बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

आइए जानें अपने संसद भवन को


किन्हीं कारणों से जब अंग्रेजों ने 1912 में भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाने का फैसला किया तो वहां दिवार से घिरी दिल्ली के बाहर भी राजधानी के अनुरुप बहुत कुछ नया बसाने की जरूरत सामने आई। लिहाजा खोज के दौरान रायसीना की पहाडियों के पास की जगह को सबसे उपयुक्त पाया गया, और इसे नई दिल्ली का नाम दे कर निर्माण कार्य शुरु कर दिया गया। 

इस योजना के अंतर्गत बनने वाली इमारतों में वायसराय भवन, जो आज का हमारा राष्ट्रपति निवास  है, सचिवालय, इंडिया गेट के साथ-साथ जरुरत की अन्य इमारतें भी थीं। निर्माण का दारोमदार एडविन लुटियंस पर था जिनके सहायक थे वास्तुकार हर्बर्ट बेकर। पर उनकी योजना में संसद भवन जैसी किसी इमारत का कोई स्थान नहीं था। होता भी कैसे अंग्रेजों ने कहां सोचा था कि कभी यहां भी राजशाही का अंत हो प्रजातंत्र का सागर हिलोरें मारने लगेगा। उस समय जो विधानमंडल के लिए भवन बनाया गया था वही हमारा आज का संसद भवन है।
आज दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र की पहचान, देश के गौरव के प्रतीक, आजादी की लडाई के गवाह इस भवन का निर्माण 12 फरवरी 1921 को शुरु हो कर छह साल बाद 18 जनवरी 1927 को खत्म हुआ था। उस समय इस पर कुल लागत 83 लाख रुपये आई थी। शुरु में इसके स्वरूप को लेकर दोनों निर्माताओं में कुछ मतभेद थे। वास्तुकार हर्बर्ट इसे त्रिकोणीय रूप देना चाहते थे जिसके उपर एक विशाल गुंबद हो। जबकि लुटियंस वृताकार। काफी जद्दोजहद, विचार-विमर्ष के पश्चात आखिर ऐसा नक्शा सामने आया जिसमें वृताकार भवन पर एक गुंबद हो जो किसी के भवन के पास आते जाने पर अपने को भवन के अंदर समाहित करता नज़र आए। 
 
छह एकड में फैली इस इमारत का घेरा एक तिहाई मील का है। जिसे चारों ओर से दस फुट ऊंची, लाल पत्थर की जालीदार दिवार से घेर दिया गया है जिससे बाहर सडक से भी इसकी सुंदरता को निहारा जा सकता है। सुंदर बाग से घिरा यह भवन पहले तल पर 27 फुट ऊंचे 144 खंभों द्वारा निर्मित खुले और गोलाकार बरामदे के अंदर बना है। जिसमें प्रवेश हेतु 12 दरवाजे हैं। छत के पानी की निकासी के लिए जहां भारतीय वास्तुकला के अनुसार शेर की मुखाकृति वाली नालियां बनाई गयीं हैं वहीं इसकी खूबसूरत मेहराबें इस्लामी कारीगरी का बेहतरीन नमूना पेश करती हैं। सारा भवन लाल बलुए पत्थरों के बने चबूतरे पर अवस्थित है। भवन का निर्माण लाल और पीले पत्थरों से किया गया है। 
इसका उद्घाटन वायसराय लार्ड इरविन ने किया था। उनके आने पर वास्तुकार हर्बर्ट ने उन्हें सोने की चाबी भेंट की थी। दरवाजा खोलते समय इरविन को भान भी नहीं होगा कि इसी जगह ब्रिटिश साम्राज्य को भारतियों के हाथ सत्ता की चाबी सौंपनी पडेगी।

सेंट्रल हाल - 
इस बेहतरीन भवन के तीन मुख्य भागों में एक है, सेंट्रल हाल। इसकी बनावट गोलाकार है। इसी  के ठीक उपर 98 फुट डायमीटर वाला अष्टकोणीय गुंबद है। ऐसा कहा जाता है कि यह गुंबद संसार में अपने आप में अनोखा है। इस हाल की ऐतिहासिक महत्ता दो कारणों से अहम है, पहला यही वह जगह है जहां 1947 में देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में सत्ता परिवर्तन हुआ था। दूसरी यहीं पर हमारे संविधान की रुपरेखा तैयार की गयी थी। आज कल यह दोनों सदनों की और बाहर से आए अन्य देशों के प्रमुखों की खास सभाओं के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। यहां आज के समय की हर आधुनिक संचार व्यवस्था उपलब्ध है। यह तीन ओर से लोकसभा, राज्य सभा और यहां के बृहद पुस्तकालय से घिरा हुआ है।  जिसमें प्रवेश की खातिर तीन दरवाजे हैं। साल के पहले सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति यहीं दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करते हैं। यहां की ऐतिहासिकता को बनाए रखने के लिए पुराने जमाने की घंटी बजा कर सदस्यों को बुलाने की प्रथा को वैसा ही रखा गया है अलबत्ता घंटी का स्थान बिजली के बजर ने ले लिया है। पुरानी चीजों को देखें तो अभी भी हाल के अंदर खंभों पर लगे उल्टे पंखे यथावत रखे गये हैं जो इसकी पहचान बन चुके हैं। हाल में अध्यक्ष के लिए बेश-कीमती लकडी कि कुर्सी है जिस के पीछे उपर की ओर महात्मा गांधी की फोटो लगी हुई है। 

