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इस योजना के अंतर्गत बनने वाली इमारतों में वायसराय भवन, जो आज का हमारा राष्ट्रपति निवास है, सचिवालय, इंडिया गेट के साथ-साथ जरुरत की अन्य इमारतें भी थीं। निर्माण का दारोमदार एडविन लुटियंस पर था जिनके सहायक थे वास्तुकार हर्बर्ट बेकर। पर उनकी योजना में संसद भवन जैसी किसी इमारत का कोई स्थान नहीं था। होता भी कैसे अंग्रेजों ने कहां सोचा था कि कभी यहां भी राजशाही का अंत हो प्रजातंत्र का सागर हिलोरें मारने लगेगा। उस समय जो विधानमंडल के लिए भवन बनाया गया था वही हमारा आज का संसद भवन है।

छह एकड में फैली इस इमारत का घेरा एक तिहाई मील का है। जिसे चारों ओर से दस फुट ऊंची, लाल पत्थर की जालीदार दिवार से घेर दिया गया है जिससे बाहर सडक से भी इसकी सुंदरता को निहारा जा सकता है। सुंदर बाग से घिरा यह भवन पहले तल पर 27 फुट ऊंचे 144 खंभों द्वारा निर्मित खुले और गोलाकार बरामदे के अंदर बना है। जिसमें प्रवेश हेतु 12 दरवाजे हैं। छत के पानी की निकासी के लिए जहां भारतीय वास्तुकला के अनुसार शेर की मुखाकृति वाली नालियां बनाई गयीं हैं वहीं इसकी खूबसूरत मेहराबें इस्लामी कारीगरी का बेहतरीन नमूना पेश करती हैं। सारा भवन लाल बलुए पत्थरों के बने चबूतरे पर अवस्थित है। भवन का निर्माण लाल और पीले पत्थरों से किया गया है।
इसका उद्घाटन वायसराय लार्ड इरविन ने किया था। उनके आने पर वास्तुकार हर्बर्ट ने उन्हें सोने की चाबी भेंट की थी। दरवाजा खोलते समय इरविन को भान भी नहीं होगा कि इसी जगह ब्रिटिश साम्राज्य को भारतियों के हाथ सत्ता की चाबी सौंपनी पडेगी।सेंट्रल हाल -
इस बेहतरीन भवन के तीन मुख्य भागों में एक है, सेंट्रल हाल। इसकी बनावट गोलाकार है। इसी के ठीक उपर 98 फुट डायमीटर वाला अष्टकोणीय गुंबद है। ऐसा कहा जाता है कि यह गुंबद संसार में अपने आप में अनोखा है। इस हाल की ऐतिहासिक महत्ता दो कारणों से अहम है, पहला यही वह जगह है जहां 1947 में देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में सत्ता परिवर्तन हुआ था। दूसरी यहीं पर हमारे संविधान की रुपरेखा तैयार की गयी थी। आज कल यह दोनों सदनों की और बाहर से आए अन्य देशों के प्रमुखों की खास सभाओं के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। यहां आज के समय की हर आधुनिक संचार व्यवस्था उपलब्ध है। यह तीन ओर से लोकसभा, राज्य सभा और यहां के बृहद पुस्तकालय से घिरा हुआ है। जिसमें प्रवेश की खातिर तीन दरवाजे हैं। साल के पहले सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति यहीं दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करते हैं। यहां की ऐतिहासिकता को बनाए रखने के लिए पुराने जमाने की घंटी बजा कर सदस्यों को बुलाने की प्रथा को वैसा ही रखा गया है अलबत्ता घंटी का स्थान बिजली के बजर ने ले लिया है। पुरानी चीजों को देखें तो अभी भी हाल के अंदर खंभों पर लगे उल्टे पंखे यथावत रखे गये हैं जो इसकी पहचान बन चुके हैं। हाल में अध्यक्ष के लिए बेश-कीमती लकडी कि कुर्सी है जिस के पीछे उपर की ओर महात्मा गांधी की फोटो लगी हुई है।
लोक सभा -
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राज्य सभा -
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नक्काशित संगमरमर और काली लकडी से निर्मित, लाल रंग के कालीन से ढके इस सदन की शोभा देखते ही बनती है। यहां 250 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। सभापति की कुर्सी के उपर अशोक चिन्ह लगा हुआ है। पत्रकारों, विशिष्ठ अतिथियों और आम लोगों के लिए दर्शक दीर्घा भी बनी हुई है। इसकी खूबसूरती एक मिसाल है जिसे बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोडी जाती।
पुस्तकालय -
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इस बेहतरीन इमारत में आम जन भी प्रवेश पा सकता है बशर्ते उसके पास किसी सांसद द्वारा प्रदत्त अनुमोदन पत्र हो।
साल दर साल बढती सांसदों की संख्या को मद्देनज़र रख अब कुछ दिनों से एक नये संसद भवन की जरूरत महसूस की जा रही है। क्योंकि इसकी क्षमता को जितना हो सकता था बढाया जा चुका है। फिर यह भवन करीब 85 साल पुराना हो चला है, कुछ ही सालों में यह विश्व धरोहरों में शामिल हो जाएगा।
4 टिप्पणियां:
nice information .thanks gagan ji मीडियाई वेलेंटाइन तेजाबी गुलाब
सार्थक प्रस्तुति..जानकारी भरी..
ज्ञान वर्धन के लिए आभार
ज्ञान वर्धक और रुचिकर सामग्री
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