“कमरहट्टी”। बंगाल की राजधानी कोलकाता से कुछ ही दूर चौबीस-परगना जिले के सोदपुर और अगरपाडा कस्बों के बीच स्थित इस जगह से वर्षों संबंध रहा है पर इसके नामकरण का कारण नहीं जाना जा सका।
हर शहर, गांव, कस्बे यहां तक की सडकों, गलियों के नामकरण के पीछे कोई न कोई वजह या कहानी जरूर होती है। जो या तो किसी यादगारिता को बनाए रखने के लिए होती है या फिर कुछ नाम यूंही किसी प्रसंगवस रख दिए जाते हैं। समय के साथ नाम तो याद रह जाता है पर कारण भुला दिया जाता है और एक प्रश्न या विस्मय बोधी चिंह रह जात है, उस नाम और जगह के प्रति।
ऐसा ही एक नाम है “कमरहट्टी”। बंगाल की राजधानी कोलकाता से कुछ ही दूर चौबीस-परगना जिले के सोदपुर और अगरपाडा कस्बों के बीच स्थित इस जगह से वर्षों संबंध रहा है पर इसके नामकरण का कारण नहीं जाना जा सका। अचानक एक दिन इससे संबंधित एक कहानी नजर आई। सोचा बांट लूं।
काफी पुरानी बात है इस जगह रहने वाले लोग बहुत सरल, भोले, विनम्र, दूसरों का आदर करने वाले, अपने मे मग्न रहने के बावजूद बहुत विद्वान हुआ करते थे। इतने की उनकी ख्यति उस समय के विद्वानों के गढ नवद्वीप तक पहुंच गयी। वहां के पंडितों ने सच्चाई जानने के लिए अपना एक प्रतिनिधिमंडल वहां भेजा। गांव वाले भी सारी बात जान गये थे पर संकोचवश वे शास्त्रार्थ करना नहीं चाहते थे नहीं अतिथियों को नीचा दिखाने की उनकी इच्छा थी। इसीलिए उन्होंने सोच विचार कर गांव के एक कुमार नामक युवक को स्त्री रूप धर एक छोटे बच्चे के साथ पंडितों की सेवा के लिए भेज दिया। दूसरे दिन सबेरे ही घर की मुंडेर पर कौवों के एक दल ने कांव-कांव का शोर मचाना शुरु किया तो बच्चे ने अपनी "मां" बने युवक से पूछा कि ये कौवे क्या बोल रहे हैं। उसने कहा कि मैं तो एक अनपढ स्त्री हूं मुझे क्या पता, तुम इन विद्वान पंडितों से पूछ लो। बच्चे ने पंडितों के पास जा कर अपना सवाल दोहराया तो वे बोले कि भोर होने पर काग ऐसे ही चिल्लाते हैं, क्या कहते हैं हमें क्या पता। बच्चा फिर अपनी “मां” के पास आया और बोला मां उन्हें कुछ नहीं पता तुम बताओ ना। बार-बार बच्चे के तंग करने पर उसने संस्कृत में एक श्लोक बना सुना दिया जिसका अर्थ था कि उगते सूर्य से मिटती कालिमा को देख कौवे डर गये हैं कि इससे हमें भी कालिमा समझ कहीं सूर्य खत्म ना कर दें इसी से चिल्ला रहे हैं।
पास ही बैठे नवद्वीप के पंडितों ने जब एक गंवार स्त्री के मुख से ऐसी सुंदर व्याख्या सुनी तो वे आश्चर्य चकित रह गये। उन्होंने उस “स्त्री” से पूछा कि तुम यदि अनपढ हो तो ऐसा श्लोक कैसे रचा? इस पर उसने जवाब दिया कि आपके आने के पहले मैं यहां के पंडितों के यहां काम करती थी। उन लोगों की बात सुन- सुन कर ही थोडा-बहुत सीख लिया है। उसका जवाब सुन पंडितों ने सोचा कि यदि सिर्फ सुन कर यहां की अनपढ नारी इतना ज्ञान रखती है तो यहां के पंडित निश्चित रूप से परम ज्ञानी होंगे। ऐसा सोच वे बिना शास्त्रार्थ किए ही वहां से वापस चले गये।
तभी गांव को धर्म-संकट से बचाने के लिए सबने मिल उस कुमार के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए गांव का नाम कुमार हट्टा यानि कुमार बाजार रख दिया। जो समय के साथ बदल कर कमरहट्टी के रुप में आज भी विद्यमान है।
10 टिप्पणियां:
कमाल है साहब ... मैं अगरपाड़ा मे लगभग १८ साल रहा पर कभी इस बारे मे नहीं सोचा कि पड़ोसी इलाके "कमरहट्टी" का यह नाम क्यों कर पड़ा होगा ... आज आप से इस बारे मे जान कर बहुत अच्छा लगा ... काश कलकत्ता मे रहते हुये कभी आप से संपर्क हुआ होता !
सुंदर, अति सुंदर. नामकरण के पीछे निश्चित ही कुछ कारण होते हैं. आपने ढूंड निकाला. बधाई स्वीकारे
बड़ा ही रोचक नामकरण का कारण...
शिवम जी, पहले सोचा आपको बता दूं, लिखने के साथ ही, फिर रहने दिया। यदि आप ना आते तो जरूर बताता। अच्छा लगता है पुरानी यादों को ताज़ा कर।
सुब्रमनियन जी व प्रवीण जी, आभार।
आज की ब्लॉग बुलेटिन १९ फरवरी, २ महान हस्तियाँ और कुछ ब्लॉग पोस्टें - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
नाम पहली बार सुना ,पर ये तो फिर भी नहीं सोचा कि नाम कैसे पढ़ा...अब तो सोच ही बदल जाएगी ..कुछ अलग सा ...इसलिये ही होगा... :-)
जानकारी के लिए आभार ...
पढ़ा*=पड़ा
अर्चना जी, ऐसी किसी अजीबोगरीब नाम वाली जगह पर रहते हुए वह अजीब नहीं लगता पर नई जगह का नाम यदि अजीब हो तो अजीब सा लगता है। :-)
रोचक जानकारी ...
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