्नेह बना रहे

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

ये कथा वर्तमान के सामाजिक सन्दर्भ से जुड़ती एक उत्तम उपदेशात्मक कथा है। अब से मित्रों से बातचीत में इस कथा का प्रयोग करूँगा। साधुवाद गगन जी।

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