गुरुवार, 20 नवंबर 2014

बाबाओं से कब बाज आएंगे हम

अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, तकरीबन साल भर पहले की ही बात है जब एक बाबा के कारण देश में हंगामा मचा हुआ था। तब भी लोगों को ऐसे तथाकथित संतों से बचने की समझाइश, सोच समझ कर किसी पर विश्वास करने की नसीहत दी गयी थी। पर हुआ कुछ नहीं पहले की तरह ही लोग फिर अपनी नित की परेशानियों, समस्याओं, कष्टों को फौरी तौर से  दूर करने की चाहत के चलते तिकड़मबाजों के चंगुल में फसते चले गए। 

आज फिर एक तथाकथित बाबा को ले कर कोहराम मचा हुआ है। प्रिंट और दृश् मीडिया होड ले रहे हैं उसकी बखिया उधेडने की। पर इसके पहले ढेरों विवादों, दसियों आरोपों के बावजूद उस पर किसी ने ऊंगली उठाने की जहमत या हिम्मत नहीं दिखाई ? कारण साफ है, उस आदमी का रसूख और असीमित जन-सहयोग, जो बाबा के एक इशारे से वोट बैंक बन जाता है, उसे हासिल होती है उच्च पदों पर बैठे हुओं की सरपरस्ती। तो कौन बेवकूफी करेगा बाबा रूपी छत्ते को छेड़ कर मधुमक्खियों के खौफ का सामना करने का। तिकड़मी, मौका-परस्त, बिना जनाधार के धन और बाहुबल से मुखिया बने लोगों की अपनी कुर्सी और सत्ता बचाने की लालसा जन्म देती है ऐसे ही लोलुप लोगों को जो अपनी रोटी सेकने के लिए कुछ भी करने और किसी हद तक जाने को तत्पर रहते हैं और आम इंसान वर्तमान की जद्दोजहद से त्रस्त हो सुखद भविष्य की चाह में इनके मकड़जाल में फसता चला जाता है। 

हमारे देश में परम्परा रही है, मठों, गद्दियों, मढियों की। वर्षों से ऐसे स्थानों से गरीबों, अशिक्षित लोगों, गांववालों के लिए शिक्षा, चिकित्सा तथा कुछ हद तक भोजन की भी व्यवस्था होती रहती थी धार्मिक कर्मकांडों के साथ-साथ। बहुत से सच्चे संतों ने निस्वार्थ भाव से अपना जीवन लोगों की हालत सुधारने में खपा दिया था। पर धीरे-धीरे गांववालों के भोलेपन का फायदा उठा ऐसी बहुतेरी जगहों पर अपना उल्लू सीधा करने वालों ने अपने पैर जमाने शुरु कर दिए। युवा पीढी के कुछ भटके नवजवान भी सहज ढंग से मिलने वाली सहूलियतों के लालच में ऐसे ढोगियों का साथ देने लगे। धीरे-धीरे पुरानी परम्राएं ध्वस्त होती गयीं और ऐसी जगहें असमाजिक तत्वों की गिरफ्त में आ बुराइयों का अड्डा बनती चली गयीं।

इसी संदर्भ में वर्षों पहले की एक सच्ची बात याद आ रही है। तब के कलकत्ता में मेरे कॉलेज में एक लड़का हुआ करता था जो शनैः - शनैः  नेता बनने के पथ पर अग्रसर था। पढ़ाई को छोड़ उसका दिमाग हर चीज में तेज था। उसने कॉलेज में यह फैला दिया था कि उसकी पहुँच विश्वविद्यालय में रसूख वाले लोगों तक है और वह वहाँ कोई भी काम करवा सकता है। काम होने पर ही पैसे लगेंगे न होने की सूरत में सब वापस हो जाएगा।  धीरे-धीरे उसके पास गांठ के पूरे दिमाग के अधूरे छात्रों का जमावड़ा लगने लगा जो किसी भी तरह पास हो डिग्री पाना चाहते थे। परीक्षा ख़त्म होते ही ये उनसे अच्छी-खासी रकम ले अपने घर जा बैठ जाता था। अब सौ-पचास छात्रों में बीस-तीस तो अपने बूते पर किसी तरह पास हो ही जाते थे।  ये उनके पैसे रख बाकियों के लौटा देता था। इस तरह इसने अच्छा-खासा व्यापार शुरू कर रखा था, जिसमें न हरड़ लगती थी नाहीं फिटकरी। पर जैसा कि होता है किसी तरह इसकी पोल खुल गयी, हुआ तो कुछ नहीं पर धंदा बंद हो गया।

ठीक यही कार्य-शैली इन तथाकथित बाबाओं की है। सीधे-साधे लोगों के अंधविश्वास, अकर्मण्यता, मानसिक कमजोरियों, भविष्य के डर, धर्मांधता का पूरा फ़ायदा उठा ये ढोंगी अपना वर्तमान और भविष्य संवारते चले जाते हैं।  बार-बार धोखेबाजों, अवसर परस्तों, ढोगियों द्वारा भोली-भाली जनता को ठगे जाने, उनकी भावनाओं का फायदा उठाने वालों की असलियत सामने आने पर भी ऐसे लोगों की जमात की बढोतरी चिंता का ही विषय है। कब हम समझ पाएंगे कि खुद को भगवान कहलवाने वाले की क्या मानसिकता है, क्या वह इस लायक भी है कि वह इंसान कहलवा सके ? कब हम इस तरह के स्वघोषित "भगवानों" की असलियत जानने की जहमत उठाएंगे, भगवान ही जाने।

5 टिप्‍पणियां:

Manoj Kumar ने कहा…

आदरणीय गगन जी बहुत ही सटीक लिखा है आपने, बहुत दुःख होता है आज के इन बाबाओ की हरकतों को देखकर लेकिन उससे से बड़ा दुःख इस बात का है की देश की जनता इनको भगवान समझकर इनके हौसले और बुलंद कर रही है , अब इस जनता को कौन Samjhaaye भाई लोग आप अपने काम पर ध्यान दो , कर्म करो जिससे आपकी रोजी रोटी चलती क्यों इन बाबाओ के झोल झाल में फसे हुए हो कोई कृपा नही होने वाली जब tak कर्म नही करोगे , कोई शॉर्टकट नही है ! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है अगर आपको अच्छा लगे तो कृपया फॉलो कर हमारा मार्गदर्शन करे !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनोज जी,
मैं तो काफी पहले से आपसे जुड़ा हुआ हूँ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बिल्कुल सटीक ...जब तक इंसान खुद जागृत नहीं होगा ...ये गोरख धंधा यूँ ही चलता रहेगा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (22-11-2014) को "अभिलाषा-कपड़ा माँगने शायद चला आयेगा" (चर्चा मंच 1805) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बाबा लोग जनता को मुर्ख बनाने का सोचते हैं ,और जनता उनके चंगुल में फंसने लिए बेताब !
आईना !

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