लोक सभा - 
सेंट्रल हाल के साथ ही वह विख्यात कक्ष है जहां चुनावों के बाद हमारे द्वारा भेजे गये प्रतिनिधी जा कर देश का भविष्य निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसे लोकसभा का नाम दिया गया है। लोक सभा को हाउस आफ़ पीपल या लोवर हाउस के नाम से भी जाना जाता है। इसके सदस्य सीधे चुनाव जीत कर आते हैं सिर्फ दो को छोड जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है। देश का कोई भी नागरिक जो 25 साल के उपर हो और मानसिक रूप से स्वस्थ और किसी भी प्रकार के कानूनी दोष से मुक्त हो यहां के लिए चुनाव लड पांच साल तक की सदस्यता हासिल कर सकता है। यह एक 4800 वर्ग फुट का अर्द्ध गोलाकार हाल है। इसमें 550 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। हरे कालीन से ढके इस कक्ष को खूबसूरत बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया है। अध्यक्ष की कुर्सी के उपर संस्कृत का वेदवाक्य “धर्मचक्रपर्वतनीय” के साथ ही राष्ट्रीय ध्वज और चिन्ह भी सुशोभित हैं। यहां की कार्यवाही देखने के लिए दर्शक दीर्घा भी बनी हुई है।

राज्य सभा - 
इसके साथ ही है राज्यसभा का वह सदन जहां देश के विशिष्ट लोग चयनित हो कर आते हैं। इसे कौंसिल आफ़ स्टेट या अपर हाउस भी कहा जाता है। इसके सदस्यों को राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों की अप्रत्यक्ष चुनाव प्रक्रिया द्वारा चुन कर आना पडता है। इन्हें छह सालों के लिए चुना जाता है। राज्यसभा भंग नहीं होती अलबत्ता हर दो साल बाद इसके एक तिहाई सदस्य रिटायर हो जाते हैं और नये सदस्य चुन कर आते रहते हैं। इसके 250 सदस्य में 238 विधायकों द्वारा और 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं। जो समाज के सभ्रांत वर्ग, कला, विज्ञान, खेल या अपने क्षेत्र की विशिष्ट हस्ती हो सकते हैं। इसके सदस्यों की न्युनतम उम्र 30 साल होनी चाहिए। 
 
नक्काशित संगमरमर और काली लकडी से निर्मित, लाल रंग के कालीन से ढके इस सदन की शोभा देखते ही बनती है। यहां 250 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। सभापति की कुर्सी के उपर अशोक चिन्ह लगा हुआ है। पत्रकारों, विशिष्ठ अतिथियों और आम लोगों के लिए दर्शक दीर्घा भी बनी हुई है। इसकी खूबसूरती एक मिसाल है जिसे बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोडी जाती। 
   
पुस्तकालय - 
किसी जमाने में राजाओं-महाराजाओं के लिए बनाए गये इस सदन को अब पुस्तकालय का रूप दे दिया गया है। यह सेंट्रल हाल को घेरने वाला तीसरा कक्ष है। यह अपने आप में देश के सबसे स्मृद्ध पुस्तकालयों में से एक है। यहीं पर देश के संविधान की हिंदी और अंग्रेजी प्रतिलिपि भी मौजूद है जिसे आम लोग भी देख सकते हैं। वहीं यहां आप हर विषय पर पुस्तक और देश के  हर हिस्से से निकलने वाले अखबार का अवलोकन भी कर सकते हैं। 

इस बेहतरीन इमारत में आम जन भी प्रवेश पा सकता है बशर्ते उसके पास किसी सांसद द्वारा प्रदत्त अनुमोदन पत्र हो।      
साल दर साल बढती सांसदों की संख्या को मद्देनज़र रख अब कुछ दिनों से एक नये संसद भवन की जरूरत महसूस की जा रही है। क्योंकि इसकी क्षमता को जितना हो सकता था बढाया जा चुका है। फिर यह भवन करीब 85 साल पुराना हो चला है, कुछ ही सालों में यह विश्व धरोहरों में शामिल हो जाएगा। 

4 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

nice information .thanks gagan ji मीडियाई वेलेंटाइन तेजाबी गुलाब

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति..जानकारी भरी..

P.N. Subramanian ने कहा…

ज्ञान वर्धन के लिए आभार

Unknown ने कहा…

ज्ञान वर्धक और रुचिकर सामग्री

विशिष्ट पोस्ट

प्रेम, समर्पण, विडंबना

इस युगल के पास दो ऐसी  वस्तुएं थीं, जिन पर दोनों को बहुत गर्व था। एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी और...