बुधवार, 28 दिसंबर 2011

अधजल गगरियों को छलकने से रोकने की आवश्यकता है.

हद तो तब हो जाती है जब इस आदत के चलते कोई भी कहीं भी जा कर रौब दिखाते हुए अपने भाई, दोस्त या किसी रिश्तेदार का सम्बंध किसी रसूखदार जगह या उसके नुमांयदों से होना बता, रियायत पाना चाहता है। उसे इस बात की जरा भी चिंता नहीं होती कि उसकी इस हरकत से उस संस्था या उससे जुडे लोगों की बदनामी हो रही होती है।

हर क्षेत्र, संस्था या कार्य स्थल की एक मर्यादा होती है। पर कुछ लोग अपने अहम की तुष्टि के लिए या फिर अपने को आम से कुछ खास दिखाने के लिए या फिर यार-दोस्तों पर रौब डालने के लिए अक्सर इस हद को पार करते रहते हैं। वैसे तो ऐसे लोग हर जगह मिल जाते हैं पर मीडिया, पुलिस या राजनीतिज्ञों से जरा सा भी जुडे लोगों में यह प्रवृति कुछ ज्यादा ही दिखाई दे जाती है। बहुतेरी बार ऐसे लोगों से आम इंसान या संस्था को दो-चार होना पड ही जाता है। इनकी खासियत होती है कि कहीं भी अपना काम निकलवाने के लिए पहुंचते समय इनके तेवर कुछ ऐसे होते हैं जैसे किसी बहुत बडे षडयंत्र का भंडाभोड करने आए हों। जबकि इनका उद्देश्य अपना या अपने किसी निहायत गैरजिम्मेदराना साथी का गलत तरीके से कोई काम निकलवाने का होता है। बिना किसी तरह की रोक-टोक की परवाह किए सीधे सम्बंधित अधिकारी के पास जा, अपना नहीं अपने कार्यस्थल का परिचय दे, रौब गालिब कर अपना काम करवाने की मांग रखते हैं। ज्यादातर संस्थाएं, बला टालने या किसी बखेडे मे पडने की बजाए वह छोटा-मोटा काम करने से गुरेज नहीं करतीं और इतने से ही उनके साथी पर उनके रुतबे का रौब पड जाता है।
बात यहीं से बिगडती है। वह साथ आया गैरजिम्मेदराना इंसान हर बार नियमानुसार काम ना कर किसी के सहारे इसी तरह अपना काम इसी तरीके से करवाने का आदी हो जाता है। फिर चाहे समय निकल जाने के बावजूद अपना काम निकलवाने की जिद हो, चाहे नियम-कायदों को ताक पर रख अपने को खास मानने का गुमान।

ऐसे लोगों को यदि ना सुननी पड जाती है तो तुरंत अपने आकाओं को फोन लगा ऐसा अहसास करवाते हैं जैसे बस कमिश्नर या कलेक्टर तुरंत इनकी सहायता को खडे होंगें। पर खुदा ना खास्ता यदि किसी 'पहाड' के नीचे इन्हें ला शीशा दिखा दिया जाता है तो फिर ऐसों को मुंह छुपाने की जगह खोजने मे भी देर नहीं लगती।

हद तो तब हो जाती है जब इस आदत के चलते कोई भी कहीं भी जा कर रौब दिखाते हुए अपने भाई, दोस्त या किसी रिश्तेदार का सम्बंध किसी रसूखदार जगह या उसके नुमांयदों से होना बता, रियायत पाना चाहता है। उसे इस बात की जरा भी चिंता नहीं होती कि उसकी इस हरकत से उस संस्था या उससे जुडे लोगों की बदनामी हो रही होती है।

इसके लिए हर जिम्मेदार संस्था को नये लोगों को जिम्मेदारी सौंपते हुए यह दिशा-निर्देश जरूर देने चाहिए कि उनके द्वारा जाने-अंजाने कोई ऐसा काम ना हो जिससे लोगों में कोई गलत संदेश जाए। यदि कभी ऐसी बात का पता चले तो तुरंत उन अधजल गगरियों को छलकने से रोका भी जाए। तब ही इस तरह की प्रवृति पर कुछ अंकुश लग सकता है।

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-743:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतर सीख सबके लिये..

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