एक हैं कलमाडी। जनता की यादाश्त चाहे कितनी भी अल्पजीवी हो पर इतनी भी कमजोर नहीं है कि वह इन महानुभाव को भूला बैठी हो। वैसे इनके द्वारा संपादित कार्य ही इतना महान था कि इतनी ज़ल्दी भूलना मुश्किल था। सभी जानते हैं कि राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में लिप्तता के कारण कलमाडी को गिरफ्तार किया गया था, और अब वह जमानत पर हैं। हालांकि जिस सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार किया था, उसी ने बाद में उन्हें क्लीन चिट भी दे दी थी, यह कैसे हुआ वह अलग मुद्दा है। पर सरकार रूपी गठबंधन में उनके मौसेरे भाईयों ने पता नहीं अब क्या समा बांधा, किसे क्या समझाया कि सरकार ने फिर उन्हें संसदीय समिति में मनोनीत कर दिया। पर शायद कुछ लोगों की आंखों की शर्म बची हुई है इसीलिए जब कलमाडी महाशय को भारतीय ओलंपिक संघ में फिर स्थान देने की अनुशंसा की गयी तो अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने ऐसा ना करने का साफ एलान कर एक अनुकरणीय उदाहरण पेश कर दिया है।
सरकार ने जनता और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति को कलमाडी के बारे में जिस तरह अलग-थलग रखा उससे भी यह शक जोर पकड़ता था कि सरकार मामले की लीपापोती कर दोषियों को बचाने की कोशिश में है। पर इससे भी कलमाडी पर लगा दाग धुल नहीं सका । पर इतना जरूर हो गया कि इस सरकारी प्रोत्साहन के कारण कलमाडी लंदन ओलंपिक जाने की बात करने की धृष्टता करने लगे थे। पर उस वक्त खेल मंत्री ने उनकी नहीं चलने दी और अब भारतीय ओलंपिक संघ से उन्हें बाहर करने में जगदीश टाइटलर ने अहम् भूमिका निभाई है,. यह अलग बात है कि वे खुद संघ का मुखिया बनना चाहते हैं।
संघ का चुनाव अगले महीने है, और कलमाडी अपना अध्यक्ष पद बरकरार रखने के लिए चुनाव लड़ने की हर तिकडम आजमाने को आतुर हैं। जबकि उनकी इस महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि यह चुनाव पूरी तरह आचार संहिता के आधार पर होना चाहिए। अब अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के एथिक्स कमीशन ने भी टिप्पणी की है कि जब तक कलमाडी निर्दोष साबित नहीं होते, तब तक संघ में उनके लिए कोई जगह नहीं है।
पर सवाल यह उठता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसा नैतिक साहस राजनीतिक व्यवस्था में क्यों नहीं दिखता? क्यों देश की राजनीतिक पार्टियां भ्रष्टाचार की अनदेखी कर खुद सत्ता में आने के लिए अयोग्य, भ्रष्ट, धन-लोलूप पात्रों को बार-बार सामने ला उन्हें देश और प्रजा का शोषण करने का मौका देती रहती हैं? इस मामले में सत्तारूढ ही नहीं दूसरी पार्टियों का भी एक जैसा ही रुख होता है। इस बार भी वोटों की मजबूरी के चलते अकेले कलमाडी पर ही नज़रें इनायत नहीं की गयीं बल्कि उसी थैली के कुछ और बट्टे, कनिमोझी और राजा को भी संसदीय समितियों में लाकर केंद्र ने कोई अच्छा संदेश जनता तक नहीं पहुंचाया है। वस्तुत: ऐसा कर कोयले की दलाली में काले हुए हाथों को अपने ही चेहरे पर भी मल लिया है।
3 टिप्पणियां:
सबके अपने अपने सत्य सिद्ध हो रहे हैं।
अब क्या कहें ...
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर देश के नेताओं के लिए दुआ कीजिये - ब्लॉग बुलेटिन आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम देश के नेताओं के लिए दुआ करते है ... आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
चोर चोर मौसेरे भाई
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