गुरुवार, 28 नवंबर 2013

कोलकाता का नेहरु बाल संग्रहालय

पहले पूरे देश की, अब पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता को महलों का शहर भी कहा जाता है।  वैसे तो यहाँ अनगिनत दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें छोटे-बड़े करीब सात संग्रहालय भी शामिल हैं। उन्हीं संग्रहालयों में से एक है पूरी तरह बच्चों को समर्पित जवाहर लाल नेहरु बाल संग्रहालय। मेट्रो रेल का नजदीकी स्टेशन जो कोलकाता के दिल धर्मतल्ला से भवानीपुर की तरफ, 94/1 जवाहर लाल मार्ग पर, विख्यात विक्टोरिया मेमोरियल से कुछ ही दूर मुख्य मार्ग पर ही स्थित है। यहाँ  के लिए देश की पहली मेट्रो रेल का स्टेशन "रविन्द्र सदन" है।  मुख्य मार्ग पर होने की वजह से यहाँ पहुँचने के लिए हर तरह के  आवागमन की सुविधा उपलब्ध है.  
  
मुख्य भवन 
इस म्यूजियम को 1972 में नेहरु जी के जन्म दिवस 14 नवम्बर को पूरी तरह बच्चों को समर्पित किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों को अपनी संस्कृति से परिचित और अवगत कराना। बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी अभिभूत करने वाले इस मनोरंजक स्थल को चार विभागों में बांटा गया है। खिलौनों का खंड, जिसमें देश-विदेश के तरह-तरह के खिलौनों को प्रदर्शित किया गया है। 
खिलौनों की दुनिया 

 दूसरे हिस्से में है गुड़ियों का अद्भुत संसार, जहां तकरीबन 90 देशों की गुड़ियाँ दर्शकों को मोह लेने के लिए सजी खडी हैं। हर देश की गुड़िया अपने देश के सुसज्जित लिबास में नजर आती है।
गुड़ियों का संसार 

फिर आता है सबसे अहम् तीसरा और चौथा भाग, जहां छोटी-छोटी पर बिलकुल सजीव लगती मिट्टी की पुतलियों से पूरी रामायण और महाभारत की कथा को दर्शाया गया है। दोनों महाकाव्यों की प्रमुख घटनाओं को सिद्धहस्त कलाकारों द्वारा अति दक्षता से दर्शाया गया है. ये दोनों भाग किसी को भी सम्मोहित करने का जादू रखते हैं।
रामायण 
महाभारत 

अब तक करोंड़ों देसी-विदेशी लोगों द्वारा देखा और सहारा गया यह संग्रहालय विख्यात समाजसेवी जुगल श्रीमाल जी, जिनका मानना था कि बच्चों को खेल-खेल में या उनकी पसंददीदा अभिरुचि से किसी विषय को ज्यादा अच्छी तरह समझाया जा सकता है बनिस्पत कक्षा में किताबों द्वारा पढ़ाने या समझाने के। यह म्यूजियम उन्हीं की कल्पना का मूर्तिमान रूप है। उन्हीं की प्रेणना से प्रेरित हो कर यह संस्थान देश के पिछड़े इलाकों में कार्यशालाएं लगा कर बच्चों की शिक्षा में भी हाथ बंटाता रहता है। अक्षम पर मेधावी बच्चों को आर्थिक सहायता का भी प्रावधान रखा गया है।

अब जब भी कोलकाता जाना हो तो अन्य दर्शनीय स्थानों के साथ इसे भी देखना ना भूलें। यह सोमवार को छोड़ सप्ताह के बाक़ी दिनों सुबह से शाम तक खुला रहता है। यह दावा है कि आप यहाँ जा "वाह" बोले बिना नहीं रह पाएंगे।       
  

4 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

रामायण और महाभारत के बारे मे बचपन मे दादी की गोदी मे लेटा सुनता रहता था ... इन को समझा इस म्यूजियम मे जा कर ही था ... आप जब जब कलकत्ते का जिक्र करते है न जाने कितनी यादें ताज़ा करवा देते है ... :)

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

सलिल वर्मा जी के अनूठे अंदाज़ मे आज आप सब के लिए पेश है ब्लॉग बुलेटिन की ७०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़िये और आनंद लीजिये |
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन 700 वीं ब्लॉग-बुलेटिन और रियलिटी शो का जादू मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

विभूति" ने कहा…

behtreen....

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